पीताम्बरा ध्यान मंत्र ( श्री बगला-ध्यान-साधना )

श्री बगला-ध्यान-साधना ( पीताम्बरा ध्यान मंत्र )

भगवती बगला के ‘ध्यान’ को समझकर उसका समुचित रूप से ज्ञान प्राप्त करना परम आवश्यक है। ‘ध्यान´ के अनुसार चिन्तन होने पर ही सिद्धि प्राप्त होती है इसीलिए कहा गया है- `ध्यानं विना भवेन्मूकः, सिद्ध-मन्त्रोऽपि साधकः ।’ अर्थात् ध्यान के बिना सिद्ध-साधक भी गूँगा ही रहता है। माँ बगलामुखी साधना से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी से संपर्क करें – 9917325788, 9410030994, 9540674788

भगवती बगला के अनेक ‘ ध्यान’ मिलते हैं। ‘तन्त्रों’ में विशेष कार्यों के लिए विशेष प्रकार के ‘ध्यानों’ का वर्णन हुआ है। यहाँ कुछ ध्यानों का एक संग्रह दिया जा रहा है। आशा है कि बगलोपासकों के लिए यह संग्रह विशेष उपयोगी सिद्ध होगा, वे इसे कण्ठस्थ अर्थात् याद करके विशेष अनुभूतियों को प्राप्त करेंगे।

चतुर्भुजी बगला
सौवर्णासन-संस्थितां त्रि-नयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्,
हेमाभाङ्ग-रुचिं शशाङ्क-मुकुटां स्रक्-चम्पक-स्र्ग -युताम्!
हस्तैर्मुद्गगर – पाश -वज्र-रसनां संविभ्रतीं भूषणै –
व्याेँप्ताङ्गीं बगला-मुखीं त्रि-जगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये | |

अर्थात् सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रोंवाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भाँति कान्ति- मय अङ्गोवाली, जिनके मणि-मय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पा पुष्प की माला शोभित है, जो अपने चार हाथों में- १. गदा, २. पाश, ३. वज्र और ४. शत्रु की जीभ धारण किए हैं, दिव्य आभूषणों से जिनका पूरा शरीर भरा हुआ है-ऐसी तीनों लोकों का स्तम्भन करनेवाली श्रीबगला-मुखी की मैं चिन्ता करता हूँ।

द्वि-भुजी बगला ( पीताम्बरा ध्यान मंत्र ) मध्ये सुधाऽब्धि-मणि-मण्डप-रत्न-वेद्याम्, सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत-वर्णाम् ।
पीताम्बराऽऽभरण-माल्य-विभूषिताङ्गीम्, देवीं नमामि धृत-मुदगर -वैरि-जिह्वाम् ।।१
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीम्, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।
गदाऽभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढ्यां द्वि-भुजां नमामि ।।२


अर्थात् सुधा-सागर में मणि-निर्मित मण्डप बना हुआ है और उसके मध्य में रत्नों की बनी हुई चौकोर वेदिका में सिंहासन सजा हुआ है, उसके मध्य में पीले रङ्ग के वस्त्र और आभूषण तथा पुष्पों से सजी हुई श्रीभगवती बगला-मुखी को मैं प्रणाम करता हूँ।।१।॥ भगवती पीताम्बरा के दो हाथ हैं ; बॉए से शत्रु की जिह्वा को बाहर खींचकर दाहिने हाथ में धारण किए हुए मुद्र्गर से उसको पीड़ित कर रही हैं ||2||

चतुर्भुजी बगला (मेरु-तन्त्रोक्त) गम्भीरां च मदोन्मत्तां, तप्त-काञ्चन-सन्निभाम् । चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम || मुद्-गरं दक्षिणे पाशं, वामे जिह्वां च वज्रकम् ।पीताम्बर-धरां सान्द्र-वृत्त-पीन-पयोधराम‌् || हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम् । पीत-भूषण-भूषां च, स्वर्ण-सिंहासन-स्थिताम‌् ||
अर्थात् साधक गम्भीराकृति, मद से उन्मत्त, तपाए हुए सोने के समान रङ्गवाली, पीताम्बर धारण किए वर्तुलाकार परस्पर मिले हुए पीन स्तनोंवाली, सुवर्ण-कुण्डलों से मण्डित, पीत-शशि-कला-सुशोभित, मस्तका भगवती पीताम्बरा का ध्यान करे, जिनके दाहिने दोनों हाथों में मुद्र्गर और पाश सुशोभित हो रहे हैं तथा वाम करों में वैरि-जिह्ना और वज्र विराज रहे हैं तथा जो पीले रङ्ग के वस्त्राभूषणों से सुशोभित होकर सुवर्ण-सिंहासन में कमलासन पर विराजमान हैं।

चतुर्भुजी बगला (बगला-दशक)
वन्दे स्वर्णाभ-वर्णां मणि-गण-विलसद्धेम- सिंहासनस्थाम् ।
पीतं वासो वसानां वसु – पद – मुकुटोत्तंस- हाराङ्गदाढ्याम् ।।
पाणिभ्यां वैरि-जिह्वामध उपरि-गदां विभ्रतीं तत्पराभ्याम् ।
हस्ताभ्यां पाशमुच्चैरध उदित-वरां वेद-बाहुं भवानीम् ।।

अर्थात् सुवर्ण जैसी वर्णवाली, मणि-जटित सुवर्ण के सिंहासन पर विराजमान और पीले वस्त्र पहने हुई एवं ‘वसु-पद’ (अष्ट-पद/अष्टापद) सुवर्ण के मुकुट, कण्डल, हार, बाहु-बन्धादि भूषण पहने हुई एवं अपनी दाहिनी दो भुजाओं में नीचे वैरि-जिह्वा और ऊपर गदा लिए हुईं, ऐसे ही बाएँ दोनों हाथों में ऊपर पाश और नीचे वर धारण किए हुईं, चतुर्भुजा भवानी (भगवती) को प्रणाम करता हूँ।

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पीताम्बरा ध्यान मंत्र

श्रीब्रह्मा द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी

वादी मूकति, रङ्कति क्षिति-पतिर्वैश्वानरः शीतति ।
क्रोधी शान्तति, दुर्जनः सुजनति, क्षिप्रांनुगः खञ्जति ।।
गर्वी खर्वति, सर्व-विच्च जड़ति त्वद्-यन्त्रणा यन्त्रितः ।
श्री-नित्ये बगला-मुखि! प्रति-दिनं कल्याणि! तुभ्यं नमः ।।

युवतीं च मदोन्मत्तां, पीताम्बरा-धरां शिवाम् । पीत-भूषण-भूषाङ्गीं, सम-पीन-पयोधराम्॥
मदिरामोद-वनां प्रवाल-सदृशाधराम् । पान-पात्रं च शुद्धिं च, विभ्रतीं बगलां स्मरेत् ।

पीताम्बर-धरां सौम्यां, पीत-भूषण-भूषिताम् । स्वर्ण-सिंहासनस्थां च, मूले कल्प-तरोरधः ॥
वैरि-जिह्वा-भेदनार्थं , छूरिकां विभ्रतीं शिवाम् । पान-पात्रं गदां पाशं, धारयन्ती भजाम्यहम् ।॥

सर्व-मन्त्र-मयीं देवीं, सर्वाकर्षण-कारिणीम् । सर्व- विद्या-भक्षिणीं च, भजेऽहं विधि-पूर्वकम् ॥

श्री अक्षोभ्य ऋषि द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
प्रत्यालीढ-परां घोरां, मुण्ड-माला-विभूषिताम् । खर्वां लम्बोदरीं भीमां, पीताम्बर-परिच्छदाम् ।।
नव-यौवन-सम्पन्नां, पञ्च-मुद्रा-विभूषिताम् । चतुर्भुजां ललज्जिह्वां , महा-भीमां वर-प्रदाम् ||
खड्ग-कर्त्री-समायुक्तां, सव्येतर-भुज-द्वयाम् । कपालोत्पल-संयुक्तां, सव्य-पाणि-युगान्विताम् । ।
पिङ्गोग्रैक-सुखासीनां, मौलावक्षोभ्य-भूषिताम् । प्रज्वलत्-पितृ-भू-मध्य-गतां दन्ष्ट्रा-करालिनीम्।
तां खेचरां स्मेर-वदनां, भस्मालङ्कार-भूषिताम् । विश्व-व्यापक-तोयान्ते, पीत-पद्मोपरि-स्थिताम् ।।

ऋषि श्रीनारद द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम् । त्रिशूलं पान-पात्रं च, गदां जिह्वां च विभ्रतीम् ।।
बिम्बोष्ठीं कम्बु-कण्ठीं च, सम-पीन-पयोधरां। पीताम्बरां मदाघूर्णां , ध्याये ब्रह्मास्त्र-देवतां ।।
पीताम्बरां पीत-माल्यां, पीताभरण-भूषिताम् । पीत-कञ्ज-पद-द्वन्द्वां , बगलां चिन्तयेऽनिशम् ।।

ऋषि श्रीदुर्वासा द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
चतुर्भुजां त्रि-नयनां, पीनोन्नत-पयोधराम् । जिह्वां खड्गं पान-पात्रं, गदां धारयन्तीं पराम् ।।
पीताम्बर-धरां देवीं, पीत-पुष्पैरलंकृताम् । बिम्बोष्ठीं चारु-वदनां, मदाघूर्णित-लोचनाम् ।।
सर्व-विद्याकर्षिणीं च, सर्व-प्रज्ञापहारिणीम् । भजेऽहं चास्त्र-बगलां,सर्वाकर्षण-कर्मसु ।।

ऋषि श्रीवशिष्ठ द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
पीताम्बर-धरां देवीं द्वि-सहस्त्र-भुजान्विताम । सान्द्र-जिव्हां गदा चास्त्रं, धारयन्तीं शिवां भजे । ।

ऋषि श्रीअग्नि-वराह द्वारा उपासिता श्रीबगला- मुखी
विलयानल-सङ्काशां , वीरां वेद-समन्विताम् । विराण्मयीं महा-देवीं, स्तम्भनार्थे भजाम्यहम् ।।

ऋषि श्रीकालाग्नि-रुद्र द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
जातवेद-मुखीं देवीं, देवतां प्राण-रूपिणीम् । भजेऽहं स्तम्भनार्थं च, चिन्मयीं विश्व-रूपिणीम् ।।

ऋषि श्रीअत्रि द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
ज्वलत्-पद्मासन-युक्तां कालानल-सम-प्रभाम् । चिन्मयीं स्तम्भिनीं देवीं, भजेऽहं विधि-पूर्वकम्।।

ऋषि श्रीदारुण द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
ध्याये प्रेतासनां देवीं, द्वि-भुजां च चतुर्भुजाम् । पीत-वासां मणि-ग्रीवां, सहस्त्रार्क-सम-द्युतिम् ।

ऋषि श्रीसविता द्वारा उपासिता श्रीबगला-मुखी
कालानल-निभां देवीं, ज्वलत् – पुञ्ज-शिरोरुहां। कोटि-बाहु-समायुक्तां, वैरि-जिह्वा-समन्वितां।।
स्तम्भनास्त्र-मयीं देवीं, दृढ-पीन-पयोधराम् । मदिरा-मद-संयुक्तां, वृहद्-भानु-मुखीं भजे ।।

श्रीबगला- पटलोक्त ध्यान ( पीताम्बरा ध्यान मंत्र )
उद्यत्-सूर्य-सहस्त्राभां, मुण्ड-माला-विभूषिताम् । पीताम्बरां पीत-प्रियां, पीत-माल्य-विभूषिताम् ।।
पीतासनां शव-गतां, घोर-हस्तां स्मिताननाम् । गदारि-रसनां हस्तां, मुद्गरायुध-धारिणीम् ।।
नृ-मुण्ड-रसनां बालां, तदा काञ्चन-सन्निभाम् । पीतालङ्कार-मयीं, मधु-पान-परायणाम् ।
नानाभरण-भूषाढ्यां, स्मरेऽहं बगला-मुखीम्।।

श्रीब्रह्मास्त्र कल्पोक्त सूर्य- मण्डल-स्थित श्रीबगला- मुखी का ध्यान
नव-यौवन-सम्पन्नां, सर्वाऽऽभरण-भूषिताम् । पीत-माल्यानुवसनां, स्मरेत् तां बगला-मुखीम् ।।

श्रीसांख्यायन-तन्त्रोक्त भगवती बगला के विविध ध्यान
चलत्-कनक-कुण्डलोल्लासित-चारु-गण्ड-स्थलां।
लसत् – कनक- चम्पक-द्युतिमदिन्दु – बिम्बाननाम् ।।

गदाहत – विपक्षकां कलित – लोल-जिह्वाञ्चलां ।
स्मरामि बगला-मुखीं विमुख-वाङ्-मन-स्तम्भिनीं ।1।

पीयूषोदधि-मध्य – चारु – विलसद् – रत्नोज्ज्वले मण्डपे ।
श्री – सिंहासन – मौलि-पातित-रिपुं प्रेतासनाध्यासिनीम् ।।
स्वर्णाभां कर-पीडतारि-रसनां भ्राम्यद्-गदां विभ्रतीम् ।
यस्त्वां पश्यति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽम्ब! सर्वापदः ।2।

पीत – वर्णां मदाघूर्णां, सम – पीन – पयोधराम‌् ।
चिन्तयेद् बगलां देवीं, स्तम्भनास्त्राधि-देवताम् ।3।  

पाठीन-नेत्रां परिपूर्ण-गात्रां, पञ्चेन्द्रिय-स्तम्भन-चित्त-रूपां ।
पीताम्बराढ्यां पिशिताशिनीं तां, भजामि स्तम्भन-कारिणीं सदा ।4।

पीताम्बर-धरां सान्द्रां, पूर्ण-चन्द्र-निभाननाम् ।
वामे जिह्वां गदामन्ये, धारयन्तीं भजाम्यहम् ।5।

बिम्बोष्ठीं चारु-वदनां, सम-पीन-पयोधराम् ।
पान – पात्रं वैरि – जिह्वां, धारयन्तीं शिवां भजे ।6।

पीताम्बरालंकृत-पीत-वर्णां, सप्तोदरीं शर्व-मुखामरार्चिताम् ।
पीन-स्तनालंकृत-पीत-पुष्पां, सदा स्मरेऽहं बगला-मुखीं हृदि ।7।

कम्बु-कण्ठीं सु-ताम्रोष्ठीं, मद-विह्वल-चेतसाम् ।
भजेऽहं बगलां देवीं, पीताम्बर – धरां शिवाम् ।8।  

नमामि बगलां देवीमासव-प्रिय – भामिनीम् ।
भजेऽहं स्तम्भनार्थं च, गदां जिह्वां च विभ्रतीम् ।9।

कौलागमैक-संवेद्यां, सदा कौल-प्रियाम्बिकाम् ।
भजेऽहं सर्व – सिद्धयर्थ, वगलां चिन्मयीं हृदि ।10।

निधाय पादं हृदि वाम-पाणिनां, जिह्वां समुत्पाटन-कोप-संयुताम् ।
गदाभिघातेन च भाल-देशके, अम्बां भजेऽहं बगलां हृदम्बुजे ।11।

सुधाब्धौ रत्न-पर्यङ्के, मूले कल्प-तरोस्तथा ।
ब्रह्मादिभिः परिवृतां, बगलां भावयाम्यहम् ।12।

पीत-वर्णां मदाघूर्णां, दृढ-पीन-पयोधराम् ।
वन्देऽहं बगलां देवीं, स्तम्भनास्त्र-स्वरूपिणीम् ।13।

पीत-बन्धूक-पुष्पाभां, बुद्धि-नाशन-तत्पराम् ।
वन्देऽहं बगलां देवीं, स्तम्भनास्त्राधि-देवताम् ।14।

जिह्वाग्रमादाय कर-द्वयेन, छित्वा दधन्तीमुरु-शक्ति-युक्तां।
पीताम्बरां पीन-पयोधराढ्यां, सदा स्मरेऽहं बगलाम्बिकां हृदि ।15।

नमस्ते बगलां देवीं, जिह्वा-स्तम्भन-कारिणीम् ।
भजेऽहं शत्रु-नाशार्थं, मदिरासक्त-मानसाम् ।16।

  चतुर्भुजां त्रि-नयनां, पीत-वस्त्र-धरां शिवाम् ।
वन्देऽहं बगलां देवीं, शत्रु-स्तम्भन-कारिणीम् ।17।

सर्वावयव-शोभाढ्यां, सम-पीन-पयोधराम् ।
हृदि सम्भावये देवीं, बगलां सर्व- सिद्धिदाम् ।18।

पर – प्रज्ञापहारीं तां, पर – गर्व – प्रभेदिनीम् ।
पर – विद्या -भक्षिणीं तां, बगलां हृदि भावये ।19।

नमस्ते देव-देवेशीं, जिह्वा-स्तम्भन-कारिणीम् ।
पान-पात्र-गदा-युक्तां, भजेऽहं बगला-मुखीम् ।20।

स्वर्ण-सिंहासनासीनां, सुन्दराङ्गीं शुचि-स्मिताम् ।
बिम्बोष्ठीं चारु – नयनां, ध्याये पीन-पयोधराम् ।21।

अम्बां पीताम्बराढ्यामरुण-कुसुम-गन्धानुलेपां त्रि-नेत्रां ।
गम्भीरां कम्बु-कण्ठीं कठिन-कुच-युगां चारु-बिम्बाधरोष्ठीं।।
शत्रोर्जिह्वां च खड्गं शर-धनु-सहितां व्यक्त-गर्वाधि-रूढां ।
देवीं तां स्तम्भ – रूपां हृदि परिवरसितमम्बिकां तां भजामि ।22।

नमस्ते बगलां देवीं, शत्रु-वाक्-स्तम्भ-कारिणीम् ।
भजेऽहं विधि-पूर्वं त्वां, जयं देहि रिपून् दह ।23

जातवेद-मये देवि! जगज्जनन – कारिणि! ।
जय पीताम्बर- धरे!, बगले! ते नमो नमः ।24।

नानालङ्कार – शोभाढ्यां, नर-नारायण – प्रियाम् ।
वन्देऽहं बगलां देवीं, पर – ब्रह्माधि – दैवताम् ।25।

बाल-भानु-प्रतीकाशां, नील-कोमल-कुन्तलाम् ।
वन्देऽहं बगलां देवीं, स्तम्भनास्त्र-स्वरूपिणीम् ।26।

नमस्ते देव – देवेशि! नमः पन्नग भूषणे !।
पान-पात्र-युते देवि! बगले! त्वां नमाम्यहम‌् ।27।

कल्प- द्रुमाधो हेम-शिलां प्रविलसच्चित्तोल्लसत्-कान्तिम् ।
पञ्च-प्रेतासनमारूढां भक्त-जन-काम-वितरण-शीलाम् ।28।

विश्वेश्वरीं विश्व-वन्द्यां, विश्वानन्द-स्वरूपिणीम् ।
पीत-वस्त्रादि-संयुक्तां, पीतां हृदि निवासिनीम् ।29।

योषिदाकर्षणे शक्तां, फुल्ल-चम्पक-सन्निभाम् ।
दुष्ट-स्तम्भनमासक्तां, बगलांं स्तम्भिनीं भजे ।30।

योगिनी-कोटि-सहितां, पीताहारोप-चञ्चलाम् ।
बगलां परमां वन्दे, पर-ब्रह्य-स्वरूपिणीम् ।31।

पीतार्णव-समासीनां, पीत-गन्धानुलेपनाम् ।
पीतोपहार-रसिकां, भजे पीताम्बरां पराम् ।32।

श्रीबगला-हृदयोक्त ध्यान ( पीताम्बरा ध्यान मंत्र )
गम्भीरां च मदोन्मत्तां, स्वर्ण-कान्ति-सम-प्रभाम् । चतुर्भुजां त्रि-नयनां, कमलासन-संस्थिताम् ।।
ऊर्ध्व-केश-जटा-जूटां, कराल-वदनाम्बुजाम् । मुद्गरं दक्षिणे हस्ते, पाशं वामेन धारिणीम् ।।
रिपोर्जिह्वां त्रि-शूलं च, पीत-गन्धानुलेपनाम् । पीताम्बर-धरां सान्द्र-दृढ-पीन-पयोधराम् ॥
हेम-कुण्डल-भूषां च, पीत-चन्द्रार्ध-शेखराम् । पीत-भूषण-भूषाढ्यां, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

त्रैलोक्य-विजय- कवचोक्त ध्यान
चन्द्रोद्-भासित-मूर्धजां रिपु-रसां मुण्डाक्ष-माला-कराम् ।
बालां सत्स्रेक-चञ्चलां मधु-मदां रक्तां जटा-जूटिनीम् ।।
शत्रु-स्तम्भन-कारिणीं शशि-मुखीं पीताम्बरोद् भासिनीम् ।
प्रेतस्थां बगला-मुखीं भगवतीं कारुण्य-रूपां भजे ।।

ब्रह्मास्त्र-रक्षा-कवचोक्त ध्यान
शुद्ध-स्वर्ण-निभां रामां, पीतेन्दु-खण्ड-शेखराम् । पीत-गन्धानुलिप्ताङ्गीं, पीत-रत्न-विभूषणाम् ।।१
पीनोन्नत-कुचां स्निग्धां, पीतालाङ्गीं सुपेशलाम् । त्रि-लोचनांचतुर्हस्तां, गम्भीरांमद-विह्वलाम् ।।२
वज्रारि-रसना-पाश-मुद्गरं दधतीं करैः । महा-व्याघ्रासनां देवीं, सर्व-देव-नमस्कृताम् ।।३
प्रसन्नां सुस्मितां क्लिन्नां, सु-पीतां प्रमदोत्तमाम् । सु-भक्त-दुःख-हरणे, दयार्द्रांं दीन-वत्सलाम् ।
एवं ध्यात्वा परेशानि! बगला-कवचं स्मरेत् ।।४

श्रीबगला-खड्ग-माला-स्तोत्रोक्त्त ध्यान
मध्ये-सुधाब्धि मणि-मण्डित-रत्न-वेद्याम् । सिंहासनोपरि-गतां परि-पीत वस्त्राम्॥
भ्राम्यद्-गदां कर-निपीडित-वैरि-जिह्वाम् । पीताम्बरां कनक-माल्य-वतीं नमामि ।।

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Maa Baglamukhi Yagya ( Homam ) Puja Vidhi ( माँ बगलामुखी यज्ञ / हवन पूजा विधि )

साधकों के कल्याणार्थ माँ बगलामुखी के यज्ञ से सम्बन्धित विभिन्न गोपनीय विधियों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। कृपया किसी योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में ही इस साधना को सम्पन्न करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

मन्त्र के पुरश्चरण का एक आवश्यक अंग हवन भी है। नियत संख्या में मन्त्र-जप कर लेने के उपरान्त जप की कुल संख्या के दशांश मन्त्रों से हवन करने का विधान है। मन्त्र के साथ-साथ हवन करने का फल अलग से प्राप्त होता है। इसके साथ ही साथ यह भी विधान है कि यदि साधक हवन करने में अक्षम हो तो वह जप-संख्या के दशांश हवन करने के स्थान पर उससे दो गुनी संख्या में जप कर सकता है। यह भी कहा गया है कि हवन समय में मन्त्र वीर्य का काम करता है तथा हवन-सामग्री में प्रयुक्त पदार्थ उसके वंशाणु के समान कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप कर्मफल की प्राप्ति होती है और साधक का अभीष्ट सिद्ध होता है। इसलिए मन्त्र-सिद्धि के साथ उसके फल की प्राप्ति हेतु निर्दिष्ट द्रव्यों से हवन करना आवश्यक है। “मंत्रैश्च मन्त्र-सिद्धिस्तु जप-होमार्चनाद् भवेत्।”

अग्नि-जिह्वा-आवाहन : यज्ञ कर्म करते समय कामना के अनुसार ही अग्नि-जिह्वा का आवाहन किया जाता है। काम्य कर्म में ‘राजसी जिह्वा’, मारणादि क्रूर कर्मों में ‘तामसी जिह्वा’ तथा योग-कर्मों में ‘सात्विक जिह्वा’ का आवाहन किया जाता है।

राजसी जिह्वा : पद्मरागा, सुवर्णा, भद्रलोहिता, श्वेता, धूमिनी, कालिका।
तामसी जिह्वा : विश्वमूर्ति, स्फुर्लिंगिनी, धूम्रवर्णा, मनोजवा, लोहिता, कराला, काली।

सात्विक जिह्वा: हिरण्या, गगना, रक्ता, कृष्णा, सुप्रभा, बहुरूपा, अतिरिक्ता।
आकर्षण-कार्यों में ‘हिरण्या’, स्तम्भन कार्यों में ‘गगना’, विद्वेषण कार्य में ‘रक्ता’, मारणादि में ‘कृष्णा’, शान्ति कर्मों में ‘सुप्रभा’, उच्चाटन में ‘अतिरिक्ता’ तथा धनलाभ के लिए ‘बहुरूपा’ नामक जिह्वा का आवाह्न करके आहुति देनी चाहिए। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि होम करते समय अग्नि का वास पृथ्वी पर होना चाहिए।

अग्नि-नाम : शान्ति-कार्यों में ‘वरदा’, पूर्णाहुति में ‘मृडा’, पुष्टि-कार्यों में ‘बलद’, अभिचार-कर्मों में ‘क्रोध’, वशीकरण में ‘कामद’, बलिदान में ‘चूड़क’, लक्ष होम में ‘वद्दि’ नामक अग्नि का आवाह्न किया जाता है।

दिशा-विधान : शान्ति, पुष्टि कर्मों में पूर्वमुख, आकर्षण कार्य में उत्तरमुख होकर वायुकोणस्थ कुण्ड में हवन करना चाहिए। विद्वेषण में नैर्ऋत्यमुखी होकर वायुकोणस्थ कुण्ड में होम करें। मारण-कर्म में दक्षिणाभिमुख होकर दक्षिण दिशा में स्थित कुण्ड में होम करें। ग्रह, भूत आदि निवारण कर्म में वायुकोण की ओर मुख करके षट्कोण कुण्ड में हवन करना चाहिए।


हवन कुण्ड विधान

अलग-अलग फल-प्राप्ति के लिए अलग-अलग आकृति के कुण्डों में होम करने का विधान है, यथा –
वशीकरण में – चैकोर कुण्ड
आकर्षण में – त्रिकोण कुण्ड
उच्चाटन में – त्रिकोण कुण्ड
मारण में – षट्कोण कुण्ड में होम करना चाहिए।

लक्ष्मी-प्राप्ति, शान्ति, पुष्टि, विद्या-प्राप्ति, विघ्न निवारण हेतु चतुरस्त्र कुण्ड में होम करना चाहिए। वशीकरण, सम्मोहन, व्यापार, अर्थ-प्राप्ति, कीर्ति-वृद्धि के लिए त्रिकोणाकार कुण्ड में आहुति देने का विधान है। इसके अतिरिक्त विद्वेषण कर्म में वर्तुलाकार एवं उच्चाटन कर्म के लिए षट्कोण कुण्ड का निर्माण करना चाहिए। रक्षा-कर्म में चतुरस्त्र कुण्ड में हवन करें। हवन के लिए कुण्ड अथवा स्थण्डिल आवश्यक है

उत्तमं कुण्ड-होमं च स्थण्डिलं चैव मध्यमम्।
स्थण्डिलेन विना होमं निष्फलं भवति ध्रुवम्।।

कर्म भेद से यज्ञ-सामग्री-विधान ( Baglamukhi Havan Samagri List )
बगलोपासना में अलग-अलग कामना हेतु अलग-अलग हवनीय-द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। यथा –
प्रयोजन यज्ञीय-सामग्री विशिष्ट निर्देश/परामर्श

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Shabar Mantra Sarvasva By Sri Yogeshwaranand Ji शाबर मंत्र सर्वस्व

Shabar Mantra Sarvasva शाबर मंत्र सर्वस्व

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इस जगत् का मूल कारण ‘शब्द’ है। यह तथ्य ‘स्फोटवाद’ से स्पष्ट हो जाता है। ‘शब्द’ को ब्रह्म भी कहा गया है। यह तथ्य पूर्णतः प्रमाणित है कि प्रत्येक शब्द से उत्पन्न ध्वनि से कम्पन उत्पन्न होता है और प्रत्येक कम्पन एक रूप व्यक्त करता है। विज्ञान बहुत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि इस सृष्टि के सभी पदार्थों के बनने-बिगड़ने ( उत्पत्ति और विनाश ) का कारण कम्पन ही है। मन्त्र चूंकि शब्दों का एक समूह है, इसलिए मन्त्रों की शक्ति का महत्व सहज ही समझा जा सकता है। हमारे महर्षियों और विज्ञान अन्वेषकों ने इस तथ्य को बहुत अच्छे से जान लिया था और परिणामस्वरूप उन्होंने ऐसे शब्दों का चयन करके उन्हें इस प्रकार संयोजित किया कि उन शब्दों (मन्त्रों से, शब्दों के समूह से ) को विधि के अनुसार प्रयोग करने से जपकर्ता को उसके अभीष्ट की प्राप्ति हो सके। बहुत अन्वेषण के उपरान्त उन्होंने स्वयं द्वारा प्रतिपादित मन्त्रों के प्रयोगों की विधियों का भी सृजन किया। लेकिन वेदोक्त मन्त्रों में सावधानी और पूर्ण विधि-विधान का ज्ञान होना अति आवश्यक है अन्यथा उनका विपरीत परिणाम भी देखने को मिल सकता है। जबकि ‘शाबर’ मन्त्रों के उच्चारण मात्र से ही उनका प्रभाव प्रकट होने लगता है। उन्हें ऊर्जावान और जाग्रत बनाये रखने के लिए केवल थोड़ी सी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।

बगलामुखी सहस्रनाम Baglamukhi Sahasranamam in Hindi

बगलामुखी सहस्रनाम ( Baglamukhi Sahasranamam in Hindi )

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Maa Baglamukhi 1108 names in HIndi

ब्रह्मास्त्रायै नमः।
ब्रह्मविद्ययायै नमः।
ब्रह्ममायायै नमः।
सनातन्यै नमः।
ब्रह्मेश्यै नमः।
ब्रह्मकैवल्यायै नमः।
बगलायै नमः।
ब्रह्मचारिण्यै नमः।
नित्यानन्दायै नमः।
नित्यसिद्धायै नमः।।10।।

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