Maa Baglamukhi Yagya ( Homam ) Puja Vidhi ( माँ बगलामुखी यज्ञ / हवन पूजा विधि )

साधकों के कल्याणार्थ माँ बगलामुखी के यज्ञ से सम्बन्धित विभिन्न गोपनीय विधियों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। कृपया किसी योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में ही इस साधना को सम्पन्न करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

मन्त्र के पुरश्चरण का एक आवश्यक अंग हवन भी है। नियत संख्या में मन्त्र-जप कर लेने के उपरान्त जप की कुल संख्या के दशांश मन्त्रों से हवन करने का विधान है। मन्त्र के साथ-साथ हवन करने का फल अलग से प्राप्त होता है। इसके साथ ही साथ यह भी विधान है कि यदि साधक हवन करने में अक्षम हो तो वह जप-संख्या के दशांश हवन करने के स्थान पर उससे दो गुनी संख्या में जप कर सकता है। यह भी कहा गया है कि हवन समय में मन्त्र वीर्य का काम करता है तथा हवन-सामग्री में प्रयुक्त पदार्थ उसके वंशाणु के समान कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप कर्मफल की प्राप्ति होती है और साधक का अभीष्ट सिद्ध होता है। इसलिए मन्त्र-सिद्धि के साथ उसके फल की प्राप्ति हेतु निर्दिष्ट द्रव्यों से हवन करना आवश्यक है। “मंत्रैश्च मन्त्र-सिद्धिस्तु जप-होमार्चनाद् भवेत्।”

अग्नि-जिह्वा-आवाहन : यज्ञ कर्म करते समय कामना के अनुसार ही अग्नि-जिह्वा का आवाहन किया जाता है। काम्य कर्म में ‘राजसी जिह्वा’, मारणादि क्रूर कर्मों में ‘तामसी जिह्वा’ तथा योग-कर्मों में ‘सात्विक जिह्वा’ का आवाहन किया जाता है।

राजसी जिह्वा : पद्मरागा, सुवर्णा, भद्रलोहिता, श्वेता, धूमिनी, कालिका।
तामसी जिह्वा : विश्वमूर्ति, स्फुर्लिंगिनी, धूम्रवर्णा, मनोजवा, लोहिता, कराला, काली।

सात्विक जिह्वा: हिरण्या, गगना, रक्ता, कृष्णा, सुप्रभा, बहुरूपा, अतिरिक्ता।
आकर्षण-कार्यों में ‘हिरण्या’, स्तम्भन कार्यों में ‘गगना’, विद्वेषण कार्य में ‘रक्ता’, मारणादि में ‘कृष्णा’, शान्ति कर्मों में ‘सुप्रभा’, उच्चाटन में ‘अतिरिक्ता’ तथा धनलाभ के लिए ‘बहुरूपा’ नामक जिह्वा का आवाह्न करके आहुति देनी चाहिए। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि होम करते समय अग्नि का वास पृथ्वी पर होना चाहिए।

अग्नि-नाम : शान्ति-कार्यों में ‘वरदा’, पूर्णाहुति में ‘मृडा’, पुष्टि-कार्यों में ‘बलद’, अभिचार-कर्मों में ‘क्रोध’, वशीकरण में ‘कामद’, बलिदान में ‘चूड़क’, लक्ष होम में ‘वद्दि’ नामक अग्नि का आवाह्न किया जाता है।

दिशा-विधान : शान्ति, पुष्टि कर्मों में पूर्वमुख, आकर्षण कार्य में उत्तरमुख होकर वायुकोणस्थ कुण्ड में हवन करना चाहिए। विद्वेषण में नैर्ऋत्यमुखी होकर वायुकोणस्थ कुण्ड में होम करें। मारण-कर्म में दक्षिणाभिमुख होकर दक्षिण दिशा में स्थित कुण्ड में होम करें। ग्रह, भूत आदि निवारण कर्म में वायुकोण की ओर मुख करके षट्कोण कुण्ड में हवन करना चाहिए।


हवन कुण्ड विधान

अलग-अलग फल-प्राप्ति के लिए अलग-अलग आकृति के कुण्डों में होम करने का विधान है, यथा –
वशीकरण में – चैकोर कुण्ड
आकर्षण में – त्रिकोण कुण्ड
उच्चाटन में – त्रिकोण कुण्ड
मारण में – षट्कोण कुण्ड में होम करना चाहिए।

लक्ष्मी-प्राप्ति, शान्ति, पुष्टि, विद्या-प्राप्ति, विघ्न निवारण हेतु चतुरस्त्र कुण्ड में होम करना चाहिए। वशीकरण, सम्मोहन, व्यापार, अर्थ-प्राप्ति, कीर्ति-वृद्धि के लिए त्रिकोणाकार कुण्ड में आहुति देने का विधान है। इसके अतिरिक्त विद्वेषण कर्म में वर्तुलाकार एवं उच्चाटन कर्म के लिए षट्कोण कुण्ड का निर्माण करना चाहिए। रक्षा-कर्म में चतुरस्त्र कुण्ड में हवन करें। हवन के लिए कुण्ड अथवा स्थण्डिल आवश्यक है

उत्तमं कुण्ड-होमं च स्थण्डिलं चैव मध्यमम्।
स्थण्डिलेन विना होमं निष्फलं भवति ध्रुवम्।।

कर्म भेद से यज्ञ-सामग्री-विधान ( Baglamukhi Havan Samagri List )
बगलोपासना में अलग-अलग कामना हेतु अलग-अलग हवनीय-द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। यथा –
प्रयोजन यज्ञीय-सामग्री विशिष्ट निर्देश/परामर्श

यदि आप माँ बगलामुखी साधना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए लेख पढ़ें –

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इस जगत् का मूल कारण ‘शब्द’ है। यह तथ्य ‘स्फोटवाद’ से स्पष्ट हो जाता है। ‘शब्द’ को ब्रह्म भी कहा गया है। यह तथ्य पूर्णतः प्रमाणित है कि प्रत्येक शब्द से उत्पन्न ध्वनि से कम्पन उत्पन्न होता है और प्रत्येक कम्पन एक रूप व्यक्त करता है। विज्ञान बहुत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि इस सृष्टि के सभी पदार्थों के बनने-बिगड़ने ( उत्पत्ति और विनाश ) का कारण कम्पन ही है। मन्त्र चूंकि शब्दों का एक समूह है, इसलिए मन्त्रों की शक्ति का महत्व सहज ही समझा जा सकता है। हमारे महर्षियों और विज्ञान अन्वेषकों ने इस तथ्य को बहुत अच्छे से जान लिया था और परिणामस्वरूप उन्होंने ऐसे शब्दों का चयन करके उन्हें इस प्रकार संयोजित किया कि उन शब्दों (मन्त्रों से, शब्दों के समूह से ) को विधि के अनुसार प्रयोग करने से जपकर्ता को उसके अभीष्ट की प्राप्ति हो सके। बहुत अन्वेषण के उपरान्त उन्होंने स्वयं द्वारा प्रतिपादित मन्त्रों के प्रयोगों की विधियों का भी सृजन किया। लेकिन वेदोक्त मन्त्रों में सावधानी और पूर्ण विधि-विधान का ज्ञान होना अति आवश्यक है अन्यथा उनका विपरीत परिणाम भी देखने को मिल सकता है। जबकि ‘शाबर’ मन्त्रों के उच्चारण मात्र से ही उनका प्रभाव प्रकट होने लगता है। उन्हें ऊर्जावान और जाग्रत बनाये रखने के लिए केवल थोड़ी सी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।