Baglamukhi Kalp Vidhan
वास्तव में ही माँ बगला प्रत्येक क्षेत्र में अनुपमेय हैं। उनका प्रत्येक प्रयोग, मन्त्र-तन्त्र सभी अतुलनीय और अचूक हैं। अतः यही कारण है कि उन्हें ब्रह्मास्त्र की संज्ञा दी गयी है। श्री बगलामुखी कल्प-विधान भी उनका ऐसा ही भीषण प्रयोग है जो प्रबलतम शत्रु के द्वारा साधक के विरुद्ध किए गए अभिचार कर्मों को ध्वस्त करने हेतु प्रयोग में लाया जाता है। इसका प्रभाव अति विलक्षण है जो घोरतम अभिचार कर्म को ध्वस्त करने में अतुलनीय है। इस पाठ को पढ़ते समय साधक को अपनी दोनों भवों के मध्य त्रिकुटी पर ध्यान रखते हुए बिना गिनती किए लगातार पाठ करना चाहिए। यदि तीनों संध्याओं में इस पाठ को किया जाए तो साधक को बिना जप किए ही यह सिद्धि प्राप्त हो जाती है। यदि साधक तीनों संध्याओं में पाठ करके रात्रि में तिल की खीर से एक माह तक प्रतिदिन हवन करे तो उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। भगवती की कृपा से उसे समस्त सिद्धियां हस्तगत हो जाती हैं।
इस कल्प-विधान में सर्वप्रथम यन्त्रराज का पूजन किया जाता है, उसके बाद स्तोत्र के पाठ का विधान है। इसके प्रयोग से अभिचार कर्मों का शमन तो होता ही है साथ ही उसे दशों दिशाओं में सुरक्षा चक्र भी उपलब्ध होता है क्योंकि इससे सभी दिशाओं का दिग्बन्धन हो जाता है।
इस स्तोत्र का तान्त्रिक प्रयोग भी किया जाता है। यदि किसी शत्रु द्वारा अभिचार कर्म के माध्यम से किसी मकान अथवा प्रतिष्ठान को बांध दिया गया हो और घर या प्रतिष्ठान ‘निर्जन’ और ‘उजाड़’ जैसा प्रतीत होता हो तो साधक को इस स्तोत्र का 108 बार पाठ करके जल को अभिमंत्रित कर लेना चाहिए। तदोपरान्त उस जल को लेकर घर अथवा प्रतिष्ठान के प्रवेश द्वार पर अन्दर की ओर मुंह करके खड़ा हो जाना चाहिए। पीठ बाहर की ओर होनी चाहिए। उसी स्थिति में वह अभिमंत्रित जल लेकर उसे अपने सिर से होकर द्वार के बाहर की ओर फेंक देना चाहिए। इसके उपरान्त इस स्तोत्रा का पुनः ग्यारह बार पाठ करके, जल को अभिमन्त्रिात करके पूरे घर या प्रतिष्ठान में छिड़क देना चाहिए। इस स्तोत्र के प्रभाव से वह घर अथवा प्रतिष्ठान पुनः जीवन्त हो उठता है। व्यापार उन्नति करने लगता है और घर की समस्त बाधाएं शान्त हो जाती हैं।
यह मेरा अनुभूत प्रयोग है। दिल्ली में मेरे एक मित्र हैं जो कि एक बिल्डर हैं। एक बार किसी शत्रु ने उनके व्यवसाय पर कोई अभिचारिक कर्म करके बन्धन कर दिया। मेरे मित्र ने मुझसे उस प्रयोग का निवारण करने हेतु निवेदन किया। उनकी यह स्थिति हो गयी थी कि कहने के लिए तो उनके पास करोड़ों की प्राॅपर्टी थी। 70-72 लोगों का स्टाफ उनके यहां काम करता था। घर में तीन-चार विदेशी गाड़ियां थीं। लेकिन स्टाॅफ का वेतन बैंक के कर्ज से दिया जाता। गाड़ियों के लिए पैट्रोल या डीजल पैट्रोल पम्प से उधार लिया जाता। उनकी कई इमारतों को नो आब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं मिला। कई इमारतों का निर्माण किसी न किसी कारणों से बीच में रुक गया। कहने का तात्पर्य यह कि उनके हाथ में मुद्रा के रूप में एक पैसा भी नहीं था। बैंक का ब्याज और ओवरड्राफ्ट बढ़ता जा रहा था। कोई भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पा रहा था। उनके बार-बार आग्रह करने पर मैंने उनके शीशे से बने कार्यालय में इस पाठ से एक हवन किया। हवन में जैसे ही पूर्णाहुति डाली गयी तो अचानक जोर से एक आवाज आयी। ऐसा लगा कि आफिस का कोई शीशा एक तीव्र आवाज के साथ टूट गया हो। हम सभी ने एकदम चारों ओर देखा लेकिन कोई भी शीशा टूटा नहीं था। शायद वहां कोई आत्मा थी जो पूर्णाहुति के साथ ही वहां से प्रस्थान कर गयी थी।
इसके बाद उनका व्यवसाय दिन दूनी रात चैगुनी उन्नति करने लगा। कुछ दिन बाद ही वे सपरिवार यूरोप की यात्रा पर भी गए। और भी काफी कुछ बढ़ोतरी उनके व्यवसाय में हुई।
कहने का तात्पर्य यह है कि कल्प-विधान का यह पाठ एक तीव्र तान्त्रिक प्रयोग है जो तुरन्त उत्तम परिणाम प्रदान करता है।