Durga Saptashati Keelak Stotram दुर्गा सप्तशती कीलक स्तोत्रम Lyrics

Durga Saptashati Keelak Stotram दुर्गा सप्तशती कीलक स्तोत्रम Lyrics

साधकों के कल्याणार्थ दुर्गा सप्तशती कीलकम स्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , सुमित गिरधरवाल जी 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।

विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, तीनों वेद ही जिनके तीन नेत्र हैं, जो कल्याण प्राप्ति के हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्धचन्द्र का मुकुट धारण करते हैं, उन भगवान् शिव को नमस्कार है। ।।१।।

मन्त्रों का जो अभिकीलक है अर्थात् मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शापरूपी कीलक का जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिये ( और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये ), यद्यपि सप्तशती के अतिरिक्त अन्य मंत्रों के जप में भी जो निरन्तर लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है। ।।२।।

उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति होती है; तथापि जो अन्य मन्त्रों का जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से ही सच्चिदानन्दस्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती हैं। ।।३।।

उन्हें अपने कार्य की सिद्धि के लिये मंत्र, औषधि तथा अन्य किसी साधन के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती | बिना जप के ही उनके उच्चाटन आदि समस्त अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं ।।४।।

इतना ही नहीं ,उनकी संपूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती है | लोगों के मन में यह शंका थी कि ‘जब केवल सप्तशती की उपासना से अथवा सप्तशती को छोड़कर अन्य मंत्रो की उपासना से भी समान रूप से सब कार्य सिद्ध होते हैं, तब इनमें श्रेष्ठ कौन सा साधन है?’ लोगों की इस शंका को सामने रखकर भगवान् शंकर ने अपने पास आए हुए जिज्ञासुओं को समझाया की यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्रोत ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है ।।५।।

तदनन्तर भगवती चण्डिकाके सप्तशती नामक स्त्रोत को महादेव जी ने गुप्त कर दिया। सप्तशती के पाठसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उसकी कभी समाप्ति नहीं होती; किंतु अन्य मंत्रो के जपजन्य पुण्य की समाप्ति हो जाती है।अतः भगवान् शिव ने अन्य मंत्रो की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठता का निर्णय किया उसे यथार्थ ही जानना चाहिये ।।६।।

अन्य मंत्रो का जप करनेवाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्त्रोत और जप का अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्ण रूप से ही कल्याण का भागी होता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित होकर भगवती कीसेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसाद रूप से ग्रहण करता है, उसी पर भगवती प्रसन्न होती है; अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती। इस प्रकार सिद्धि के प्रतिबंधक रूप कीलके द्वारा महादेव जी ने इस स्त्रोत को कीलित कर रखा है ।।७-८।।

जो पूर्वोक्त रीति से निष्कीलन करके इस सप्तशती स्त्रोत का प्रतिदिन स्पष्ट उच्चारणपूर्वक पाठ करता है, वह मनुष्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गन्धर्व भी होता है।।9।।

सर्वत्र विचरते रहने पर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता | वह अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागने के अनन्तर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।10।।

अतः कीलन को जानकार उसका परिहार करके ही सप्तशती का पाठ आरंभ करे। जो ऐसा नहीं करता, उसका नाश हो जाता है। इसलिये कीलकऔर निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही यह स्त्रोत निर्दोष होता है और विद्वान् पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का ही पाठ आरंभ करते है।।११।।

स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृश्टिगोचर होता है, वह सब देवी के प्रसाद का ही फल है। अतः इस कल्याणमय स्त्रोत का सदा जप करना चाहिये ।।१२।।

इस स्त्रोत का मंद स्वर से पाठ करने पर स्वल्प फल की प्राप्ति होती है और उच्च स्वर से पाठ करने पर पूर्ण फल की सिद्धि होती है। अतः उच्च स्वर से ही इसका पाठ आरंभ करना चाहिये ।।13।।

जिनके प्रसाद से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है, उन कल्याणमयी जगदम्बा की स्तुति मनुष्य क्यों नहीं करते ? ।।14।।

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दुर्गा सप्तशती कीलकम स्तोत्रम्

ॐ अस्य कीलकमंत्रस्य शिव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीमहासरस्वती देवता श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।।

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे । श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ।।१।।

सर्वमेतद्विजानियान्मंत्राणामभिकीलकम् । सो-अपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ।।२।।

सिध्यन्त्युच्याटनादीनि वस्तुनि सकलान्यपि। एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ।। ३।।

न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।विना जाप्येन सिद्ध्यते सर्वमुच्चाटनादिकम् ।।४।।

समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः। कृत्वा निमन्त्रयामास  सर्वमेवमिदं शुभम् ।।५।।

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः। समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावान्नियन्त्रणाम् ।।६।।

सोअपि  क्षेममवाप्नोति  सर्वमेवं न संशयः। कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ।।७।।

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति। इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम ।।८।।

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्। स सिद्धः स गणः सोअपि गन्धर्वो जायते नरः।।9।।

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते। नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ।।१०।।

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति। ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ।।११।।

सौभाग्यादि च यत्किञ्चित्त दृश्यते ललनाजने। तत्सर्वं  तत्प्रसादेन तेन  जाप्यमिदं शुभम् ।।१२।।

शनैस्तु जप्यमाने-अस्मिन स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः। भवत्येव  समग्रापि  ततः  प्रारभ्यमेव  तत् ।।१३।।

ऐश्वर्यं    यत्प्रसादेन   सौभाग्यारोग्यसम्पदः। शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः।।ॐ।।१४।।

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यदि आप माँ बगलामुखी साधना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए लेख पढ़ें –

यदि आप मंत्र साधना में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कीजिये। ये पुस्तकें आप अमेज़न से खरीद सकते हैं जिनका लिंक नीचे दिया जा रहा है –
श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
अनुष्ठानों का रहस्य
आगम रहस्य
श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् Shree Durga Ashtottara Shatanama Stotram Lyrics Hindi

Shree Durga Ashtottara Shatanama Stotram in Hindi ( दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र )

साधकों के कल्याणार्थ दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके प्रसाद ( पाठ या श्रवण ) – मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। यह स्तोत्र देवी भगवती के 108 नामों का वर्णन करता है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

शंकरजी पार्वती जी से कहते हैं-

कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनाम का वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद ( पाठ या श्रवण ) – मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। |1|

ॐ सती, साध्वी, भवप्रीता ( भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली ), भवानी, भवमोचनी ( संसार बंधन से मुक्त करने वाली ), आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी। |2|

पिनाकधारिणी ( शिव का त्रिशूलधारण करने वाली ), चित्रा, चण्डघण्टा ( प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली ) , महातपा ( भारी तपस्या करने वाली ), मन ( मनन-शक्ति ) , बुद्धि ( बोधशक्ति ), अहंकारा ( अहंता का आश्रय ), चित्तरूपा, चिता, चिति (चेतना)। |3|

सर्वमंत्रमयी, सत्ता (सत्-स्वरूपा), सत्यानन्दस्वरूपिणी, अनंता ( जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं ), भाविनी ( सबको उत्पन्न करने वाली ), भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य ), भव्या ( कल्याणरूपा ), अभव्या ( जिससे बढ़कर भव्य कहीं नहीं है ), सदागति। |4|

शाम्भवी ( शिवप्रिया ) , देवमाता, चिंता, रत्नप्रिया, सर्वविद्या, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी। |5|

अपर्णा ( तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली ), अनेकवर्णा ( अनेक रंगों वाली), पाटला ( लाल रंग वाली ), पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपरीधाना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली ), कलमंजीररंजिनी ( मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसान रहने वाली )। |6|

अमेयविक्रमा ( असीम पराक्रम वाली ), क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर ), सुन्दरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता। |7|

ब्राह्मी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी, पुरुषाकृति। |8|

विमला, उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रेमा, सर्ववाहनवाहना। |9|

निशुम्भ-शुम्भहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहन्त्री, चण्डमुण्डविनाशिनी। |10|

सर्वासुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी। |11|

अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति। |12|

अप्रौढा, प्रौढा, वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला। |13|

अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी। |14|

शिवदूती, कराली, अनंता ( विनाशरहिता ), परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मवादिनी। |15|

देवी पार्वती ! जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। |16|

वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। |17|

कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशतनाम का पाठ आरम्भ करे। |18|

देवि! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है। |19|

गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी ( अथवा दूध ), चीनी और मधु- इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यंत्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यंत्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य ( मोक्षरूप ) हो जाता है। |20|

भौमवती अमावस्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हो, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है। |21|

इस प्रकार दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पूरा हुआ।

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108 Names of Durga in Hindi ( दुर्गा जी के 108 नाम हिंदी में )

1-सती
2 – साध्वी
3 – भवप्रीता ( भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली )
4 – भवानी
5 – भवमोचनी ( संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
6 – आर्या
7 – दुर्गा
8 – जया
9 – आद्या
10 – त्रिनेत्रा
11 – शूलधारिणी
12 – पिनाकधारिणी ( शिव का त्रिशूलधारण करने वाली )
13 – चित्रा
14 – चण्डघण्टा ( प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली )
15 – महातपा ( भारी तपस्या करने वाली )
16 – मन ( मनन-शक्ति )
17 – बुद्धि ( बोधशक्ति )
18 – अहंकारा ( अहंता का आश्रय )
19 – चित्तरूपा
20 – चिता
21 – चिति (चेतना)
22 – सर्वमंत्रमयी
23 – सत्ता (सत्-स्वरूपा)
24 – सत्यानन्दस्वरूपिणी
25 – अनंता ( जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं )
26 – भाविनी ( सबको उत्पन्न करने वाली )
27 – भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )
28 – भव्या ( कल्याणरूपा )
29 – अभव्या ( जिससे बढ़कर भव्य कहीं नहीं है )
30 – सदागति
31 – शाम्भवी ( शिवप्रिया )
32 – देवमाता
33 – चिंता
34 – रत्नप्रिया
35 – सर्वविद्या
36 – दक्षकन्या
37 – दक्षयज्ञविनाशिनी
38 – अपर्णा ( तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली )
39 – अनेकवर्णा ( अनेक रंगों वाली)
40 – पाटला ( लाल रंग वाली )
41 – पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली)
42 – पट्टाम्बरपरीधाना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली ),
43 – कलमंजीररंजिनी ( मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसान रहने वाली )
44 – अमेयविक्रमा ( असीम पराक्रम वाली )
45 – क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
46 – सुन्दरी
47 – सुरसुन्दरी
48 – वनदुर्गा
49 – मातंगी
50 – मतंगमुनिपूजिता
51 – ब्राह्मी
52 – माहेश्वरी
53 – ऐन्द्री
54 – कौमारी
55 – वैष्णवी
56 – चामुण्डा
57 – वाराही
58 – लक्ष्मी
59 – पुरुषाकृति
60 – विमला
61 – उत्कर्षिणी
62 – ज्ञाना
63 – क्रिया
64 – नित्या
65 – बुद्धिदा
66 – बहुला
67 – बहुलप्रेमा
68 – सर्ववाहनवाहना
69 – निशुम्भ-शुम्भहननी
70 – महिषासुरमर्दिनी
71 – मधुकैटभहन्त्री
72 – चण्डमुण्डविनाशिनी
73 – सर्वासुरविनाशा
74 – सर्वदानवघातिनी
75 – सर्वशास्त्रमयी
76 – सत्या
77 – सर्वास्त्रधारिणी।
78 – अनेकशस्त्रहस्ता
79 – अनेकास्त्रधारिणी
80 – कुमारी
81 – एककन्या
82 – कैशोरी
83 – युवती
84 – यति
85 – अप्रौढा
86 – प्रौढा
87 – वृद्धमाता
88 – बलप्रदा
89 – महोदरी
90 – मुक्तकेशी
91 – घोररूपा
92 – महाबला
93 – अग्निज्वाला
94 – रौद्रमुखी
95 – कालरात्रि
96 – तपस्विनी
97 – नारायणी
98 – भद्रकाली
99 – विष्णुमाया
100 – जलोदरी
101 – शिवदूती
102 – कराली
103 – अनंता ( विनाशरहिता )
104 – परमेश्वरी
105 – कात्यायनी
106 – सावित्री
107 – प्रत्यक्षा
108 – ब्रह्मवादिनी

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शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ।1।

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी । आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ।२।

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः । मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ।३।

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।४।

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा । सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ।५।

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती । पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनि ।६।

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी । वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ।७।

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुंडा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः।८।

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ।९।

निशुम्भशुम्भहननी  महिषासुरमर्दिनी। मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ।१०।

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा।११।

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी । कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः।१२।

अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा । महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।१३।

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ।१४।

शिवदूती कराली च अनंता परमेश्वरी । कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्राह्मवादिनी ।१५।

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ।१६।

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च । चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शास्वतीम् ।१७।

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टाकम्।18।

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि । राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ।19।

गोरोचनालक्तकुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण । विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ।20।

भौमावस्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते। विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ।21।

इति श्री विश्वसारतन्त्रे दुर्ग्राष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्

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यदि आप माँ बगलामुखी साधना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए लेख पढ़ें –

यदि आप मंत्र साधना में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कीजिये। ये पुस्तकें आप अमेज़न से खरीद सकते हैं जिनका लिंक नीचे दिया जा रहा है –
श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
अनुष्ठानों का रहस्य
आगम रहस्य
श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

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Sri Durga Kavach in Hindi श्री दुर्गा देव्याः कवचं


Sri Durga Kavach in Hindi and Sanskrit ( दुर्गा कवच )

साधकों के कल्याणार्थ दुर्गा कवच यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है,उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु रहित हो, सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है। कवच का पाठ करने वाला पुरुष अपनी कीर्ति से विभूषित भूतल पर अपने सुयश से साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त होता है। जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परम्परा बनी रहती है। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

ॐ श्री चण्डिका देवी को नमस्कार है।

मार्कण्डेय जी ने कहा हे पितामह! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये। |1|

ब्रह्माजी बोले – ब्रह्मन्! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करनेवाला है। महामुने! उसे श्रवण करो। |2|

देवीकी नौ मूर्तियाँ हैं , जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं। उनके पृथक पृथक नाम बतलाये जाते हैं। प्रथम नाम शैलपुत्री (हिमालय की पुत्री पार्वती देवी) है, दूसरी मूर्तिका नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरूप चन्द्रघण्टा के नामसे प्रसिद्ध है। चौथी मूर्ति को कूष्माण्डा कहते हैं। पाँचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है। देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं। सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरूप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध है। नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है।  ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेदभगवान् के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं।|3-5|

जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमङ्गल नहीं होता। युद्ध के समय संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखाई देती।  उन्हें शोक, दु:ख और भय की प्राप्ति नहीं होती। |6-7|

जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम नि:सन्देह रक्षा करती हो। |8|

चामुण्डादेवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं।  ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है।  वैष्णवी देवी गरुड़ पर ही आसन जमाती हैं। |9|

माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं। कौमारी का वाहन मयूर है। भगवान् विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मीदेवी कमल के आसन पर विराजमान हैं और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं। |10|

वृषभ पर आरूढ़ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है। ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूिषत हैं। |11|

इस प्रकार ये सभी माताएँ सब प्रकार की योग शक्तियों से सम्पन्न हैं। इनके सिवा और भी बहुत-सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं। |12|

ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोध में भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिए रथ पर बैठी दिखाई देती हैं। ये शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्गधनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथ में धारण करती हैं। दैत्यों के शरीर का नाश करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना यही उनके शस्त्र-धारण का उद्देश्य है। |13-15|

महान् रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान् बल और महान् उत्साह वाली देवी! तुम महान् भय का नाश करने वाली हो, तुम्हें नमस्कार है। |16|

तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बिक मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री (इन्द्रशक्ति) मेरी रक्षा करे। अग्निकोण में अग्निशक्ति,दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्यकोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करे। |17-18|

उत्तर दिशा में कौमारी और ईशानकोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करे। ब्रह्माणि! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करे। |19|

इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनानेवाली चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करे। जया आगे से और विजया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करे। |20|

वामभाग में अजिता और दक्षिण भाग में अपराजिता रक्षा करे। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे। उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करे। |21|

ललाट में मालाधरी रक्षा करे और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे। भौंहों के मध्य भाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करे। |22|

दोनों नेत्रों के मध्य भाग में शंखिनी और कानों में द्वारवासिनी रक्षा करे। कालिका देवी कपोलों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूल भाग की रक्षा करे। |23|

नासिका में सुगन्धा और ऊपर के ओठ में चर्चिका देवी रक्षा करे। नीचे के ओठ में अमृतकला तथा जिह्वा में सरस्वती रक्षा करे। |24|

कौमारी दाँतों की और चण्डिका कण्ठप्रदेश की रक्षा करे। चित्रघण्टा गले की घाँटी की और महामाया तालु में रहकर रक्षा करे। |25|

कामाक्षी ठोढी की और सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धरी पृष्ठवंश (मेरुदण्ड) में रहकर रक्षा करे। |26|

कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और कण्ठ की नली में नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधों में खड्गिनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी रक्षा करे। |27|

दोनों हाथों में दण्डिनी और उँगलियों में अम्बिका रक्षा करे। शूलेश्वरी नखों की रक्षा करे। कुलेश्वरी कुक्षि (पेट) में रहकर रक्षा करे। |28|

महादेवी दोनों स्तनों की और शोकविनाशिनी देवी मन की रक्षा करे। ललिता देवी हृदय में और शूलधारिणी उदर में रहकर रक्षा करे। |29|

नाभि में कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करे। पूतना और कामिका लिङ्ग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करे। |30|

भगवती कटि भाग में और विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करे। सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करे। |31|

नारसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी दोनों चरणों के पृष्ठभाग की रक्षा करे। श्रीदेवी पैरों की उँगलियों में और तलवासिनी पैरों के तलुओं में रहकर रक्षा करे। |32|

अपनी दाढों के कारण भयंकर दिखायी देनेवाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करे। रोमावलियों के छिद्रों में कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करे। |33|

पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, माँस, हड्डी और मेद की रक्षा करे। आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करे। |34|

मूलाधार आदि कमल-कोशों में पद्मावती देवी और कफ में चूड़ामणि देवी स्थित होकर रक्षा करे। नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करे।  जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रहकर रक्षा करे। |35|

ब्रह्माणी! आप मेरे वीर्य की रक्षा करें। छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करे। |36|

हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करे। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याण शोभना मेरे प्राण की रक्षा करे। |37|

रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करे। |38|

वाराही आयु की रक्षा करे। वैष्णवी धर्म की रक्षा करे तथा चक्रिणी ( चक्र धारण करने वाली ) देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्या की रक्षा करे। |39|

इन्द्राणि! आप मेरे गोत्र की रक्षा करें। चण्डिके! तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो। महालक्ष्मी पुत्रों की रक्षा करे और भैरवी पत्नी की रक्षा करे। |40|

मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करे। राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करे तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी सम्पूर्ण भयों से मेरी रक्षा करे। |41|

देवी! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, रक्षा से रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो; क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो। |42|

यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी न जाए। कवच का पाठ करके ही यात्रा करे। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है, वहाँ-वहाँ उसे धन-लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है। वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है, उस-उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलना रहित महान् ऐश्वर्य का भागी होता है। |43-44|

कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय होता है। |45|

देवी का यह कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है,उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु रहित हो, सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है। |46-47|

मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जंगम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष – ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता। |48|

इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने मन्त्र-यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं। ये ही नहीं, पृथ्वी पर विचरने वाले ग्राम देवता, आकाशचारी देव विशेष, जल के सम्बन्ध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता, अपने जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुल देवता, माला (कण्ठमाला आदि), डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरण करनेवाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष , गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किए रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं।  कवचधारी पुरुष को राजा से सम्मान-वृद्धि प्राप्ति होती है।  यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है। |49-52|

कवच का पाठ करने वाला पुरुष अपनी कीर्ति से विभूषित भूतल पर अपने सुयश से साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त होता है। जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परम्परा बनी रहती है। |53-54|

फिर देह का अन्त होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से नित्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवतोओं के लिए भी दुर्लभ है। |55|

वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता और कल्याण शिव के साथ आनन्द का भागी होता है। |56|
।। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।

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श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
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श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
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बीज नाम मन्त्रात्मक श्रीदुर्गा सप्तशती

बीज-नाम-मन्त्रात्मक श्रीदुर्गा सप्तशती ( बीजात्मक दुर्गा सप्तशती )

साधकों के कल्याणार्थ विभिन्न गोपनीय विधियों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। कृपया किसी योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में ही इस साधना को सम्पन्न करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें – 9540674788 , 9917325788 ( whatsapp ) Email : shaktisadhna@yahoo.com

बीज-नाम-मन्त्रात्मक
श्रीदुर्गा सप्तशती
प्रथम चरितम् – प्रथमोऽध्यायः
श्रीगुरवे नमः, श्रीगणेशाय नमः।


विनियोग – ॐ अस्य प्रथम-चरितस्य श्रीब्रह्मा ऋषिः। गायत्री छन्दः। श्रीमहा-काली देवता। नन्दा शक्तिः। रक्त-दन्तिका बीजं। अग्निः तत्त्वं। ऋग्-वेदः स्वरूपं। श्रीमहा-काली-प्रीत्यर्थे प्रथम-चरित-जपे (पाठे) विनियोगः।

ऋष्यादि-न्यास

श्रीब्रह्मा-ऋषये नमः शिरसि।
गायत्री-छन्दसे नमः मुखे।
श्रीमहा-काली-देवतायै नमः हृदि।
नन्दा-शक्तये नमः नाभौ।
रक्त-दन्तिका-बीजाय नमः लिङ्गे।
अग्नि-तत्त्वाय नमः गुह्ये।
ऋग्-वेद- स्वरूपाय नमः पादौ। श्रीमहा-काली-प्रीत्यर्थे प्रथम-चरित-जपे (पाठे) विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।


।।श्रीमहा-काली-ध्यान।।
ॐ खड्गं चक्र-गदेषु-चाप-परिघान् शूलं भुशुण्डी शिरः।
शङ्ख सन्दधतीं करैस्त्रि-नयनां सर्वाङ्ग-भूषावृताम्।।
नीलाश्म-द्युतिमास्य-पाद-दशकां सेवे महा-कालिकाम्।
यामस्तोत् स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधुं कैटभम्।।


।।ॐ नमश्चण्डिकायै।।
ॐ ऐं श्रीं आद्यायै नमः।।१
ॐ ऐं ह्रीं काल्यै नमः।।२
ॐ ऐं क्लीं कराल्यै नमः।।३
ॐ ऐं श्रीं महा-काल्यै नमः।।४
ॐ ऐं प्रीं कल्याण्यै नमः।।५ ॐ ऐं ह्रां कलावत्यै नमः।।६
ॐ ऐं ह्रीं महा-काल्यै नमः।।७
ॐ ऐं स्त्रों कलि-दर्पघ्न्यै नमः।।८
ॐ ऐं प्रें कपर्दीश-कृपान्वितायै नमः।।९
ॐ ऐं म्रीं कालिकायै नमः।।१०


ॐ ऐं हल्रीं काल-मात्र्यै नमः।।११ ॐ ऐं म्लीं कालानल-सम-द्युत्यै नमः।।१२
ॐ ऐं स्त्रीं कपर्दिन्यै नमः।।१३
ॐ ऐं क्रां करालास्यायै नमः।।१४
ॐ ऐं हस्लीं करुणामृत-सागरायै नमः।।१५
ॐ ऐं क्रीं कृपा-मय्यै नमः।।१६
ॐ ऐं चां कृपाधारायै नमः।।१७
ॐ ऐं भें कृपा-पारायै नमः।।१८
ॐ ऐं क्रीं कृपागमायै नमः।।१९
ॐ ऐं वैं कुशान्वै नमः।।२०

ॐ ऐं ह्रौं कपिलायै नमः।।२१
ॐ ऐं युं कृष्णायै नमः।।२२
ॐ ऐं जुं कृष्णानन्द-विवर्धन्यै नमः।।२३
ॐ ऐं हं काल-रात्र्यै नमः।।२४
ॐ ऐं शं काम-रूपायै नमः।।२५
ॐ ऐं रों काम-पाश-विमोचन्यै नमः।।२६
ॐ ऐं यं कादम्बिन्यै नमः।।२७
ॐ ऐं विं कला-धारायै नमः।।२८
ॐ ऐं वैं कलि-कल्मष-नाशिन्यै नमः।।२९
ॐ ऐं चें कुमारी-पूजन-प्रीतायै नमः।।३०
ॐ ऐं ह्रीं कुमारी-पूजकालयायै नमः।।३१

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