Baglamukhi Mala Mantra ( बगलामुखी माला मंत्र )
बगलामुखी माला मंत्र के पाठ से बड़ी से बड़ी विपत्ति दूर हो जाती है। भयंकर से भयंकर गृह दोष भी इसके पाठ से दूर होता है। जिन लोगो की कुंडली में पितृ दोष, कालसर्प दोष अथवा अन्य कोई दोष है जिसकी वजह से आपके जीवन में कष्ट हैं तो आप बगलामुखी माला मंत्र का पाठ करके अपने जीवन को कष्टों से मुक्त कर सकते हैं।
बगलामुखी माला मंत्र हिंदी एवं संस्कृत मे
ॐ नमो भगवति ॐ नमो वीरप्रतापविजयभगवति बगलामुखि मम सर्वनिन्दकानां सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय, ब्राह्मीं मुद्रय मुद्रय बुद्धिं विनाशय विनाशय, अपरबुद्धिं कुरु कुरु आत्मविरोधिनां शत्रुणां शिरो ललाट मुख नेत्र कर्ण नासिकोरु पद अणुरेणु दन्तोष्ठ जिह्वा तालु गुह्य गुद कटि जानू सर्वांगेषु केशादिपादपर्यन्तं पादादिकेशपर्यन्तं स्तम्भय स्तम्भय, खें खीं मारय मारय, परमन्त्र परयन्त्र परतन्त्राणि छेदय छेदय, आत्ममन्त्रयन्त्रतन्त्राणि रक्ष रक्ष, सर्वग्रहं निवारय निवारय, व्याधिं विनाशय विनाशय, दुःखं हर हर, दारिद्रयं निवारय निवारय, सर्वमन्त्रस्वरूपिणी, सर्वतन्त्रस्वरूपिणी, सर्वशिल्पप्रयोगस्वरूपिणी, सर्वतत्वस्वरूपिणी, दुष्टग्रह भूतग्रह आकाशग्रह पाषाणग्रह सर्व चाण्डालग्रह यक्षकिन्नरकिम्पुरुषग्रह भूतप्रेतपिशाचानां शाकिनी डाकिनीग्रहाणां पूर्वदिशां बन्धय बन्धय, वार्तालि मां रक्ष रक्ष, दक्षिणदिशां बन्धय बन्धय , किरातवार्तालि मां रक्ष रक्ष,पश्चिमदिशां बन्धय बन्धय , स्वप्नवार्तालि मां रक्ष रक्ष, उत्तरदिशां बन्धय बन्धय, कालि मां रक्ष रक्ष, ऊर्ध्वदिशं बन्धय-बन्धय, उग्रकालि मां रक्ष रक्ष, पातालदिशं बन्धय बन्धय , बगलापरमेश्वरि मां रक्ष रक्ष, सकलरोगान् विनाशय विनाशय, सर्वशत्रून् पलायनाय पञ्चयोजनमध्ये राजजनस्त्री वशतां कुरु कुरु , शत्रून् दह दह, पच पच, स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, मम शत्रून् उच्चाटय उच्चाटय, हुं फट् स्वाहा।
Baglamukhi Mala Mantra Video / Audio Mp3
बगलामुखी माला मंत्र प्रयोग
सर्वप्रथम माँ बगलामुखी के बीज मंत्र की दीक्षा ग्रहण करें। उसके पश्चात आप बगलामुखी माला मंत्र का पाठ कर सकते हैं। नियमित रूप से इसका कम से काम 51 अथवा 108 पाठ करें। पाठ करने से पहले बगलामुखी कवच का पाठ भी अवश्य करें।
बगलामुखी माला मंत्र जाप करने का नियम ( बगलामुखी माला मंत्र जप विधि )
माँ बगलामुखी के किसी भी मंत्र को करने से पहले उनके उस मंत्र की दीक्षा लेना अनिवार्य हैं। इसलिए बगलामुखी माला मंत्र का पाठ करने से पहले आप इसकी दीक्षा लें। इसकी साधना रात्रि में 10 से 3 बजे के बीच करें। पीले रंग के कपड़े पहनकर पीले रंग का आसान बिछा उस पर बैठ जायें। सबसे पहले आचमन करें। इसके पश्चात दीपक जलाएं। दीपक आप गाय के घी का , सरसो के तेल का , अथवा तिल के तेल का जला सकते हैं। फिर गुरु का ध्यान करके गुरु मंत्र का कम से कम एक माला जप करें। उसके पश्चात गणेश जी का ध्यान करके साधना में सफलता के लिए उनसे प्रार्थना करें । “ॐ गं गणपतये नमः ” इस मंत्र का कम से कम 11 बार जप करें। इसके पश्चात भगवान भैरव का ध्यान करें एवं उनसे माँ बगलामुखी साधना की आज्ञा मांगे। माँ बगलामुखी का ध्यान करें। उनको पीला प्रसाद जैसे बादाम , किशमिश , बेसन की बनी कोई मिठाई , कोई भी फल अर्पित करें । बगलामुखी कवच का पाठ करें। बगलामुखी बीज मंत्र का हल्दी की माला पर कम से कम 1 माला का जप करें। इसके पश्चात बगलामुखी माला मंत्र का पाठ करें। इसके पश्चात १ माला मृत्युंजय मंत्र का जप करें
बगलामुखी साधना से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें – श्री योगेश्वरानंद जी (9917325788 ) सुमित गिरधरवाल जी ( 9540674788 ) ईमेल करें – shaktisadhna@yahoo.com or baglamukhimantra@gmail.com

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Baglamukhi Mala Mantra benefits : Baglamukhi Mala Mantra is very well known for success in love, studies, money and business. Baglamukhi mantra gives overall success in life. It is the best mantra to win in court cases. It is more effective in destruction of the enemies. Baglamukhi Mala Mantra is also used for Grah Shanti (Grah Dosha Nivaran).
For Baglamukhi Mantra Diksha, Mantra Pronunciation, Baglamukhi Jaap and other sadhana related guidance email to shaktisadhna@yahoo.com or sumitgirdharwal@yahoo.com or call on 9917325788 (Shri Yogeshwaranand Ji) or 9540674788 (Sumit Girdharwal Ji ).Baglamukhi Mala Mantra in Hindi and Sanskrit
oṃ namo bhagavati oṃ namo vīrapratāpavijayabhagavati bagalāmukhi mama sarvanindakānāṃ sarvaduṣṭānāṃ vācaṃ mukhaṃ padaṃ stambhaya stambhaya, brāhmīṃ mudraya mudraya buddhiṃ vināśaya vināśaya, aparabuddhiṃ kuru kuru ātmavirodhināṃ śatruṇāṃ śiro lalāṭa mukha netra karṇa nāsikoru pada aṇureṇu dantoṣṭha jihvā tālu guhya guda kaṭi jānū sarvāṃgeṣu keśādipādaparyantaṃ pādādikeśaparyantaṃ stambhaya stambhaya, kheṃ khīṃ māraya māraya, paramantra parayantra paratantrāṇi chedaya chedaya, ātmamantrayantratantrāṇi rakṣa rakṣa, sarvagrahaṃ nivāraya nivāraya, vyādhiṃ vināśaya vināśaya, duḥkhaṃ hara hara, dāridrayaṃ nivāraya nivāraya, sarvamantrasvarūpiṇī, sarvatantrasvarūpiṇī, sarvaśilpaprayogasvarūpiṇī, sarvatatvasvarūpiṇī, duṣṭagraha bhūtagraha ākāśagraha pāṣāṇagraha sarva cāṇḍālagraha yakṣakinnarakimpuruṣagraha bhūtapretapiśācānāṃ śākinī ḍākinīgrahāṇāṃ pūrvadiśāṃ bandhaya bandhaya, vārtāli māṃ rakṣa rakṣa, dakṣiṇadiśāṃ bandhaya bandhaya , kirātavārtāli māṃ rakṣa rakṣa,paścimadiśāṃ bandhaya bandhaya , svapnavārtāli māṃ rakṣa rakṣa, uttaradiśāṃ bandhaya bandhaya, kāli māṃ rakṣa rakṣa, ūrdhvadiśaṃ bandhaya-bandhaya, ugrakāli māṃ rakṣa rakṣa, pātāladiśaṃ bandhaya bandhaya , bagalāparameśvari māṃ rakṣa rakṣa, sakalarogān vināśaya vināśaya, sarvaśatrūn palāyanāya pañcayojanamadhye rājajanastrī vaśatāṃ kuru kuru , śatrūn daha daha, paca paca, stambhaya stambhaya, mohaya mohaya, ākarṣaya ākarṣaya, mama śatrūn uccāṭaya uccāṭaya, huṃ phaṭ svāhā।
Introduction of Dus Mahavidya Baglamukhi in Hindi
अष्टम महाविद्या बगलामुखी का परिचय हिंदी में
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भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं। पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं।इनके एक हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर-इच्छा की अधिस्ठात्री शक्ति बगला है।
श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीती से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया। सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में “बगला तंत्र” ग्रन्थ की रचना की। “स्वतंत्र तंत्र” के अनुसार भगवान् विष्णु इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।
श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला महाविद्या “श्री कुल” से सम्बंधित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यंत सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यंत तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि च्यवन ने इंद्र के वज्र को स्तंभित कर दिया था। श्रीमद् गोविंदपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को “ब्रह्मास्त्र विद्या” के नामे से भी जाना जाता है। शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है।
भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है। स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं। इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है। अतः साधक गण को चाहिये कि ऐसी महाविद्या कि साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।
अब हम साधकगण को इस महाविद्या के विषय में कुछ और जानकारी देना आवश्यक समझते है, जो साधक इस साधना को पूर्ण कर, सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इन तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है।
1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।
2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या
3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्” (OM HOOM Chraum)
4) महासेतु : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है। ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है। इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” (Streem) है। इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।
5) कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है। जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है। ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु है।
6 ) निर्वाण :- “ह्रूं ह्रीं श्रीं” (Hroom Hreem Shreem) से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।
7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ” (Aim Hreem Hreem Aim)
8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
9) प्राणायाम : – साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।
10 ) दीपन :- दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” ( EEM ) से संपुटित कर सात बार जप करें
11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है, अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” (Hreem) से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।
12 ) मुख शोधन : – हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें
13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।
14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –
” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा ”
(OM Hleem Bagale ! Rudra Shaapam Vimochaya Vimochaya OM Hleem Swaahaa )
15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।
16 ) आचार :- इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।
17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : – कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –
a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” (Yam) से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।
b) सरस्वती बीज “ऐं” (Aim) से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।
c) भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” (Steem) से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें
18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें। दीपक देवता के दायीं ओर व धूपबत्ती बायीं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य (Sweets, Dry Fruits ) भी देवता के दायीं ओर ही रखें। जप के उपरान्त आसन से उठने से पूर्व ही अपने द्वारा किया जाप भगवती के बायें हाथ में समर्पित कर दें।
अतः ऐसे साधक गण जो किन्ही भी कारणो से यदि अभी तक साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकें हैं, उपर्युक्त निर्देशों का पालन करते हुए पुनः एक बार फिर संकल्प लें, तो निश्चय ही पराम्बा पीताम्बरा की कृपा दृस्टि उन्हें प्राप्त होगी – ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।
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