Baglamukhi Beej Mantra ( बगलामुखी बीज मंत्र )

Baglamukhi Beej Mantra Evam Puja Sadhna Vidhi (बगलामुखी बीज मंत्र साधना विधि )

Devi Baglamukhi Pitambara

( Baglamukhi Beej Mantra ) भगवती बगलामुखी ( पीताम्बरा )  के इस मंत्र को महामंत्र के नाम से जाना जाता हैा ऐसा कहा जाता है कि भगवती बगलामुखी की उपासना करने वाले साधक के सभी कार्य बिना व्यक्त किये ही पूर्ण हो जाते हैं और जीवन की हर बाधा को वो हंसते हंसते पार कर जाते हैं।  मैनें स्वयं अपने जीवन में अनेको चमत्कार देखें हैं, जिनको सुनकर कोई भी विश्वास नही करेगा लेकिन भगवती पीताम्बरा अपने भक्तों के ऊपर ऐसे ही कृपा करती हैं।  ऐसे बहुत से साधक आज हमसे जुड़े हैं जो बगलामुखी साधना को प्रारंभ करने से पहले अपने जीवन की तकलीफों के कारण आत्महत्या का प्रयास कर चुके थे लेकिन इस साधना को प्रारंभ करने के बाद आज उन लोगो का जीवन पूर्ण रूप से बदल चुका है। जब तक व्यक्ति इस संसार में रहता है कुछ न कुछ दुःख अथवा परेशानी जीवन में आती जाती रहती है लेकिन जब व्यक्ति माँ पीताम्बरा की शरण में होता है तो वो दुःख अथवा परेशानी उसके जीवन में कब आती है और कब चली जाती है इसका उसे एहसास भी नहीं होता।  

बगलामुखी साधना से सम्बंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें संपर्क करें – 9917325788 ( श्री योगेश्वरानंद जी ) , 9540674788 ( सुमित गिरधरवाल )।  ईमेल करें – shaktisadhna@yahoo.com

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माँ पीताम्बरा का बीज मंत्र ह्ल्रीं  है। बीज मंत्र को  एकाक्षर मंत्र भी कहते हैं क्योंकि यह एक अक्षर  ( one syllable ) का है। माँ पीताम्बरा की साधना इसी बीज मंत्र से प्रारम्भ होती है।  बीज मंत्र की दीक्षा गुरुदेव से लेकर इसका सवा लक्ष जप करना चहिये एवं उसके पश्चात  बीज मंत्र का नियमित रूप से कम से कम 11 अथवा 21 माला का जप अवश्य करना चाहिए,  क्योंकि  बीज मंत्र में ही देवता के प्राण होते हैं।  जिस प्रकार बीज के बिना वृक्ष की कल्पना नही की जा सकती उसी तरह बीज मंत्र के जप के बिना साधना में सफलता के बारे में सोचना भी व्यर्थ है। इसके जप के बिना माँ पीताम्बरा की साधना पूर्ण नही होती। 

भगवती की सेवा केवल मंत्र जप से ही नही होती है बल्कि उनके नाम का गुणगान करने से भी होती है । जिस प्रकार नारद ऋषि हर पल भगवान विष्णु का नाम जपते थे, उसी प्रकार सुधी साधको को माँ पीताम्बरा का नाम जप हर पल करना चाहिए एवं अन्य लोगो को भी उनके नाम की महिमा के बारे में बताना चाहिए । मैंने  अपने जीवन का केवल एक ही उद्देश्य बनाया है कि माँ पीताम्बरा के नाम को हर व्यक्ति तक पहुंचाना हैा आप सब भी यदि माँ की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो आज से ही भगवती के एकाक्षरी मंत्र को अपने जीवन में उतार लीजिए एवं माँ के नाम एवं उनकी महिमा का अधिक से अधिक प्रचार करना शुरू कर दीजिए। साधको के हितार्थ भगवती के बीज मंत्र की जानकारी यहां दे रहा हूँ, भगवती पीताम्बरा आप सब पर कृपा करें ।   (चेतावनी – बिना मंत्र दीक्षा के भगवती बगलामुखी के मंत्रों का जप नहीं करना चाहिए।)

बगलामुखी साधना सामग्री 

हल्दी माला, बगलामुखी यंत्र, माँ बगलामुखी का चित्र अथवा कोई मूर्ति

साधना विधि ( माँ बगलामुखी पूजा कैसे करें ) ( ma baglamukhi puja kaise kare )

इसकी साधना रात्रि में 10 से 3 बजे के बीच करें। पीले रंग के कपड़े पहनकर पीले रंग का आसान बिछा उस पर बैठ जायें। सबसे पहले आचमन करें।  इसके पश्चात दीपक जलाएं। दीपक आप गाय के घी का , सरसो के तेल का , अथवा तिल के तेल का जला सकते हैं। फिर गुरु का ध्यान करके गुरु मंत्र का कम से कम एक माला जप करें।  उसके पश्चात गणेश जी का ध्यान करके साधना में सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें । “ॐ गं गणपतये नमः ”  इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप करें।  इसके पश्चात भगवान भैरव का ध्यान करें एवं उनसे माँ बगलामुखी साधना की आज्ञा मांगे।  माँ बगलामुखी का ध्यान करें। उनको पीला प्रसाद जैसे बादाम , किशमिश , बेसन की बनी कोई मिठाई , कोई भी फल अर्पित करें ।  बगलामुखी कवच का पाठ करें। बगलामुखी बीज मंत्र का हल्दी की माला पर कम से कम 1 माला का जप करें। इसके पश्चात बगलामुखी बीज मंत्र का पाठ करें। इसके पश्चात १ माला मृत्युंजय मंत्र का जप करें

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बगलामुखी ध्यान 
वादी मूकति रंकति क्षितिपतिर्वैश्वानरः शीतति।
क्रोधी शान्तति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति।।
गर्वी खवर्ति सर्व विच्च जडति त्वद् यन्त्राणा यंत्रितः।
श्रीनित्ये बगलामुखि! प्रतिदिनं कल्याणि! तुभ्यं नमः।।

विनियोगः – ॐ अस्य एकाक्षरी बगला मंत्रस्य ब्रह्म ऋषिः, गायत्री छन्दः, बगलामुखी देवताः, लं बीजं, ह्रीं शक्ति, ईं कीलकं, मम सर्वार्थ सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

बगलामुखी बीज मंत्र –  ह्ल्रीं

ऋष्यादिन्यासः-
ॐ ओम् ब्रह्म ऋषये नमः षिरसि।
ॐ गायत्री छंदसे नमः मुखे।
ॐ श्री बगलामुखी देवतायै नमः हृदि।
ॐ लं बीजाय नमः गुहये ।
ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।
ॐ ईं कीलकाय नमः सर्वांगे।
ॐ श्री बगलामुखी देवताम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ।

षडंगन्यासः 
ॐ ह्-ल्रां हृदयाय नमः।
ॐ ह्-ल्रीं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्-ल्रूं शिखायै वषट्।
ॐ ह्-ल्रैं कवचाय हूं।
ॐ ह्-ल्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट्।
ॐ ह्-ल्रः अस्त्राय फट्।

करन्यासः
ॐ ह्-ल्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ ह्-ल्रीं तर्जनीभ्यां स्वाहा।
ॐ ह्-ल्रूं मध्यमाभ्यां वषट्।
ॐ ह्-ल्रैं अनामिकाभ्यां हूं।
ॐ ह्-ल्रौं कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् ।
ॐ ह्-ल्रः करतल-कर-पृष्ठाभ्यां फट्।

बीज मंत्र का अनुष्ठान

मंत्र जप

सर्वप्रथम बगलामुखी मंत्र की दीक्षा ग्रहण करें।  अनुष्ठान करने से पूर्व अपने गुरुदेव  से आज्ञा अवश्य लेनी चाहिए। उसके पश्चात एक लाख पच्चीस हजार ( 1,25,000  मंत्रो अथवा 1250 माला ) की संख्या में हल्दी की माला पर जप करना चाहिए।

हवन

उसके पश्चात 12,500  मंत्रो अथवा 125 माला से हवन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि हवन से देवता  को शक्ति मिलती है और मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है कि हवन से माँ की कृपा शीघ्र प्राप्त  होती हैा  जो लोग हवन करने में समर्थ नही हैं उन्हे अपने गुरुदेव से मंत्र जप के पश्चात हवन करने का आग्रह करना चाहिए एवं  उस हवन में सम्मिलित होना चाहिए ।

तर्पण

इसके पश्चात 1250 मंत्रो अथवा 13 माला से तर्पण करना चाहिए । तर्पण करने का मंत्र है – ” ह्ल्रीं तर्पयामि ”  तर्पण करने के  लिए एक बड़ा पात्र ले, जिसमें 1 से 2 लीटर पानी आ जाये।  इस पात्र में सब पहले थोड़ा गंगा जल डालें इसके पश्चात उसमें ऊपर तक पानी भर लें । इसमें थोड़ी हल्दी, शहद, शक्कर, केसर दूध  मिला लेना चहिए ।  जिस प्रकार सुर्यदेव को हाथों से अंजली बनाकर  एवं उसमे जल भरकर अर्घ्य दिया जाता है उसी प्रकार सीधे हाथ से अंजली बनाकर पात्र से जल लेना चाहिए एवं  ” ह्ल्रीं तर्पयामि ”  बोलते हुए उसी पात्र में जल को छोड़  देना चाहिए । तर्पण करते हुए मंत्र जप बाएं हाथ से हल्दी की माला पर करना चाहिए एवं सीधे हाथ से तर्पण करना चाहिए ।

मार्जन

तर्पण के पश्चात 125 मंत्रो अथवा 2 माला  से मार्जन करना चाहिए । मार्जन करने का मंत्र है ” ह्ल्रीं मार्जयामि ” । इसके लिए थोड़ी सी कुशा  लें। एक छोटे से पात्र में गंगा जल लेकर उस कुशा से बगलामुखी यंत्र पर अथवा  मूर्ति पर ” ह्ल्रीं मार्जयामि ”  मंत्र  जपते हुए गंगा जल की छींटे दें । मार्जन भी सीधे हाथ से करना चाहिए एवं  बाएं हाथ से हल्दी की माला पर जप करना चाहिए। यदि कुशा उपलब्ध ना हो तो पीले पुष्प का भी उपयोग किया जा सकता है।

ब्राह्मण भोज ( कन्या भोज )

मार्जन करने पश्चात 11 ब्राह्मणों अथवा 11 कन्याओं को भोजन करना चाहिए।

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बगलामुखी साधना अनुभव

सभी साधकों को साधना में अलग अलग अनुभव होते हैं।

साधना को आरम्भ करने से पूर्व एक साधक को चाहिए कि वह मां भगवती  की उपासना अथवा अन्य किसी भी देवी या देवता की उपासना निष्काम भाव से करे। उपासना का तात्पर्य सेवा से होता है। उपासना के तीन भेद कहे गये हैं:- कायिक अर्थात् शरीर से , वाचिक अर्थात् वाणी से और मानसिक- अर्थात् मन से।  जब हम कायिक का अनुशरण करते हैं तो उसमें पाद्य, अर्घ्य, स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पंचोपचार पूजन अपने देवी देवता का किया जाता है। जब हम वाचिक का प्रयोग करते हैं तो अपने देवी देवता से सम्बन्धित स्तोत्र पाठ आदि किया जाता है अर्थात् अपने मुंह से उसकी कीर्ति का बखान करते हैं। और जब मानसिक क्रिया का अनुसरण करते हैं तो सम्बन्धित देवता का ध्यान और जप आदि किया जाता है।
जो साधक अपने इष्ट देवता का निष्काम भाव से अर्चन करता है और लगातार उसके मंत्र का जप करता हुआ उसी का चिन्तन करता रहता है, तो उसके जितने भी सांसारिक कार्य हैं उन सबका भार मां स्वयं ही उठाती हैं और अन्ततः मोक्ष भी प्रदान करती हैं। यदि आप उनसे पुत्रवत् प्रेम करते हैं तो वे मां के रूप में वात्सल्यमयी होकर आपकी प्रत्येक कामना को उसी प्रकार पूर्ण करती हैं जिस प्रकार एक गाय अपने बछड़े के मोह में कुछ भी करने को तत्पर हो जाती है। अतः सभी साधकों को मेरा निर्देष भी है और उनको परामर्ष भी कि वे साधना चाहे जो भी करें, निष्काम भाव से करें। निष्काम भाव वाले साधक को कभी भी महाभय नहीं सताता। ऐसे साधक के समस्त सांसारिक और पारलौकिक समस्त कार्य स्वयं ही सिद्ध होने लगते हैं उसकी कोई भी किसी भी प्रकार की अभिलाषा अपूर्ण नहीं रहती ।
मेरे पास ऐसे बहुत से लोगों के फोन और मेल आते हैं जो एक क्षण में ही अपने दुखों, कष्टों का त्राण करने के लिए साधना सम्पन्न करना चाहते हैं। उनका उद्देष्य देवता या देवी की उपासना नहीं, उनकी प्रसन्नता नहीं बल्कि उनका एक मात्र उद्देष्य अपनी समस्या से विमुक्त होना होता है। वे लोग नहीं जानते कि जो कष्ट वे उठा रहे हैं, वे अपने पूर्व जन्मों में किये गये पापों के फलस्वरूप उठा रहे हैं। वे लोग अपनी कुण्डली में स्थित ग्रहों को देाष देते हैं, जो कि बिल्कुल गलत परम्परा है। भगवान शिव ने सभी ग्रहों को यह अधिकार दिया है कि वे जातक को इस जीवन में ऐसा निखार दें कि उसके साथ पूर्वजन्मों का कोई भी दोष न रह जाए। इसका लाभ यह होगा कि यदि जातक के साथ कर्मबन्धन शेष नहीं है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन हम इस दण्ड को दण्ड न मानकर ग्रहों का दोष मानते हैं।व्यहार में यह भी आया है कि जो जितनी अधिक साधना, पूजा-पाठ या उपासना करता है, वह व्यक्ति ज्यादा परेशान रहता है। उसका कारण यह है कि जब हम कोई भी उपासना या साधना करना आरम्भ करते हैं तो सम्बन्धित देवी – देवता यह चाहता है कि हम मंत्र जप के द्वारा या अन्य किसी भी मार्ग से बिल्कुल ऐसे साफ-सुुथरे हो जाएं कि हमारे साथ कर्मबन्धन का कोई भी भाग शेष न रह जाए।

यदि आप माँ बगलामुखी साधना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए लेख पढ़ें –

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Haridra Ganesha Mantra Sadhana Evam Siddhi in Hindi

Haridra Ganapati Mantra Sadhana Evam Siddhi

 

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हरिद्रा गणपति मां बगलामुखी के अंग देवता है। इसलिए जो साधक बगलामुखी की आराधना करते हैं, उन्हें हरिद्रा गणपति की साधना, पूजा अवश्य करनी चाहिए। इनकी साधना करने से शत्रु   का हृदय द्रवित होकर साधक के वशीभूत हो जाता है। इनकी साधना अभिचारिक कर्म को भी नष्ट करने के लिए की जाती है। यही कारण है कि मां त्रिपुरसुन्दरी के द्वारा स्मरण किये जाने पर हरिद्रा गणपति ने प्रकट होकर भण्डासुर दैत्य के द्वारा किये गये अभिचार यंत्र को नष्ट कर दिया था।
हरिद्रा हल्दी को कहा जाता है। सभी साधक जानते हैं कि विवाह आदि जैसे मंगल कार्यो में हल्दी पाउडर के लेप का प्रयोग किया जाता है। उसका कारण यह है कि हल्दी को अति शुभ, सुख-सौभाग्य दायक एवं विघ्न विनाशक माना जाता है। हल्दी अनेकों बीमारियों में भी अचूक अस्त्र की भांति कार्य करती है। इसीलिए हरिद्रा गणपति को अत्यन्त ही  शुभ माना जाता है। काम्य प्रयोग में विशेष रूप से इनकी साधना मनवांछित विवाह, पुत्र प्राप्ति, मनोवांछित फल प्राप्ति एवं शत्रु को वश में करने के लिए की जाती है।

HARIDRA GANAPATI  has protective powers. No body can harm you if you worship Haridra form of Ganapati regularly. Haridra Ganapati is worshipped for the fulfillment of desires and accomplishment of auspicious endeavours. Haridra Ganesha is also worshipped by devotees who seek help to come out of their legal troubles. Haridra Ganapati should be worshipped everyday by reciting Below Mantra for eliminating all sorts of fears and for attaining intelligence, wealth and success.

 

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Haridra Ganpati Haridra Ganesha Mantra Sadhna

 

 

 

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Baglamukhi Mala Mantra in Hindi ( बगलामुखी माला मंत्र )

Baglamukhi Mala Mantra ( बगलामुखी माला मंत्र )

बगलामुखी माला मंत्र के पाठ से बड़ी से बड़ी विपत्ति दूर हो जाती है। भयंकर से भयंकर गृह दोष भी इसके पाठ से दूर होता है। जिन लोगो की कुंडली में पितृ दोष, कालसर्प दोष अथवा अन्य कोई दोष है जिसकी वजह से आपके जीवन में कष्ट हैं तो आप बगलामुखी माला मंत्र का पाठ करके अपने जीवन को कष्टों से मुक्त कर सकते हैं।

बगलामुखी माला मंत्र हिंदी एवं संस्कृत मे

ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीरप्रतापविजयभगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय, ब्राह्मीं मुद्रय मुद्रय बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपरबुद्धिं कुरु कुरु आत्मविरोधिनां शत्रुणां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरु पद अणुरेणु दन्तोष्ठ जिह्वा तालु गुह्य गुद कटि जानू सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर्यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय, परमन्त्र परयन्त्र परतन्त्राणि छेदय छेदय, आत्ममन्त्रयन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, सर्वग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्वमन्त्रस्वरूपिणी, सर्वतन्त्रस्वरूपिणी, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणी, सर्वतत्वस्वरूपिणी, दुष्टग्रह भूतग्रह आकाशग्रह पाषाणग्रह सर्व चाण्डालग्रह यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेतपिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धय बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय बन्धय , किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष,पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय , स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय बन्धय, कालि मां रक्ष रक्ष, ऊर्ध्वदिशं बन्धय-बन्धय, उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पातालदिशं बन्धय बन्धय , बगलापरमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकलरोगान् विनाशय विनाशय, सर्वशत्रून् पलायनाय पञ्चयोजनमध्ये राजजनस्त्री वशतां कुरु कुरु , शत्रून् दह दह, पच पच, स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय, हुं फट् स्वाहा।

Baglamukhi Mala Mantra Video / Audio Mp3

बगलामुखी माला मंत्र प्रयोग 

सर्वप्रथम माँ बगलामुखी के बीज मंत्र की दीक्षा ग्रहण करें। उसके पश्चात आप बगलामुखी माला मंत्र का पाठ कर सकते हैं। नियमित रूप से इसका कम से काम 51 अथवा 108 पाठ करें। पाठ करने से पहले बगलामुखी कवच का पाठ भी अवश्य करें।

बगलामुखी माला मंत्र जाप करने का नियम ( बगलामुखी माला मंत्र जप विधि ) 

माँ बगलामुखी के किसी भी मंत्र को करने से पहले उनके उस मंत्र की दीक्षा लेना अनिवार्य हैं। इसलिए बगलामुखी माला मंत्र का पाठ करने से पहले आप इसकी दीक्षा लें। इसकी साधना रात्रि में 10 से 3 बजे के बीच करें। पीले रंग के कपड़े पहनकर पीले रंग का आसान बिछा उस पर बैठ जायें। सबसे पहले आचमन करें।  इसके पश्चात दीपक जलाएं। दीपक आप गाय के घी का , सरसो के तेल का , अथवा तिल के तेल का जला सकते हैं। फिर गुरु का ध्यान करके गुरु मंत्र का कम से कम एक माला जप करें।  उसके पश्चात गणेश जी का ध्यान करके साधना में सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें । “ॐ गं गणपतये नमः ”  इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप करें।  इसके पश्चात भगवान भैरव का ध्यान करें एवं उनसे माँ बगलामुखी साधना की आज्ञा मांगे।  माँ बगलामुखी का ध्यान करें। उनको पीला प्रसाद जैसे बादाम , किशमिश , बेसन की बनी कोई मिठाई , कोई भी फल अर्पित करें ।  बगलामुखी कवच का पाठ करें। बगलामुखी बीज मंत्र का हल्दी की माला पर कम से कम 1 माला का जप करें। इसके पश्चात बगलामुखी माला मंत्र का पाठ करें। इसके पश्चात १ माला मृत्युंजय मंत्र का जप करें

बगलामुखी साधना से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें – श्री योगेश्वरानंद जी  (9917325788 ) सुमित गिरधरवाल जी  ( 9540674788 ) ईमेल करें – shaktisadhna@yahoo.com or baglamukhimantra@gmail.com

 

Baglamukhi Mala Mantra in Hindi and Sanskrit
Baglamukhi Mala Mantra in Hindi and Sanskrit

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Other very powerful Baglamukhi Mantras, Stotras and Kavach

Baglamukhi Mala Mantra benefits : Baglamukhi Mala Mantra is very well known for success in love, studies, money and business. Baglamukhi mantra gives overall success in life. It is the best mantra to win in court cases. It is more effective in destruction of the enemies. Baglamukhi Mala Mantra is also used for Grah Shanti (Grah Dosha Nivaran).
For Baglamukhi Mantra Diksha, Mantra Pronunciation, Baglamukhi Jaap and other sadhana related guidance  email to shaktisadhna@yahoo.com  or sumitgirdharwal@yahoo.com  or call on 9917325788 (Shri Yogeshwaranand Ji) or  9540674788 (Sumit Girdharwal Ji ).Baglamukhi Mala Mantra in Hindi and Sanskrit

oṃ namo bhagavati oṃ namo vīrapratāpavijayabhagavati bagalāmukhi mama sarvanindakānāṃ sarvaduṣṭānāṃ vācaṃ mukhaṃ padaṃ stambhaya stambhaya, brāhmīṃ mudraya mudraya buddhiṃ vināśaya vināśaya, aparabuddhiṃ kuru kuru ātmavirodhināṃ śatruṇāṃ śiro lalāṭa mukha netra karṇa nāsikoru pada aṇureṇu dantoṣṭha jihvā tālu guhya guda kaṭi jānū sarvāṃgeṣu keśādipādaparyantaṃ pādādikeśaparyantaṃ stambhaya stambhaya, kheṃ khīṃ māraya māraya, paramantra parayantra paratantrāṇi chedaya chedaya, ātmamantrayantratantrāṇi rakṣa rakṣa, sarvagrahaṃ nivāraya nivāraya, vyādhiṃ vināśaya vināśaya, duḥkhaṃ hara hara, dāridrayaṃ nivāraya nivāraya, sarvamantrasvarūpiṇī, sarvatantrasvarūpiṇī, sarvaśilpaprayogasvarūpiṇī, sarvatatvasvarūpiṇī, duṣṭagraha bhūtagraha ākāśagraha pāṣāṇagraha sarva cāṇḍālagraha yakṣakinnarakimpuruṣagraha bhūtapretapiśācānāṃ śākinī ḍākinīgrahāṇāṃ pūrvadiśāṃ bandhaya bandhaya, vārtāli māṃ rakṣa rakṣa, dakṣiṇadiśāṃ bandhaya bandhaya , kirātavārtāli māṃ rakṣa rakṣa,paścimadiśāṃ bandhaya bandhaya , svapnavārtāli māṃ rakṣa rakṣa, uttaradiśāṃ bandhaya bandhaya, kāli māṃ rakṣa rakṣa, ūrdhvadiśaṃ bandhaya-bandhaya, ugrakāli māṃ rakṣa rakṣa, pātāladiśaṃ bandhaya bandhaya , bagalāparameśvari māṃ rakṣa rakṣa, sakalarogān vināśaya vināśaya, sarvaśatrūn palāyanāya pañcayojanamadhye rājajanastrī vaśatāṃ kuru kuru , śatrūn daha daha, paca paca, stambhaya stambhaya, mohaya mohaya, ākarṣaya ākarṣaya, mama śatrūn uccāṭaya uccāṭaya, huṃ phaṭ svāhā।

Introduction of Dus Mahavidya Baglamukhi in Hindi

अष्टम  महाविद्या बगलामुखी का  परिचय हिंदी में                                                     

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Baglamukhi Information in Hindi

भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय  मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं।  पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं।इनके एक हाथ में शत्रु की  जिह्वा  और दूसरे हाथ में मुद्गर  है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर-इच्छा  की अधिस्ठात्री शक्ति बगला है।

श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीती से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस    विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया।  सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन  परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में “बगला तंत्र” ग्रन्थ की रचना की। “स्वतंत्र तंत्र” के अनुसार भगवान् विष्णु  इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह  विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।

श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला    महाविद्या “श्री कुल” से सम्बंधित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यंत सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यंत तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि  च्यवन ने इंद्र के वज्र को स्तंभित कर दिया था। श्रीमद् गोविंदपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को “ब्रह्मास्त्र विद्या” के नामे से भी जाना जाता है।  शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है।

Baglamukhi Mantra in Hindi
Baglamukhi Mantras in Hindi

भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है।  स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं।  इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है।  अतः साधक गण को चाहिये कि ऐसी महाविद्या कि साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।

अब हम साधकगण को इस महाविद्या के विषय में कुछ और जानकारी देना आवश्यक समझते है, जो साधक इस साधना को पूर्ण कर, सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इन तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है।

1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।

2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या

3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्” (OM HOOM Chraum)

4)  महासेतु  : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है।  ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है।  इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” (Streem)  है।  इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।

5)  कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है।  जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है।  ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों  के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु  है।

6 ) निर्वाण :-  “ह्रूं ह्रीं श्रीं” (Hroom Hreem Shreem) से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।

7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ” (Aim Hreem Hreem Aim)

8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

9) प्राणायाम : –  साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।

10 ) दीपन :-  दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” ( EEM ) से संपुटित कर सात बार जप करें

11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है,  अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” (Hreem) से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।

12 ) मुख शोधन : –  हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं  ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें

13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।

14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –

” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा ”

(OM Hleem Bagale ! Rudra Shaapam Vimochaya Vimochaya  OM Hleem Swaahaa )

15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।

16 ) आचार :-  इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।

17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : –  कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –

a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” (Yam) से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।

b) सरस्वती बीज “ऐं” (Aim)  से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।

c)  भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” (Steem)  से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें

18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें। दीपक देवता के दायीं ओर व धूपबत्ती बायीं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य (Sweets, Dry Fruits ) भी देवता के दायीं ओर ही रखें। जप के उपरान्त आसन से उठने से पूर्व ही अपने द्वारा किया जाप भगवती के बायें हाथ में समर्पित कर दें।

अतः ऐसे साधक गण जो किन्ही भी कारणो से यदि अभी तक साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकें हैं, उपर्युक्त निर्देशों का पालन करते हुए पुनः एक बार फिर संकल्प लें, तो निश्चय ही पराम्बा पीताम्बरा की कृपा दृस्टि उन्हें प्राप्त होगी – ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

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Introduction of Eighth Mahavidya Baglamukhi in Hindi महाविद्या बगलामुखी परिचय हिंदी में

Introduction of Dus Mahavidya Baglamukhi in Hindi

अष्टम  महाविद्या बगलामुखी का  परिचय हिंदी में

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Baglamukhi Information in Hindi

भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय  मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं।  पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं।इनके एक हाथ में शत्रु की  जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर  है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर-इच्छा की अधिस्ठात्री शक्ति बगला है।

श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीती से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया।  सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में “बगला तंत्र” ग्रन्थ की रचना की। “स्वतंत्र तंत्र” के अनुसार भगवान् विष्णु इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।

baglamukhi mantra in hindi

श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला महाविद्या “श्री कुल” से सम्बंधित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यंत सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यंत तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि  च्यवन ने इंद्र के वज्र को स्तंभित कर दिया था। श्रीमद् गोविंदपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को “ब्रह्मास्त्र विद्या” के नामे से भी जाना जाता है।  शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है।

भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है।  स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं।  इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है।  अतः साधक गण को चाहिये कि ऐसी महाविद्या कि साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।

अब हम साधकगण को इस महाविद्या के विषय में कुछ और जानकारी देना आवश्यक समझते है, जो साधक इस साधना को पूर्ण कर, सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इन तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है।

1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।

2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या

3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्” (OM HOOM Chraum)

4)  महासेतु  : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है।  ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है।  इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” (Streem)  है।  इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।

5)  कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है।  जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है।  ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों  के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु  है।

6 ) निर्वाण :-  “ह्रूं ह्रीं श्रीं” (Hroom Hreem Shreem) से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।

7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ” (Aim Hreem Hreem Aim)

8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

9) प्राणायाम : –  साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।

10 ) दीपन :-  दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” ( EEM ) से संपुटित कर सात बार जप करें

11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है,  अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” (Hreem) से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।

12 ) मुख शोधन : –  हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं  ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें

13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।

14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –
” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा ”

(OM Hleem Bagale ! Rudra Shaapam Vimochaya Vimochaya  OM Hleem Swaahaa )

15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।

16 ) आचार :-  इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।

17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : –  कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –

a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” (Yam) से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।

b) सरस्वती बीज “ऐं” (Aim)  से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।

c)  भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” (Steem)  से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें

18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें। दीपक देवता के दायीं ओर व धूपबत्ती बायीं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य (Sweets, Dry Fruits ) भी देवता के दायीं ओर ही रखें। जप के उपरान्त आसन से उठने से पूर्व ही अपने द्वारा किया जाप भगवती के बायें हाथ में समर्पित कर दें।

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