Shri Baglamukhi Sadhana Rahasya Brahmastra Sadhna श्री बगलामुखी साधना रहस्य ब्रह्मास्त्र साधना

माँ पीताम्बरा की कृपा से श्री बगलामुखी साधना रहस्य ( ब्रह्मास्त्र साधना ) का प्रकाशन सम्भव हुआ। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि ये आपके जीवन में उपयोगी सिद्ध होगी। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9540674788 , 9410030994. Email : shaktisadhna@yahoo.com

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Maa Baglamukhi Yagya ( Homam ) Puja Vidhi ( माँ बगलामुखी यज्ञ / हवन पूजा विधि )

साधकों के कल्याणार्थ माँ बगलामुखी के यज्ञ से सम्बन्धित विभिन्न गोपनीय विधियों को यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। कृपया किसी योग्य गुरु के मार्ग दर्शन में ही इस साधना को सम्पन्न करें। अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

मन्त्र के पुरश्चरण का एक आवश्यक अंग हवन भी है। नियत संख्या में मन्त्र-जप कर लेने के उपरान्त जप की कुल संख्या के दशांश मन्त्रों से हवन करने का विधान है। मन्त्र के साथ-साथ हवन करने का फल अलग से प्राप्त होता है। इसके साथ ही साथ यह भी विधान है कि यदि साधक हवन करने में अक्षम हो तो वह जप-संख्या के दशांश हवन करने के स्थान पर उससे दो गुनी संख्या में जप कर सकता है। यह भी कहा गया है कि हवन समय में मन्त्र वीर्य का काम करता है तथा हवन-सामग्री में प्रयुक्त पदार्थ उसके वंशाणु के समान कार्य करते हैं, जिसके फलस्वरूप कर्मफल की प्राप्ति होती है और साधक का अभीष्ट सिद्ध होता है। इसलिए मन्त्र-सिद्धि के साथ उसके फल की प्राप्ति हेतु निर्दिष्ट द्रव्यों से हवन करना आवश्यक है। “मंत्रैश्च मन्त्र-सिद्धिस्तु जप-होमार्चनाद् भवेत्।”

अग्नि-जिह्वा-आवाहन : यज्ञ कर्म करते समय कामना के अनुसार ही अग्नि-जिह्वा का आवाहन किया जाता है। काम्य कर्म में ‘राजसी जिह्वा’, मारणादि क्रूर कर्मों में ‘तामसी जिह्वा’ तथा योग-कर्मों में ‘सात्विक जिह्वा’ का आवाहन किया जाता है।

राजसी जिह्वा : पद्मरागा, सुवर्णा, भद्रलोहिता, श्वेता, धूमिनी, कालिका।
तामसी जिह्वा : विश्वमूर्ति, स्फुर्लिंगिनी, धूम्रवर्णा, मनोजवा, लोहिता, कराला, काली।

सात्विक जिह्वा: हिरण्या, गगना, रक्ता, कृष्णा, सुप्रभा, बहुरूपा, अतिरिक्ता।
आकर्षण-कार्यों में ‘हिरण्या’, स्तम्भन कार्यों में ‘गगना’, विद्वेषण कार्य में ‘रक्ता’, मारणादि में ‘कृष्णा’, शान्ति कर्मों में ‘सुप्रभा’, उच्चाटन में ‘अतिरिक्ता’ तथा धनलाभ के लिए ‘बहुरूपा’ नामक जिह्वा का आवाह्न करके आहुति देनी चाहिए। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि होम करते समय अग्नि का वास पृथ्वी पर होना चाहिए।

अग्नि-नाम : शान्ति-कार्यों में ‘वरदा’, पूर्णाहुति में ‘मृडा’, पुष्टि-कार्यों में ‘बलद’, अभिचार-कर्मों में ‘क्रोध’, वशीकरण में ‘कामद’, बलिदान में ‘चूड़क’, लक्ष होम में ‘वद्दि’ नामक अग्नि का आवाह्न किया जाता है।

दिशा-विधान : शान्ति, पुष्टि कर्मों में पूर्वमुख, आकर्षण कार्य में उत्तरमुख होकर वायुकोणस्थ कुण्ड में हवन करना चाहिए। विद्वेषण में नैर्ऋत्यमुखी होकर वायुकोणस्थ कुण्ड में होम करें। मारण-कर्म में दक्षिणाभिमुख होकर दक्षिण दिशा में स्थित कुण्ड में होम करें। ग्रह, भूत आदि निवारण कर्म में वायुकोण की ओर मुख करके षट्कोण कुण्ड में हवन करना चाहिए।


हवन कुण्ड विधान

अलग-अलग फल-प्राप्ति के लिए अलग-अलग आकृति के कुण्डों में होम करने का विधान है, यथा –
वशीकरण में – चैकोर कुण्ड
आकर्षण में – त्रिकोण कुण्ड
उच्चाटन में – त्रिकोण कुण्ड
मारण में – षट्कोण कुण्ड में होम करना चाहिए।

लक्ष्मी-प्राप्ति, शान्ति, पुष्टि, विद्या-प्राप्ति, विघ्न निवारण हेतु चतुरस्त्र कुण्ड में होम करना चाहिए। वशीकरण, सम्मोहन, व्यापार, अर्थ-प्राप्ति, कीर्ति-वृद्धि के लिए त्रिकोणाकार कुण्ड में आहुति देने का विधान है। इसके अतिरिक्त विद्वेषण कर्म में वर्तुलाकार एवं उच्चाटन कर्म के लिए षट्कोण कुण्ड का निर्माण करना चाहिए। रक्षा-कर्म में चतुरस्त्र कुण्ड में हवन करें। हवन के लिए कुण्ड अथवा स्थण्डिल आवश्यक है

उत्तमं कुण्ड-होमं च स्थण्डिलं चैव मध्यमम्।
स्थण्डिलेन विना होमं निष्फलं भवति ध्रुवम्।।

कर्म भेद से यज्ञ-सामग्री-विधान ( Baglamukhi Havan Samagri List )
बगलोपासना में अलग-अलग कामना हेतु अलग-अलग हवनीय-द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है। यथा –
प्रयोजन यज्ञीय-सामग्री विशिष्ट निर्देश/परामर्श

यदि आप माँ बगलामुखी साधना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए लेख पढ़ें –

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Shabar Mantra Sarvasva By Sri Yogeshwaranand Ji शाबर मंत्र सर्वस्व

Shabar Mantra Sarvasva शाबर मंत्र सर्वस्व

माँ पीताम्बरा की कृपा से शाबर मंत्र सर्वस्व ग्रन्थ का  प्रकाशन सम्भव हुआ। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि ये आपके जीवन में उपयोगी सिद्ध होगी। अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9540674788 , 9410030994. Email : shaktisadhna@yahoo.com

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इस जगत् का मूल कारण ‘शब्द’ है। यह तथ्य ‘स्फोटवाद’ से स्पष्ट हो जाता है। ‘शब्द’ को ब्रह्म भी कहा गया है। यह तथ्य पूर्णतः प्रमाणित है कि प्रत्येक शब्द से उत्पन्न ध्वनि से कम्पन उत्पन्न होता है और प्रत्येक कम्पन एक रूप व्यक्त करता है। विज्ञान बहुत पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि इस सृष्टि के सभी पदार्थों के बनने-बिगड़ने ( उत्पत्ति और विनाश ) का कारण कम्पन ही है। मन्त्र चूंकि शब्दों का एक समूह है, इसलिए मन्त्रों की शक्ति का महत्व सहज ही समझा जा सकता है। हमारे महर्षियों और विज्ञान अन्वेषकों ने इस तथ्य को बहुत अच्छे से जान लिया था और परिणामस्वरूप उन्होंने ऐसे शब्दों का चयन करके उन्हें इस प्रकार संयोजित किया कि उन शब्दों (मन्त्रों से, शब्दों के समूह से ) को विधि के अनुसार प्रयोग करने से जपकर्ता को उसके अभीष्ट की प्राप्ति हो सके। बहुत अन्वेषण के उपरान्त उन्होंने स्वयं द्वारा प्रतिपादित मन्त्रों के प्रयोगों की विधियों का भी सृजन किया। लेकिन वेदोक्त मन्त्रों में सावधानी और पूर्ण विधि-विधान का ज्ञान होना अति आवश्यक है अन्यथा उनका विपरीत परिणाम भी देखने को मिल सकता है। जबकि ‘शाबर’ मन्त्रों के उच्चारण मात्र से ही उनका प्रभाव प्रकट होने लगता है। उन्हें ऊर्जावान और जाग्रत बनाये रखने के लिए केवल थोड़ी सी प्रक्रिया अपनानी पड़ती है।

Baglamukhi Shabar Mantra ( बगलामुखी शाबर मंत्र )

Baglamukhi Shabar Mantra in Hindi and English ( बगलामुखी शाबर मंत्र )

इस परिशिष्ट में जिन मन्त्रों का उल्लेख किया जा रहा है, वे लोक- परम्परा से सम्बद्ध भगवती-उपासकों द्वारा पुनः-पुनः सराहे गए हैं। इन मन्त्रों का प्रभाव असंदिग्ध है, जबकि इनके साधन में औपचारिकताएं नाम मात्र की हैं। यदि भगवती बगलाम्बा के प्रति पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा-भाव रखते हुए इन मन्त्रों की साधना की जाए, तो कोई कारण नहीं है कि साधक को उसके अभीष्ट की प्राप्ति न हो।

बगलामुखी साधना से सम्बंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें संपर्क करें – 9917325788 ( श्री योगेश्वरानंद जी ) , 9540674788 ( सुमित गिरधरवाल )  ईमेल – shaktisadhna@yahoo.com

यहाँ पर उल्लिखित शाबर मन्त्र के सम्बन्ध में अनुभवी साधकों का यह निष्कर्ष है कि यह परमशक्तिशाली मन्त्र है और इसका प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता है। यह प्रबल बगलामुखी शत्रु विनाशक मंत्र है। इसका सिद्धि-विधान भी अत्यन्त ही सरल है। इसके लिए साधक को यह निर्देश है कि भगवती बगला की सम्यक् उपासना एवं उपचार के उपरान्त प्रतिदिन दो माला जप एक महीने तक करें। इतने अल्प समय और अल्प परिश्रम से ही यह मन्त्र अपना प्रभाव प्रकट करने लगता है।

  बगलामुखी शाबर मंत्र –  1

ॐ मलयाचल बगला भगवती महाक्रूरी महाकराली राजमुख बन्धनं ग्राममुख बन्धनं ग्रामपुरुष बन्धनं कालमुख बन्धनं चौरमुख बन्धनं व्याघ्रमुख बन्धनं सर्वदुष्ट ग्रह बन्धनं सर्वजन बन्धनं वशीकुरु हुं फट् स्वाहा। 

( Baglamukhi Shabar Mantra in English- 1)

oṃ malayācala bagalā bhagavatī mahākrūrī mahākarālī rājamukha bandhanaṃ grāmamukha bandhanaṃ grāmapuruṣa bandhanaṃ kālamukha bandhanaṃ cauramukha bandhanaṃ vyāghramukha bandhanaṃ sarvaduṣṭa graha bandhanaṃ sarvajana bandhanaṃ vaśīkuru huṃ phaṭ svāhā।

बगलामुखी शाबर मंत्र – 2

ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा, सिंहासन पीला, सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे? सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे। बगलामुखी के कौन संगी, कौन साथी? कच्ची बच्ची काक कुतिआ स्वान चिड़िया। ॐ बगला बाला हाथ मुदगर मार, शत्रु-हृदय पर स्वार, तिसकी जिह्ना खिच्चै। बगलामुखी मरणी-करणी, उच्चाटन धरणी , अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी। ॐ बगलामुखीरमे ब्रह्माणी भण्डे, चन्द्रसूर फिरे खण्डे-खण्डे, बाला बगलामुखी नमो नमस्कार।

Baglamukhi Shabar Mantra in English- 2

oṃ sau sau sutā samundara ṭāpū, ṭāpū meṃ thāpā, siṃhāsana pīlā, siṃhāsana pīle ūpara kauna baise? siṃhāsana pīlā ūpara bagalāmukhī baise। bagalāmukhī ke kauna saṃgī, kauna sāthī? kaccī baccī kāka kutiā svāna ciड़iyā। oṃ bagalā bālā hātha mudagara māra, śatru-hṛdaya para svāra, tisakī jihnā khiccai। bagalāmukhī maraṇī-karaṇī, uccāṭana dharaṇī , ananta koṭi siddhoṃ ne mānī। oṃ bagalāmukhīrame brahmāṇī bhaṇḍe, candrasūra phire khaṇḍe-khaṇḍe, bālā bagalāmukhī namo namaskāra।

वास्तव में शाबर-मंत्र अंचलीय-भाषाओं से सम्बद्ध होते हैं, जिनका उद्गम सिद्ध उपासकों से होता है। इन सिद्धों की साधना का प्रभाव ही उनके द्वारा कहे गए शब्दों में शक्ति जाग्रत कर देता है। इन मन्त्रों में न भाषा की शुद्धता होती है और न ही संस्कृत जैसी क्लिष्टता। बल्कि ये तो एक साधक के हृदय की भावना होती है जो उसकी अपनी अंचलीय ग्रामीण भाषा में सहज ही प्रस्फुटित होती है। इसलिए इन मन्त्रों की भाषा-शैली पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। यदि आवश्यकता है तो वह है इनका प्रभाव महसूस करने की।

क्रम संख्या 2 पर उल्लिखित यह मन्त्र भी अंचलीय भाषा में है, जिसे किसी सिद्ध ग्रामीण साधक द्वारा कहा गया है। इस मन्त्र की नित्य-प्रति एक माला जप एक माह तक करने से इसका प्रभाव प्रकट होने लगता है। वैसे अनुभव में यह आया है कि शाबर मन्त्रों के जप यदि होली, दीपावली की रात्रि अथवा ग्रहण काल में ही कर लिया जाए तो वह भी पर्याप्त होता है। लेकिन उत्तम यह है कि इन्हें ग्रहण काल में पर्याप्त मात्रा में जपकर एक माह तक नित्य-प्रति निर्दिष्ट संख्या में जपा जाए।

बगलामुखी शाबर मंत्र –  3

इन दो बगला-शाबर मन्त्रों के अतिरिक्त भी एक अन्य शाबर मंत्र गुरु-प्रसाद स्वरूप हमें प्राप्त हुआ था, जिसका उल्लेख मैं यहाँ कर रहा हूं। इस मन्त्र का विधान यह है कि सर्वप्रथम भगवती का पूजन करके इस मन्त्र का दस हजार की संख्या में जप करने हेतु संकल्पित होना चाहिए। तदोपरान्त एक निश्चित अवधि में जप पूर्ण करके एक हजार की संख्या में इसका हवन ‘मालकांगनी’ से करना चाहिए। तदोपरान्त तर्पण, मार्जन व ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। तर्पण गुड़ोदक से करें। इस प्रकार इस मन्त्र का अनुष्ठान पूर्ण होता है। फिर नित्य-प्रति एक माला इस मन्त्र की जपते रहना चाहिए। इस मन्त्र का प्रभाव भी अचूक है अतः निश्चित रूप से साधक के प्रत्येक अभीष्ट की पूर्ति होती है। मन्त्र इस प्रकार है

ॐ ह्रीं बगलामुखि! जगद्वशंकरी! मां बगले प्रसीद-प्रसीद मम सर्व मनोरथान पूरय-पूरय ह्रीं ॐ स्वाहा।

Baglamukhi Shabar Mantra in English – 3

oṃ hrīṃ bagalāmukhi! jagadvaśaṃkarī! māṃ bagale prasīda-prasīda mama sarva manorathāna pūraya-pūraya hrīṃ oṃ svāhā।

यदि आपको इन मन्त्रों का प्रभाव देखना है तो निर्देशानुसार इनका साधन कर अभीष्ट की प्राप्ति करें। ये मन्त्र किस प्रमाणिक ग्रन्थ में हैं, यह कुछ स्पष्ट नहीं है। प्रमाण केवल यही है कि ये गुरुमुख से प्राप्त हैं। शेष जब आप इनकी साधना करेंगे तो प्राप्त होने वाला परिणाम ही इनकी प्रमाणिकता का साक्षी होगा।

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Baglamukhi Shabar Mantra बगलामुखी शाबर मंत्र 1 www.baglamukhi.info

बगलामुखी गायत्री मंत्र Baglamukhi Gayatri Mantra

Baglamukhi Gayatri Mantra बगलामुखी गायत्री मंत्र

बगलामुखी गायत्री मंत्र के विषय में कहा गया है कि बगला-गायत्री मंत्र , बगलामुखी के जितने भी  मंत्र हैं, उन सबका प्राण है।बगला-गायत्री का जप किए बिना यदि साधक बगला के अन्य किसी भी मंत्र का चाहे लाखों-करोड़ों की संख्या में जप कर ले तो भी वह मंत्र अपना फल नहीं देता अर्थात् सिद्ध नहीं होता है। इसलिए आवश्यक है कि यदि बगला के किसी भी मंत्र को सिद्ध करना है, उसका फल प्राप्त करना है तो बगला-गायत्री का भी जप किया जाए।

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इसके लिए विधान है कि यदि आप भगवती बगलामुखी के किसी भी मंत्र का पुरश्चरण कर रहे हों तो कम से कम उसका दशांश बगलामुखी गायत्री मंत्र का जप अवश्य करें। इसी प्रकार यदि बगलामुखी के किसी भी मंत्र का प्रयोग कर रहे हों तो उसका 1/10 भाग बगलामुखी गायत्री का जप अवश्य करें क्योंकि बगला-गायत्री बगला-महामंत्र का जीवन है।
यह भी स्मरण रखें कि बगला-गायत्री से सम्बन्धित किसी भी साधना अथवा प्रयोग में जहां मंत्र -जप की संख्या निर्धारित ना हो वहां जप-संख्या एक लाख समझना चाहिए। इसी प्रकार जहां दिनों की संख्या का उल्लेख ना हो वहां 15 दिन प्रयोग-काल मानना चाहिए। जैसा कि सांख्यायन तंत्र में भी उल्लेख आया है –

पुरश्चरण – काले तु, गायत्री प्रजपेन्नरः।

मूल विद्या दशांशं च ,  मंत्र   सिद्धिर्भवेद् ध्रुवम् ।। 

त्यक्त्वा तां मंत्र   गायत्री , यो जपेन्मन्त्रमादरात्।

कोटि-कोटि जपेनापि, तस्य सिद्धिर्न जायते।।

जप-संख्या यत्र नोक्ता, लक्षमेकं कुमारक!।

दिन – संख्या यत्र नोक्ता, पक्षमेकं न संशयः।।

गायत्री बगलानाम्नी, बगलायाश्च जीवनम्।

मन्त्रादौ चाथ मन्त्रान्ते, जपेद् ध्यान-पुरस्सरम्।।

उपर्युक्त कारणों के आधार पर ही श्री बगला-गायत्री का उल्लेख यहां किया जा रहा है।

1. ॐ ह्ल्रीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्।
2. ॐ  ऐं बगलामुखी विद्महे,  ॐ  क्लीं कान्तेश्वरी धीमहि ॐ  सौः तन्नः प्रह्लीं प्रचोदयात्।।  (बाला मन्त्र सम्पुटित)

बगलामुखी गायत्री मंत्र जप विधान

ॐ ह्ल्रीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भन बाणाय धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्।

विनियोग: – अस्य श्री बगलागायत्रीमंत्रस्य ब्रह्मा ट्टषिः, गायत्री छन्दः, चिन्मयी शक्तिरूपिणी ब्रह्मास्त्र बगला देवता, ॐ बीजं, ह्रीं शक्तिः, विद्महे कीलकं, श्री बगलामुखी देवता प्रीतये जपे विनियोगः।

ॠष्यादि न्यास:
ॐ  श्री ब्रह्मर्षये नमः शिरसि।
गायत्री छन्दसे नमः मुखे।
ब्रह्मास्त्र बगला देवतायै नमः हृदये।
ॐ बीजाय नमः गुह्ये।
ह्रीं शक्तये नमः पादयोः।
विद्महे कीलकाय नमः सर्वांगे।

कर-न्यास:
ॐ  ह्ल्रीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे अंगुष्ठाभ्यां नमः।
स्तम्भन बाणाय धीमहि तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
तन्नो बगला प्रचोदयात् मध्यमाभ्यां वषट्।
ॐ ह्ल्रीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे अनामिकाभ्यां हुं।
स्तम्भन बाणाय धीमहि कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्।
तन्नो बगला प्रचोदयात् करतलकरपृष्ठाभ्यां फट्।

षडंग-न्यास:
ॐ ह्ल्रीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे हृदयाय नमः।
स्तम्भन बाणाय धीमहि शिरसे स्वाहा।
तन्नो बगला प्रचोदयात् शिखायै वषट्।
ॐ ह्ल्रीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे कवचाय हुं।
स्तम्भन बाणाय धीमहि नेत्रत्रयाय वौषट्।
तन्नो बगला प्रचोदयात् अस्त्राय फट्।

इसके उपरान्त जप करें। गायत्री-जप करने के उपरान्त यदि मूल- मंत्र अथवा अन्य किसी मंत्र का जप करना हो तो उसी मंत्र के ध्यान व न्यास आदि करने चाहिए। बगला-गायत्री का ध्यान मूल-मंत्र के अनुसार ही करें।
अब बगला-गायत्री मंत्र के प्रयोगों के विषय में स्पष्ट कर रहा हूं।

प्रयोग

मोक्षार्थ: ‘ॐ ’ सहित जप करें।
कामार्थ: ‘ॐ ग्लौं’ सहित जप करें।
उच्चाटनार्थ: ‘ग्लौं’ सहित जप करें।
सम्मोहनार्थ: ‘क्लीं’ सहित जप करें।
स्तम्भनार्थ: ‘ह्ल्रीं’ सहित जप करें।
भूत-प्रेत-पिशाचादि से निवृत्ति: ‘ह्रीं ’ सहित जप करें।
ज्वर महाताप की शान्ति: ‘वं’ सहित जप करें।
राजा-वशीकरण तथा इष्ट-सिद्धि :  ‘ह्रीं’ सहित जप करें।

विद्वेषणार्थ: ‘धूं-धूं’ सहित जप करें।
मारणार्थ: ‘हूं ग्लौं ह्रीं’ सहित जप करें।
विद्यार्थ: ‘ऐं’ सहित जप करें।
सुयोग्य कन्यार्थ: ‘ऐं क्लीं सौः’ सहित जप करें।
धनार्थ : ‘श्री’ सहित जप करें।
विष-नाशार्थ: ‘क्षिप’ सहित जप करें।
प्रेतबाध-नाशार्थ: ‘हं’ सहित जप करें।
रोग-नाशार्थ: ‘ॐ जूं सः’ सहित जप करें।

उपरोक्त सभी बीजों को बगला-गायत्री मन्त्र के आदि (आरम्भ) में लगाकर जप करने से निर्दिष्ट फल की प्राप्ति होती है।

बीज सम्पुटीकरण विधान

भूमि-प्राप्ति के लिए ”स्तम्भन बाणाय“ के बाद ”ग्लौं“ बीज लगाकर जप करें। शत्रु को ताप व मृत्यु प्रदान करने के लिए मन्त्र के आरम्भ में ‘रं’ लगाकर जप करें।
राज-वशीकरण के लिए मन्त्र के आदि में ‘ह्रीं’ लगाकर जप करना चाहिए।
इन सभी मन्त्रों का जप कामनानुसार चयन करके करना चाहिए। जप-संख्या कम से कम एक लाख होनी आवश्यक है।

स्मरण रखें! कलिकाल में गायत्री -जप के बिना कोई भी मन्त्र सिद्ध हो ही नहीं सकता, यथा

गायत्री च बिना मन्त्रो न सिद्धयति कलौ युगे

यदि करोड़ों मन्त्रों का जप कर लिया हो और गायत्री-जप (बगला- गायत्री ) नहीं किया, तो साधक को कोई भी मन्त्र सिद्ध नहीं हो सकता।

उपरोक्तानुसार जप-विधान का पालन करने से बगला-गायत्री संसार में सभी सिद्धि प्रदान करती है। चार लाख जप करने से इसका पुरश्चरण होता है। जप का दशांश चालीस हजार तर्पण और तर्पण का दशांश चार हजार मन्त्रों का हवन घी से होता है। हवन का दशांश चार सौ ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। यदि इतनी संख्या में ब्राह्मणों को भोजन कराने की सामर्थ्य न हो तो चालीस अथवा ग्यारह ब्राह्मणों को भोजन अवश्य कराएं। यही इस मन्त्र का पूर्ण विधान है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारी पुस्तक बगलामुखी तंत्रम एवं बगलामुखी साधना और सिद्धि का अध्यन अवश्य करें ।

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Baglamukhi shodashopchar Pujan बगलामुखी षोडशोपचार पूजन मंत्र एवं विधि

Baglamukhi shodashopchar Pujan Mantra and Vidhi in English and Hindi

बगलामुखी षोडशोपचार पूजन मंत्र एवं विधि ( माँ बगलामुखी पूजा विधि )

शास्त्रों में देवी-देवताओं को प्रसन्न करने हेतु उपासना-विधियों में सर्वोत्तम उपासना-विधि उनके षोडशोपचार पूजन को माना गया है। षोडशोपचार पूजन का अर्थ होता है – सोलह उपचारों से पूजन करना। सोलह उपचार निम्नवत् कहे गए हैं।
(1) आवाहन (2) आसन (3) पाद्य (4) अर्घ्य (5) स्नान (6) वस्त्र (7) यज्ञोपवीत (सौभाग्य सूत्र) (8) गन्ध (9) पुष्प तथा पुष्पमाला (10) दीपक (11) अक्षत (चावल) (12) पान-सुपारी-लौंग (13) नैवेद्य (14) दक्षिणा (15) आरती (16) प्रदक्षिणा तथा पुष्पाञ्जलि।
इन उपचारों के अतिरिक्त पांच उपचार, दश उपचार, बारह उपचार, अट्ठारह उपचार आदि भी होते हैं। लेकिन यहां 16 उपचारों की पूजन- सामग्री एवं उनका विधान अंकित किया जा रहा है। सामग्री को पूजा से पहले अपने पास रख लेना चाहिए। यहां सामग्री में हवन की सामग्री भी लिखी गयी है। यदि केवल पूजन ही करना हो तो वांछित सामग्री का चयन साधक अपनी सुविधा तथा उपलब्धता के अनुसार करके एकत्र कर लें।  यहाँ पर माँ बगलामुखी के षोडशोपचार पूजा की विधि दी जा रही है

अधिक जानकारी के लिये ईमेल करें – shaktisadhna@yahoo.com अथवा कॉल करें – 9540674788, 9917325788

Download Baglamukhi shodashopchar Pujan Pdf बगलामुखी षोडशोपचार पूजन

ध्यान-आवाहन– मन्त्रों और भाव द्वारा भगवान का ध्यान किया जाता है | आवाहन का अर्थ है पास लाना। ईष्ट देवता को अपने सम्मुख या पास लाने के लिए आवाहन किया जाता है। इस मंत्र के द्वारा हम यहाँ माँ बगलामुखी का आवाहन कर रहे हैं ।

सर्वप्रथम भगवती पीताम्बरा का आवाहन करें –

ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो मऽआवह।।
आत्मसंस्थां प्रजां शुद्धां त्वामहं परमेश्वरीम्।
अरण्यामिव हव्याशं मूर्तिमावाहयाम्यहम्।।

”श्री पीताम्बरायै नमः आवाहनं समर्पयामि“ कहकर ‘आवाहिनी मुद्रा’ का प्रदर्शन करें।

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Baglamukhi Hridaya Stotram बगलामुखी हृदय स्तोत्र

Baglamukhi Hridaya Stotram बगलामुखी हृदय स्तोत्र

This Hymn  ( Baglamukhi Hridaya Stotram ) is considered to be heart of the Mother. Hymn’s follower attains whatever he see in this world. Baglamukhi Hridayam Stotram is related to Devi Baglamukhi / Pitambara. Objective of this stotram is to get closer to Mother Baglamukhi.

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किसी भी देवी या देवता से सम्बन्धित हृदय-स्तोत्र देवता का हृदय ही होता है। यह स्तोत्र भगवती बगलामुखी से सम्बन्धित है। उनके हृदय में बस जाना या फिर उन्हें अपने हृदय में बसा लेना ये दोनों ही विकल्प इस पाठ का उद्देश्य हैं। उनके हृदय में निवास कर पाना तो एक स्वप्न मात्र ही है, क्योंकि इसके लिए तो परम शक्तिमान भी लालायित रहते हैं। हां, हमारी भक्ति के प्रसाद-स्वरूप यह फल अवश्य मिल सकता है कि ये विश्वाश्रय हमारे हृदय में बस जाएं और वास्तव में जीवन का यही तो लक्ष्य है; तभी तो हमारा उद्धार सम्भव है।
‘हृदय-स्तोत्र’ के द्वारा भगवती बगला की कृपा प्राप्त करने हेतु एक विशिष्ट प्रयोग है। आश्विन मास की महा-अष्टमी के दिन पीताचारी, पीताहारी होकर किसी प्राचीन शिवालय अथवा शक्तिपीठ में इस हृदय-स्तोत्र का अनुष्ठान संकल्प लेकर करें। इस प्रकार इस स्तोत्र का पाठ करने से मां पीताम्बरा की कृपा प्राप्त होती है और साधक के शत्रु पराभव को प्राप्त होते हैं। (यह अनुभूत प्रयोग है।) बगला-हृदय-स्तोत्र वास्तव में साधक के लिए ‘वांछाकल्पद्रुम’ के समान है। यूं तो इस पाठ के विषय में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान ही होगा, तो भी सामान्यतः कुछ विशिष्टताओं को स्पष्ट करना यहां उचित प्रतीत होता है।  ( जो लोग दीक्षित है वो साथ में गुरु आज्ञानुसार बगलामुखी हृदय मंत्र का जप भी करें )

Benefits of Baglamukhi Hridaya Stotram in Hindi

1. यदि मात्र बगला-हृदय-स्तोत्र का ही पाठ कर लिया जाए तो फिर साधक को जप आदि अथवा अनुष्ठान की कोई आवश्यकता नहीं रहती।
2. इस पाठ के स्मरण-मात्र से ही साधक के सभी अभीष्ट पूर्ण हो जाते हैं।
3. इस स्तोत्र का पाठ करने वाले के लिए इस पृथ्वी पर कुछ भी अप्राप्य नहीं रह जाता है।
4. इस स्तोत्र का तीनों समय पाठ करने के प्रभाव से गूंगा बोलने लगता है, पंगु चलने लगता है, दीन सर्वशक्तिमान हो जाता है; घोर दरिद्र व्यक्ति धनवान हो जाता है; चारों ओर से निन्दित व्यक्ति भी ख्याति प्राप्त कर लेता है; और मूर्खतम व्यक्ति की वाणी में ओज एवं कवित्व की शक्ति आ जाती है।
5. इस स्तोत्र के पाठ में ध्यान आदि आवश्यक नहीं है। जप, होम, तर्पण आदि की भी कोई आवश्यकता नहीं है।
6. इस स्तोत्र-पाठ के पाठी का उल्लंघन करने मात्र से स्वयं ब्रह्मा भी सकुशल नहीं रह सकते। यह स्तोत्र परम संतोष-प्रदायक एवं सिद्धियां प्रदान करने वाला है, क्योंकि यह साक्षात् मां बगला का हृदय है।

भगवती बगला के इस हृदय स्तोत्र से प्राप्त होने वाले अनेक परिणामों के विषय में मेरा सुखद अनुभव रहा है। इसलिए मैं ऐसे पाठकों/साधकों को भी इस स्तोत्र का अनुष्ठान करने का परामर्श दूंगा। जो सब तरफ से निराश हो चुके हैं और जिनको कोई भी रास्ता स्पष्ट नहीं होता। उनसे मैं निवेदन करूंगा कि संकल्प लेकर कम से कम ग्यारह सौ स्तोत्रों का अनुष्ठान अवश्य करें।

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Shri Baglamukhi Tantram Book by Sri Yogeshwaranand & Sumit Girdharwal

Shri Baglamukhi Tantram Book by Sri Yogeshwaranand & Sumit Girdharwal

माँ पीताम्बरा की अनुकम्पा से ” श्री बगलामुखी तन्त्रम ” ग्रंथ का प्रकाशन संभव हुआ। आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि यह आपके जीवन में आपका मार्गदर्शन करेगा।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें – 9540674788

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Baglamukhi Mantra Utkilan Vidhaan बगलामुखी मंत्रोंत्कीलन-विधान

Baglamukhi Mantra Utkilan Vidhaan

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मंत्रों का दुरुपयोग रोकने के लिए कलियुग के प्रारम्भ में भगवान शिव ने सभी मंत्रों का कीलन (शापित) कर दिया था। तब माँ पार्वती के अनुग्रह करने पर उन्होंने मंत्रों को उत्कीलित करने का विधान भी प्रस्तुत किया ताकि सत्पात्र एवं अधिकारी साधक भी मंत्र की सिद्धि प्राप्त कर सकें। यही मंत्रोंत्कीलन-विधान मंत्र-उपासना के अंग के रूप में उत्कीलक कहे जाते हैं। इसलिए साधक को कवच आदि का पाठ करने से पूर्व उत्कीलन करना चाहिए।
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Baglamukhi Sarva Karya Siddhi Mantra बगलामुखी सर्वकार्य सिद्धि मंत्र

Baglamukhi Sarva Karya Siddhi Mantra बगलामुखी सर्वकार्य सिद्धि मंत्र

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Baglamukhi Sarva Karya Siddhi Mantra

बगलामुखी देवी का यह मंत्र सभी  कार्यों की सिद्धि प्रदान करने वाला है। दीक्षा लेकर ही इस मंत्र का जाप करें।

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Baglamukhi Kavach ( बगलामुखी कवच)

Baglamukhi Kavach ( बगलामुखी कवच )

( Baglamukhi Kavach ) मां बगलामुखी के प्रत्येक साधक को प्रतिदिन जाप प्रारम्भ करने से पहले इस कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए । यदि हो सके तो सुबह दोपहर शाम तीनों समय इसका पाठ करें । यह कवच विश्वसारोद्धार तन्त्र से लिया गया है। पार्वती जी के द्वारा भगवान शिव से पूछे जाने पर भगवती बगला के कवच के विषय में प्रभु वर्णन करते हैं कि देवी बगला शत्रुओं के कुल के लिये जंगल में लगी अग्नि के समान हैं। वे साम्रज्य देने वाली और मुक्ति प्रदान करने वाली हैं।

बगलामुखी कवच पढ़ने के लाभ  ( Baglamukhi Kavach Benefits in Hindi )

भगवती बगलामुखी के इस कवच के विषय में बहुत कुछ कहा गया है। इस कवच के पाठ से अपुत्र को धीर, वीर और शतायुष पुत्र की प्राप्ति होति है और निर्धन को धन प्राप्त होता है। महानिशा में इस कवच का पाठ करने से सात दिन में ही असाध्य कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। तीन रातों को पाठ करने से ही वशीकरण सिद्ध हो जाता है। मक्खन को इस कवच से अभिमन्त्रित करके यदि बन्धया स्त्री को खिलाया जाये, तो वह पुत्रवती हो जाती है। इसके पाठ व नित्य पूजन से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है, नारी समूह में साधक कामदेव के समान व शत्रओं के लिये यम के समान हो जाता है। मां बगला के प्रसाद से उसकी वाणी गद्य-पद्यमयी हो जाती है । उसके गले से कविता लहरी का प्रवाह होने लगता है। इस कवच का पुरश्चरण एक सौ ग्यारह पाठ करने से होता है, बिना पुरश्चरण के इसका उतना फल प्राप्त नहीं होता। इस कवच को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष को दाहिने हाथ में व स्त्री को बायें हाथ में धारण करना चाहिये

भगवती बगलामुखी की उपासना कलियुग में सभी कष्टों एवं दुखों से मुक्ति प्रदान करने वाली है। संसार में कोई कष्ट अथवा दुख ऐसा नही है जो भगवती पीताम्बरा की सेवा एवं उपासना से दूर ना हो सकता हो, बस साधकों को चाहिए कि धैर्य पूर्वक प्रतिक्षण भगवती की सेवा करते रहें।

अधिक जानकारी के लिये ईमेल करें – shaktisadhna@yahoo.com अथवा कॉल करें – 9540674788, 9410030994

(कृपया दीक्षित साधक ही इसका जप करें। जिनकी दीक्षा नही हुई है वो सबसे पहले दीक्षा ग्रहण करें )

Baglamukhi Kavach Download बगलामुखी कवच डाउनलोड 

माँ बगलामुखी ध्यान

ॐ सौवर्णासन-संस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीम्।

हेमाभांगरुचिं शशांक-मुकुटां सच्चम्पक स्रग्युताम्।।

हस्तैर्मुद्गर पाश वज्ररसनाः संबिभ्रतीं भूषणैः।

व्याप्तांगीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्।।

विनियोग – ॐ अस्य श्री बगलामुखी ब्रह्मास्त्र मंत्र कवचस्य भैरव ऋषिः, विराट छ्ंदः, श्री बगलामुखी देव्य, क्लीं बीजम्, ऐं शक्तिः, श्रीं कीलकं, मम मनोभिलाषिते कार्य सिद्धयै विनियोगः।

बगलामुखी कवच

शिरो मे पातु ॐ ह्रीं ऐं श्रीं क्लीं पातु ललाटकम्। सम्बोधन-पदं पातु नेत्रे श्रीबगलानने।। (१)

श्रुतौ मम रिपुं पातु नासिकां नाशयद्वयम्। पातु गण्डौ सदा मामैश्वर्याण्यन्तं तु मस्तकम्।। (२)

देहि द्वन्द्वं सदा जिह्वां पातु शीघ्रं वचो मम। कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम्।। (३)

कार्यं साधयद्वन्द्वं तु करौ पातु सदा मम। मायायुक्ता तथा स्वाहा हृदयं पातु सर्वदा।। (४)

अष्टाधिक चत्वारिंश दण्डाढया बगलामुखी। रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम।। (५)

ब्रह्मास्त्राख्यो मनुः पातु सर्वांगे सर्व सन्धिषु। मन्त्रराजः सदा रक्षां करोतु मम सर्वदा।। (६)

ॐ ह्रीं पातु नाभिदेशं कटिं मे बगलाऽवतु। मुखिवर्णद्वयं पातु लिंग मे मुष्क-युग्मकम्।। (७)

जानुनी सर्वदुष्टानां पातु मे वर्णपञ्चकम्। वाचं मुखं तथा पादं षड्वर्णाः परमेश्वरी।। (८)

जंघायुग्मे सदा पातु बगला रिपुमोहिनी। स्तम्भयेति पदं पृष्ठं पातु वर्णत्रयं मम।। (९)

जिह्वा वर्णद्वयं पातु गुल्फौ मे कीलयेति च। पादोर्ध्व सर्वदा पातु बुद्धिं पादतले मम।। (१०)

विनाशय पदं पातु पादांगुल्योर्नखानि मे। ह्रीं बीजं सर्वदा पातु बुद्धिन्द्रियवचांसि मे।। (११)

सर्वांगं प्रणवः पातु स्वाहा रोमाणि मेऽवतु। ब्राह्मी पूर्वदले पातु चाग्नेय्यां विष्णुवल्लभा।। (१२)

माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु। कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता।। (१३)

वाराही चोत्तरे पातु नारसिंही शिवेऽवतु। ऊर्ध्वं पातु महालक्ष्मीः पाताले शारदाऽवतु।। (१४)

इत्यष्टौ शक्तयः पान्तु सायुधाश्च सवाहनाः। राजद्वारे महादुर्गे पातु मां गणनायकः।। (१५)

श्मशाने जलमध्ये च भैरवश्च सदाऽवतु। द्विभुजा रक्तवसनाः सर्वाभरणभूषिताः।। (१६)

योगिन्यः सर्वदा पान्तु महारण्ये सदा मम। इति ते कथितं देवि कवचं परमाद् भुतम्।। (१७)

फल-श्रुति

(फल-श्रुति  पढ़ना अनिवार्य नहीं है। )

श्रीविश्व विजयं नाम कीर्ति-श्रीविजय-प्रदम्। अपुत्रो लभते पुत्रं धीरं शूरं शतायुषम्।। (१८)

निर्धनो धनमाप्नोति कवचस्यास्य पाठतः। जपित्वा मन्त्रराजं तु ध्यात्वा श्रीबगलामुखीम्।। (१९)

पठेदिदं हि कवचं निशायां नियमात् तु यः। यद् यत् कामयते कामं साध्यासाध्ये महीतले।। (२०)

तत् यत् काममवाप्नोति सप्तरात्रेण शंकरि। गुरुं ध्यात्वा सुरां पीत्वा रात्रौ शक्ति-समन्वितः।। (२१)

कवचं यः पठेद् देवि तस्य आसाध्यं न किञ्चन। यं ध्यात्वा प्रजपेन् मंत्रं सहस्रं कवचं पठेत्।। (२२)

त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः। लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया।। (२३)

लिखित्वा हृदि तन्नाम तं ध्यात्वा प्रजपेन् मनुम्। एकविंशद् दिनं यावत् प्रत्यहं च सहस्रकम्।। (२४)

जपत्वा पठेत् तु कवचं चतुर् विं शतिवारकम्। संस्तम्भं जायते शत्रोर्नात्र कार्या विचारणा।। (२५)

विवादे विजयं तस्य संग्रामे जयमाप्नुयात्। श्मशाने च भयं नास्ति कवचस्य प्रभावतः।। (२६)

नवनीतं चाभिमन्त्र्य स्त्रीणां सद्यान् महेश्वरि। वन्ध्यायां जायते पुत्रो विद्याबल-समन्वितः।। (२७)

श्मशानांगार मादाय भौमे रात्रौ शनावथ। पादोद केन स्पृष्ट्वा च लिखेत् लोह शलाकया।। (२८)

भूमौ शत्रोः स्वरुपं च हृदि नाम समालिखेत्। हस्तं तद्धदये दत्वा कवचं तिथिवारकम्।। (२९)

ध्यात्वा जपेन् मन्त्रराजं नवरात्रं प्रयत्नतः। म्रियते ज्वरदाहेन दशमेऽह्नि न संशयः।। (३०)

भूर्जपत्रेष्विदं स्तोत्रम् अष्टगन्धेन संलिखेत्। धारयेद् दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा।। (३१)

संग्रामे जयमाप्नोति नारी पुत्रवती भवेत्। ब्रह्मास्त्रदीनि शस्त्राणि नैव कृन्तन्ति तं जनम्।। (३२)

सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत्। वृहस्पतिसमो वापि विभवे धनदोपमः।। (३३)

काम तुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः। कवितालहरी तस्य भवेद् गंगा-प्रवाहवत्।। (३४)

गद्य-पद्य-मयी वाणी भवेद् देवी-प्रसादतः। एकादशशतं यावत् पुरश्चरण मुच्यते।। (३५)

पुरश्चर्या-विहीनं तु न चेदं फलदायकम्। न देयं परशीष्येभ्यो दुष्टेभ्यश्च विशेषतः।। (३६)

देयं शिष्याय भक्ताय पञ्चत्वं चान्यथाऽऽप्नुयात्। इदं कवचमज्ञात्वा भजेद् यो बगलामुखीम्। (३७)

शतकोटिं जपित्वा तु तस्य सिद्धिर्न जायते। दाराढ्यो मनुजोऽस्य लक्षजपतः प्राप्नोति सिद्धिं परां ।।

विद्यां श्रीविजयं तथा सुनियतं धीरं च वीरं वरम्।

ब्रह्मास्त्राख्य मनुं विलिख्य नितरां भूर्जेष्टगन्धेन वै, धृत्वा राजपुरं ब्रजन्ति खलु ये दासोऽस्ति तेषां नृपः।। (३८)

श्री विश्वसारोद्धार तन्त्रे पार्वतीश्वर संवादे बगलामुखी कवचम्।।

    बगलामुखी कवच पाठ करने की विधि

सर्व प्रथम गुरुदेव से बगलामुखी कवच की दीक्षा ग्रहण करें। फिर उनकी आज्ञा अनुसार कवच का कम से कम 1100 पाठ करने का संकल्प करें। 1100 कवच का पाठ आप 11 दिन में कर सकते हैं। साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें।  साधना रात्रि काल में करें। साधना करने से पहले पीले वस्त्र धारण करें। पीला आसन बिछा लें।

Baglamukhi Kavach Locket

जो लोग भगवती बगलामुखी साधना में दीक्षित नहीं हैं  एवं बगलामुखी कवच का लाभ लेना चाहते हैं, वो बगलामुखी कवच अपने हाथ में धारण कर सकते हैं। कवच प्राप्त करने के लिए निचे लिखी जानकारी हमे  9540674788 (whatsapp) अथवा  shaktisadhna@yahoo.com पर भेजें
१. आपका नाम
२. आपके माता पिता का नाम
३. आपका गोत्र
४. आपका फोटो

इस कवच को प्राप्त करने का शुल्क 2100/= है।

जो लोग भूत प्रेत बाधा अथवा शत्रुओ द्वारा किये गए अभिचारिक कर्मो से ग्रसित है उन्हें बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच धारण करना चाहिए एवं बगलामुखी व प्रत्यंगिरा दीक्षा लेकर उनकी साधना करनी चाहिए। बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच का शुल्क 5100/= है।

Download Baglamukhi Kavach in Hindi and English ( बगलामुखी कवच )

Other very powerful baglamukhi mantras, stotras and kavach

यदि आप मंत्र साधना में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कीजिये। ये पुस्तकें आप अमेज़न से खरीद सकते हैं –
श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
अनुष्ठानों का रहस्य
आगम रहस्य
श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 1

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 2

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 3

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 4

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 4

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 5

baglamukhi kavach in hindi and sanskrit part 6

Baglamukhi Kavach Benefits in English

Every baglamukhi sadhak (upasak) should chant this baglamukhi kavach everday before starting his mantra jaap. If possible please do this kavach three times a day morning, afternoon and evening. This kavach is taken from Vishvasarodhaar Tantra. Lord shiva said to Devi Parvati that Devi Baglamukhi destroys enemies of a sadhak like a fire destroys the complete forest. She is giver of Empire (kindom) & Salvation ( Moksha – Mukti). There are so many benefits of reciting this kavach which are given in this kavach itself. By reciting this kavach one gets a courageous son which lives for 100 years.

For baglamukhi mantra diksha and sadhana guidance email to shaktisadhna@yahoo.com , sumitgirdharwal@yahoo.com or call us on 9540674788 , 9917325788 , 9410030994

Those who have not taken baglamukhi diksha and not able to chant this kavach they can wear kavach on their hand or neck. Baglamukhi Kavach Price ( Cost ) is  Rs 2100/=  Those who are affected with spirits (ghosts) and black magic they should wear baglamukhi pratyangira kavach ( Baglamukhi Pratyangira Kavach Price ( Cost ) is Rs 5100/= ) and should also take diksha of devi baglmukhi and pratyangira.

Those who want to learn different sadhanas & want to take diksha (mantra initiation) please send us the below details to sumitgirdharwal@yahoo.com /  shaktisadhna@yahoo.com

1. Your name with gotra

2. Your parents name

3. Your latest photograph

4. Your current living address

5. Your date of birth, time & place

6. Rs 5100/ or (USD 101/= For those who are living abroad)

Baglamukhi Pratyangira Kavach to destroy enemy and to remove black magic बगलामुखी प्रत्यंगिरा कवच

Baglamukhi Pratyangira Kavach in Hindi & Sanskrit बगलामुखी  प्रत्यंगिरा कवच

pitambara

Baglamukhi Pratyangira Kavach in Hindi

इस कवच के पाठ से वायु भी स्थिर हो जाती है। शत्रु का विलय हो जाता है। विद्वेषण, आकर्षण, उच्चाटन, मारण तथा शत्रु का स्तम्भन भी इस कवच के पढ़ने से होता है। बगला प्रत्यंगिरा सर्व दुष्टों का नाश करने वाली, सभी दुःखो को हरने वाली, पापों का नाश करने वाली, सभी शरणागतों का हित करने वाली, भोग, मोक्ष, राज्य और सौभाग्य प्रदायिनी तथा नवग्रहों के दोषों को दूर करने वाली हैं। जो साधक इस कवच का पाठ तीनों समय अथवा एक समय भी स्थिर मन से करता है, उसके लिए यह कल्पवृक्ष के समान है और तीनों लोकों में उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। साधक जिसकी ओर भरपूर दृष्टि से देख ले, अथवा हाथ से किसी को छू भर दे, वही मनुष्य दासतुल्य हो जाता है।

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इस कवच के पाठ से भयंकर से भयंकर तंत्र प्रयोग को भी नष्ट किया जा सकता है लेकिन इसका पाठ केवल बगलामुखी में दीक्षित साधक ही कर सकते हैं। बिना गुरू आज्ञा के इसका पाठ नही करना चाहिए। बगलामुखी साधना से सम्बंधित अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें –   ईमेल shaktisadhna@yahoo.com  फ़ोन  – 9540674788 , 9410030994

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विनियोग : – अस्य श्री बगला प्रत्यंगिरा मंत्रस्य नारद ऋषि स्त्रिष्टुप छन्दः प्रत्यंगिरा ह्लीं बीजं हूं शक्तिः ह्रीं कीलकं ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा
मम शत्रु विनाशे विनियोगः ।

मंत्र : ओम् प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय: मम रक्षां कुरू कुरू सर्वान शत्रुन् खादय-खादय, मारय-मारय, घातय-घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।

बगला प्रत्यंगिरा कवच (Baglamukhi Pratyangira Kavach in Hindi)

ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी मोहनी तथा ।

संहारिणी द्राविणी च जृम्भणी रौद्ररूपिणी ।।

इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजताः ।

धारयेत कण्ठदेशे च सर्व शत्रु विनाशिनी ।।

ॐ ह्रीं भ्रामरी सर्व शत्रून् भ्रामय भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून् मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं संहारिणी मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं द्राविणी मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं जृम्भणी मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

( इति श्री रूद्रयामले शिवपार्वति सम्वादे बगला प्रत्यंगिरा कवचम् )

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Baglamukhi Pratyangira Kavach in Hindi Pdf Free Download Secret and Powerful Tantra

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यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

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Baglamukhi Pratyangira kavach in Hindi Free Download Part2

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Baglamukhi Pratyangira Kavach Beneifts in English

The recitation of baglamukhi pratyangira kavach (armor) can stall even the wind, enemies get destroyed. Baglamukhi Pratyangira kavach can bring any attempt of the enemy to a still. This kavacham destroys all the enemies, ends all sorrows & sins, mitigates the ill-effects of the planetary positions in horoscope, protects the devotees and bestows wealth, kingdom (fame) & fortune. This kavacham is like a wish-fulfilling tree to the devotee who chants this kavacham three times a day or at least once daily with concentration, there is nothing unattainable for him. Any person, who is touched by the devotee or even glanced by him, becomes a slave to the devotee.

This kavach protects from bhoot pret badha (evil spirits or ghost).

This amour destroys even the most invincible spells cast by enemies. But, this should be chanted only after obtaining the deeksha and initiation from a preceptor (Guru).

viniyoga : – asya śrī bagalā pratyaṃgirā maṃtrasya nārada ṛṣi striṣṭupa chandaḥ pratyaṃgirā hlīṃ bījaṃ hūṃ śaktiḥ hrīṃ kīlakaṃ hlīṃ hlīṃ hlīṃ hlīṃ pratyaṃgirā

mama śatru vināśe viniyogaḥ ।

maṃtra : om pratyaṃgirāyai namaḥ pratyaṃgire sakala kāmān sādhaya: mama rakṣāṃ kurū kurū sarvāna śatrun khādaya-khādaya, māraya-māraya, ghātaya-ghātaya oṃ hrīṃ phaṭ svāhā।

Baglamukhi Pratyangira Kavach in English (IAST)

oṃ bhrāmarī stambhinī devī kṣobhiṇī mohanī tathā ।
saṃhāriṇī drāviṇī ca jṛmbhaṇī raudrarūpiṇī ।।
ityaṣṭau śaktayo devi śatru pakṣe niyojatāḥ ।
dhārayeta kaṇṭhadeśe ca sarva śatru vināśinī ।।
oṃ hrīṃ bhrāmarī sarva śatrūn bhrāmaya bhrāmaya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ stambhinī mama śatrūn stambhaya stambhaya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ kṣobhiṇī mama śatrūn kṣobhaya kṣobhaya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ mohinī mama śatrūn mohaya mohaya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ saṃhāriṇī mama śatrūn saṃhāraya saṃhāraya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ drāviṇī mama śatrūn drāvaya drāvaya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ jṛmbhaṇī mama śatrūn jṛmbhaya jṛmbhaya oṃ hrīṃ svāhā ।
oṃ hrīṃ raudri mama śatrūn santāpaya santāpaya oṃ hrīṃ svāhā ।

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Bhagwati Baglamukhi Pitambara Sarva Jana Vashikaran Mantra in Hindi and English भगवती बगलामुखी सर्वजन वशीकरण मंत्र

Bhagwati Baglamukhi Pitambara Sarva Jana Vashikaran Mantra in Hindi and English भगवती बगलामुखी सर्वजन वशीकरण मंत्र

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मां बगलामुखी को सामान्यतः सभी लोग शत्रुओं का नाश करने वाली, उनकी गति, मति, बुद्धि का स्तम्भन करने वाली, मुकदमे एवं चुनाव आदि में विजय दिलाने वाली शक्ति के रूप में जानते हैं। लेकिन यह बात केवल कुछ ही लोग जानते हैं कि वे जगत का वशीकरण भी करने वाली हैं। यदि उनकी कृपा प्राप्त हो जाये तो साधक की ओर सभी आकर्षित होने लगते हैं, वह जंहा बोलता है, वंही उसे सुनने को जन समूह उमड़ पड़ता है। उसका दायरा बहुत व्यापक हो जाता है। कोई भी स्त्री, पुरूष, बच्चा उसके आकर्षण में ऐसा बंध जाता है कि अपनी सुध-बुध खो बैठता है और वही करने के लिए विवश हो जाता है, जो साधक चाहता है।
इस साधन को करने के लिए अति गोपनीय मंत्र का उल्लेख मैं यंहा साधकों के लिए कर रहा हॅू, लेकिन साधक सदैव स्मरण रखें कि ऐसी साधनाओं का दुष्प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा साधक की साधना क्षीण होने लगती है। मंत्र का प्रयोग सदैव समाज कल्याण के लिए करना चाहिए, न कि समाज-विरोधी गतिविधियों के लिए ।
सर्वप्रथम भगवती बगलामुखी की मंत्र दीक्षा ग्रहण करें उसके पश्चात गुरू आज्ञानुसार साधना करें

Baglamukhi Vashikaran Mantra is considered as most powerful vashikaran mantra.

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Pitambara Baglamukhi Ashtakshari Mantra Sadhana Evam Siddhi in Hindi ( Sarva Karya Siddhi Ma Baglamukhi Mantra )

Pitambara Baglamukhi Ashtakshari Mantra Sadhana Evam Siddhi in Hindi ( Sarva Karya Siddhi Ma Baglamukhi Mantra ) Devi Pitambara Peeth Photo

 

।। भगवती पीताम्बरा के अष्टाक्षर मंत्र का महात्म्य ।।

भगवती बगलामुखी (पीताम्बरा ) के इस मंत्र का अनुष्ठान चतुराक्षर मंत्र के अनुष्ठान के बाद किया जाता हैा भगवती का यह मंत्र बहुत ही प्रभावशाली एवं चमत्कारी हैा इसकी महिमा को बताने के लिए अपने एक शिष्य के अनुभव को यहां लिख रहा हूं – मेरे एक शिष्य को बहुत प्रयास करने के बाद भी कहीं कोई नौकरी नही मिल रही थी। बहुत अच्छी डिग्रियां हाने के बाद भी सभी जगह से उसे निराशा ही हाथ लग रही थी। तब मैनें उसे इस मंत्र का एक अनुष्ठान करने को कहा । उसने विधिवत अनुष्ठान शुरू किया और एक सप्ताह बाद ही उसका बहुत बड़ी कम्पनी में चयन हो गया। यह तो बस एक छोटा सा अनुभव है। इसके अलावा ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिन्हें प्रेत बाधा, शत्रु बाधा, नौकरी, पारिवार में कलह, व्यवसाय में असफलता, विवाह, संतान ना होना, आदि समस्याओं में ऐसे परिणाम मिले हैं कि कोई साधारण मनुष्य तो विश्वास भी नही करेगा। साधको के हितार्थ भगवती के अष्ठाक्षर मंत्र का विधान दे रहा हूं – (कृपया दीक्षित साधक ही इसका जप करें। जिनकी दीक्षा नही हुई है वो सबसे पहले दीक्षा ग्रहण करें )

Importance of Baglamukhi (Pitambara) Ashtakshara Mantra

Anusthaan of Baglamukhi Ashtakshara Mantra is done after Chaturakshara Mantra. This mantra of ma baglamukhi is said to be very effective and powerful. To explain its importance i am giving you experience of one of my disciple. One of my disciple was jobless and after trying hard he was not getting any job. He was well qualified still could not get success. I asked him to do one anusthan of baglamukhi asthakshara mantra. He started as per my instruction and you won’t believe that just after one week he got selected in one of the best mnc. It is one of the example. There were lots of other people who were affected by black magic and were facing other problems in their Jobs, career, family etc and they got immense success after this mantra. Here i am giving you detailed information about baglamukhi ashtakshara mantra. (Only Baglamukhi Dikshit (initiated in baglamukhi) can do chanting of this mantra. If you are not initiated then first get initiated in baglamukhi mantra)

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Baglamukhi Chaturakshara Mantra Evam Pooja Vidhi in Hindi Pdf बगलामुखी (पीताम्बरा) चतुरक्षर मंत्र

Baglamukhi Chaturakshara Mantra Evam Puja Vidhi in Hindi Pdf माँ बगलामुखी (पीताम्बरा) चतुरक्षर मंत्र

भगवती बगलामुखी (पीताम्बरा) के इस मंत्र का अनुष्ठान बीज मंत्र  ( हल्रीं )  के अनुष्ठान के बाद किया जाता हैा ऐसा देखा गया है कि बीज मंत्र का अनुष्ठान तो साधक बिना किसी समस्या के कर लेते हैं, लेकिन चतुरक्षर के अनुष्ठान में उन्हें थोड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है। समस्या से यहां तात्पर्य भगवती द्वारा ली जाने वाली परीक्षा से है। इस मंत्र में कई बार ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाती है कि आपका अनुष्ठान बीच में ही छूट जाये, जैसे कहीं अचानक बाहर जाना पड़ जाये अथवा किसी काम में इतनी अधिक व्यस्तता हो जाये कि उस दिन के निर्धारित जप करने का समय ना मिले इत्यादि, लेकिन साधको को किसी भी परिस्थिति में किसी भी दिन जप नही छोड़ना है । यदि किसी कारण वश बाहर जाना भी पड़ भी जाये तो वही पर जाकर अपना जप पूर्ण करें एवं भगवती से क्षमा प्रार्थना करें । यदि आपने यह अनुष्ठान एक बार पूर्ण कर लिया तो भगवती की कृपा को प्राप्त करने से आपको कोई नही रोक सकता । भगवती पर विश्वास रखें एवं नियमित रूप से अपना जप करते रहें, आपको सफलता अवश्य मिलेगी ।

Baglamukhi Chaturakshara Mantra Pooja Vidhi in English

Anusthaan of Baglamukhi Chaturakshara Mantra is done after completing anusthaan of Baglamukhi Beej Mantra “HLREEM”. We have seen that sadhak easily completes  baglamukhi beej mantra anusthaan but they face difficulty while doing chaturakshara mantra anusthaan. Here difficulty means that ma baglamukhi takes exam of the sadhak during anusthaan. Sometime Devi baglamukhi will create a situation where you will not be able to do mantra jaap on a particular day. It could be due to your busy schedule or you may have to go out station for some work but remember that ma baglamukhi is taking your exam and you have to pass it to get her blessings. In any situation you have to complete your decided mantra jaap for each day. For example if you have taken sankalpa to do 125000 mantras (1250 Malas) in 21 days then you have to do 60 Malas (Rosary) per day. As per the rule of the anusthaan you can not leave your pooja any single day nor you can decrease the number of Malas (Rosary). Everyday you have to do 60 malas in any situation. So sadhak should complete these mantra jaap everyday. In any case if you are out of station then you should apologize in front ma and you should complete your mantra jaap at that location. Once you complete this anusthaan that no body can stop you to take blessings of ma baglamukhi. Have faith on Ma and continue your pooja everyday, you will definitely get the success.

Benefits of Devi Baglamukhi Puja

  • To win court cases (If you are victim of false court cases.)
  • To remove black magic / bhoot-pret/upri badha
  • To win enemies
  • To create happiness in family.
  • To remove graha dosha/ remove malefic effects of plantes.
  • To

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Shri Baglamukhi Hridaya Mantra in Hindi and Sanskrit देवी बगलामुखी हृदय मंत्र

Devi Baglamukhi Hridaya Mantra in Hindi and Sanskrit देवी बगलामुखी हृदय मंत्र

Baglamukhi Hridaya Mantra ( बगलामुखी हृदय मंत्र ) को देवता का हृदय कहा जाता हैा इसके जप से देवता का सानिध्य बढ़ता है एवं सिद्ध होने पर दर्शन प्राप्त होते हैं। अपने गुरूदेव से इस मंत्र की दीक्षा लेकर ही इसका जप करें । कई बार ऐसा देखा गया है कि कुछ लोग साधना के प्रारम्भ में ही हृदय मंत्र का जप शुरू कर देते है और जैसे ही देवता का सानिध्य बढ़ता है तो घबरा जाते है और डर से अपनी साधना बीच में ही छोड़ देतें हैा इसलिए साधको को मेरा परामर्श है कि जब आपके गुरूदेव कहें तभी इसका जप करें । नये साधको को इसके स्थान पर बगलामुखी हृदय स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ।

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Hridaya mantra is said to be the heart of the deity.  It is said that a sadhak who chant baglamukhi hridaya mantra gets closer to devi baglamukhi and he get darshan of ma baglamukhi. It is also said that in beginning of baglamukhi sadhana this hridaya mantra should not be chanted as you won’t be able to handle its energy.

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Introduction of Eighth Mahavidya Baglamukhi in Hindi महाविद्या बगलामुखी परिचय हिंदी में

Introduction of Dus Mahavidya Baglamukhi in Hindi

अष्टम  महाविद्या बगलामुखी का  परिचय हिंदी में

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Baglamukhi Information in Hindi

भगवती बगला सुधा-समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय  मण्डप में रत्नवेदी पर रत्नमय सिंहासन पर विराजती हैं।  पीतवर्णा होने के कारण ये पीत रंग के ही वस्त्र, आभूषण व माला धारण किये हुए हैं।इनके एक हाथ में शत्रु की  जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्गर  है। व्यष्टि रूप में शत्रुओं का नाश करने वाली और समष्टि रूप में परम ईश्वर की सहांर-इच्छा की अधिस्ठात्री शक्ति बगला है।

श्री प्रजापति ने बगला उपासना वैदिक रीती से की और वे सृस्टि की संरचना करने में सफल हुए। श्री प्रजापति ने इस विद्या का उपदेश सनकादिक मुनियों को दिया।  सनत्कुमार ने इसका उपदेश श्री नारद को और श्री नारद ने सांख्यायन परमहंस को दिया, जिन्होंने छत्तीस पटलों में “बगला तंत्र” ग्रन्थ की रचना की। “स्वतंत्र तंत्र” के अनुसार भगवान् विष्णु इस विद्या के उपासक हुए। फिर श्री परशुराम जी और आचार्य द्रोण इस विद्या के उपासक हुए। आचार्य द्रोण ने यह विद्या परशुराम जी से ग्रहण की।

baglamukhi mantra in hindi

श्री बगला महाविद्या ऊर्ध्वाम्नाय के अनुसार ही उपास्य हैं, जिसमें स्त्री (शक्ति) भोग्या नहीं बल्कि पूज्या है। बगला महाविद्या “श्री कुल” से सम्बंधित हैं और अवगत हो कि श्रीकुल की सभी महाविद्याओं की उपासना अत्यंत सावधानी पूर्वक गुरु के मार्गदर्शन में शुचिता बनाते हुए, इन्द्रिय निग्रह पूर्वक करनी चाहिए। फिर बगला शक्ति तो अत्यंत तेजपूर्ण शक्ति हैं, जिनका उद्भव ही स्तम्भन हेतु हुआ था। इस विद्या के प्रभाव से ही महर्षि  च्यवन ने इंद्र के वज्र को स्तंभित कर दिया था। श्रीमद् गोविंदपाद की समाधि में विघ्न डालने से रोकने के लिए आचार्य श्री शंकर ने रेवा नदी का स्तम्भन इसी महाविद्या के प्रभाव से किया था। महामुनि श्री निम्बार्क ने कस्सी ब्राह्मण को इसी विद्या के प्रभाव से नीम के वृक्ष पर, सूर्यदेव का दर्शन कराया था। श्री बगलामुखी को “ब्रह्मास्त्र विद्या” के नामे से भी जाना जाता है।  शत्रुओं का दमन और विघ्नों का शमन करने में विश्व में इनके समकक्ष कोई अन्य देवता नहीं है।

भगवती बगलामुखी को स्तम्भन की देवी कहा गया है।  स्तम्भनकारिणी शक्ति नाम रूप से व्यक्त एवं अव्यक्त सभी पदार्थो की स्थिति का आधार पृथ्वी के रूप में शक्ति ही है, और बगलामुखी उसी स्तम्भन शक्ति की अधिस्ठात्री देवी हैं।  इसी स्तम्भन शक्ति से ही सूर्यमण्डल स्थित है, सभी लोक इसी शक्ति के प्रभाव से ही स्तंभित है।  अतः साधक गण को चाहिये कि ऐसी महाविद्या कि साधना सही रीति व विधानपूर्वक ही करें।

अब हम साधकगण को इस महाविद्या के विषय में कुछ और जानकारी देना आवश्यक समझते है, जो साधक इस साधना को पूर्ण कर, सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इन तथ्यो की जानकारी होना अति आवश्यक है।

1 ) कुल : – महाविद्या बगलामुखी “श्री कुल” से सम्बंधित है।

2 ) नाम : – बगलामुखी, पीताम्बरा , बगला , वल्गामुखी , वगलामुखी , ब्रह्मास्त्र विद्या

3 ) कुल्लुका : – मंत्र जाप से पूर्व उस मंत्र कि कुल्लुका का न्यास सिर में किया जाता है। इस विद्या की कुल्लुका “ॐ हूं छ्रौम्” (OM HOOM Chraum)

4)  महासेतु  : – साधन काल में जप से पूर्व ‘महासेतु’ का जप किया जाता है।  ऐसा करने से लाभ यह होता है कि साधक प्रत्येक समय, प्रत्येक स्थिति में जप कर सकता है।  इस महाविद्या का महासेतु “स्त्रीं” (Streem)  है।  इसका जाप कंठ स्थित विशुद्धि चक्र में दस बार किया जाता है।

5)  कवचसेतु :- इसे मंत्रसेतु भी कहा जाता है।  जप प्रारम्भ करने से पूर्व इसका जप एक हजार बार किया जाता है।  ब्राह्मण व छत्रियों के लिए “प्रणव “, वैश्यों  के लिए “फट” तथा शूद्रों के लिए “ह्रीं” कवचसेतु  है।

6 ) निर्वाण :-  “ह्रूं ह्रीं श्रीं” (Hroom Hreem Shreem) से सम्पुटित मूल मंत्र का जाप ही इसकी निर्वाण विद्या है। इसकी दूसरी विधि यह है कि पहले प्रणव कर, अ , आ , आदि स्वर तथा क, ख , आदि व्यंजन पढ़कर मूल मंत्र पढ़ें और अंत में “ऐं” लगाएं और फिर विलोम गति से पुनरावृत्ति करें।

7 ) बंधन :- किसी विपरीत या आसुरी बाधा को रोकने के लिए इस मंत्र का एक हजार बार जाप किया जाता है। मंत्र इस प्रकार है ” ऐं ह्रीं ह्रीं ऐं ” (Aim Hreem Hreem Aim)

8) मुद्रा :- इस विद्या में योनि मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

9) प्राणायाम : –  साधना से पूर्व दो मूल मंत्रो से रेचक, चार मूल मंत्रो से पूरक तथा दो मूल मंत्रो से कुम्भक करना चाहिए। दो मूल मंत्रो से रेचक, आठ मूल मंत्रो से पूरक तथा चार मूल मंत्रो से कुम्भक करना और भी अधिक लाभ कारी है।

10 ) दीपन :-  दीपक जलने से जैसे रोशनी हो जाती है, उसी प्रकार दीपन से मंत्र प्रकाशवान हो जाता है। दीपन करने हेतु मूल मंत्र को योनि बीज ” ईं ” ( EEM ) से संपुटित कर सात बार जप करें

11) जीवन अथवा प्राण योग : – बिना प्राण अथवा जीवन के मन्त्र निष्क्रिय होता है,  अतः मूल मन्त्र के आदि और अन्त में माया बीज “ह्रीं” (Hreem) से संपुट लगाकर सात बार जप करें ।

12 ) मुख शोधन : –  हमारी जिह्वा अशुद्ध रहती है, जिस कारण उससे जप करने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। अतः “ऐं ह्रीं  ऐं ” मंत्र से दस बार जाप कर मुखशोधन करें

13 ) मध्य दृस्टि : – साधना के लिए मध्य दृस्टि आवश्यक है। अतः मूल मंत्र के प्रत्येक अक्षर के आगे पीछे “यं” (Yam) बीज का अवगुण्ठन कर मूल मंत्र का पाँच बार जप करना चाहिए।

14 ) शापोद्धार : – मूल मंत्र के जपने से पूर्व दस बार इस मंत्र का जप करें –
” ॐ हलीं बगले ! रूद्र शापं विमोचय विमोचय ॐ ह्लीं स्वाहा ”

(OM Hleem Bagale ! Rudra Shaapam Vimochaya Vimochaya  OM Hleem Swaahaa )

15 ) उत्कीलन : – मूल मंत्र के आरम्भ में ” ॐ ह्रीं स्वाहा ” मंत्र का दस बार जप करें।

16 ) आचार :-  इस विद्या के दोनों आचार हैं, वाम भी और दक्षिण भी ।

17 ) साधना में सिद्धि प्राप्त न होने पर उपाय : –  कभी कभी ऐसा देखने में आता हैं कि बार बार साधना करने पर भी सफलता हाथ नहीं आती है। इसके लिए आप निम्न वर्णित उपाय करें –

a) कर्पूर, रोली, खास और चन्दन की स्याही से, अनार की कलम से भोजपत्र पर वायु बीज “यं” (Yam) से मूल मंत्र को अवगुण्ठित कर, उसका षोडशोपचार पूजन करें। निश्चय ही सफलता मिलेगी।

b) सरस्वती बीज “ऐं” (Aim)  से मूल मंत्र को संपुटित कर एक हजार जप करें।

c)  भोजपत्र पर गौदुग्ध से मूल मंत्र लिखकर उसे दाहिनी भुजा पर बांध लें। साथ ही मूल मंत्र को “स्त्रीं” (Steem)  से सम्पुटित कर उसका एक हजार जप करें

18 ) विशेष : – गंध,पुष्प, आभूषण, भगवती के सामने रखें। दीपक देवता के दायीं ओर व धूपबत्ती बायीं ओर रखनी चाहिए। नैवेद्य (Sweets, Dry Fruits ) भी देवता के दायीं ओर ही रखें। जप के उपरान्त आसन से उठने से पूर्व ही अपने द्वारा किया जाप भगवती के बायें हाथ में समर्पित कर दें।

अतः ऐसे साधक गण जो किन्ही भी कारणो से यदि अभी तक साधना में सफलता प्राप्त नहीं कर सकें हैं, उपर्युक्त निर्देशों का पालन करते हुए पुनः एक बार फिर संकल्प लें, तो निश्चय ही पराम्बा पीताम्बरा की कृपा दृस्टि उन्हें प्राप्त होगी – ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है।

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Ashadha Gupta Navratri 11 July 2021 ( आषाढ़ मास गुप्त नवरात्री 2021 )

Ashadha Gupta Navratri July 2021 ( आषाढ़ मास गुप्त नवरात्री 2021  )

11 जुलाई से आषाढ़ गुप्त नवरात्री प्रारम्भ हो रही है। गुप्त नवरात्री में पूजा सामान्य नवरात्री के सामान ही होती है, लेकिन इस समय का उपयोग आप विशिष्ट साधनाओं को संपन्न करने में एवं अपने जीवन को उच्च कोटि पर ले जाने के लिए कर सकते हैं। गुप्त नवरात्री में विशेष रूप से दस महाविद्याओं की उपासना की जाती है। भारत सदैव से ही अपनी आध्यात्मकि शक्तियों के कारण विश्व गुरु रहा है लेकिन आज की पीढ़ी विरासत में मिले इस ज्ञान का मोल नहीं समझ रही है और शायद यही कारण है की आज सभी सुख सुविधाएँ होने के पश्चात भी मनुष्य सुखी नहीं है। वास्तविक सुख ध्यान,योग एवं ईश्वरोपासना से ही प्राप्त किया जा सकता है ये जितना जल्दी हम समझेंगे उतना ही हमारे हित में होगा।

आपके दिमाग में यह प्रश्‍न जरूर आ रहा होगा कि इसे गुप्‍त नवरात्र क्‍यों कहा जाता है? ऐसी मान्‍यता है कि इस नवरात्र में साधु संत और साधक अपनी सिद्धि की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की पूजा और आराधना गुप्‍त रूप से करते हैं इसलिए इसे गुप्‍त नवरात्र करते हैं। ऐसा माना जाता है कि आषाढ़ की नवरात्र में गजब की शक्ति होती है। इस साल रविवार को रवि पुष्‍य योग होने से गुप्‍त नवरात्र की पूजा मनचाहा फल देने वाली होगी। जो भी लोग मनोकामना पूर्ति के लिए पूजा करेंगे उन्‍हें जरूर सफलता प्राप्‍त होगी।

11 जुलाई 2021 ( रविवार) – प्रतिपदा, घट स्थापना, शैलपुत्री पूजा
12 जुलाई 2021 (सोमवार) – द्वितीया, ब्रह्मचारिणी पूजा
13 जुलाई  2021 (मंगलवार) – तृतीया, चंद्रघंटा पूजा
14 जुलाई 2021 ( बुधवार) – चतुर्थी, कुष्मांडा पूजा
15 जुलाई 2021 ( गुरुवार)– पंचमी, स्कंदमाता पूजा
16 जुलाई 2021 (शुक्रवार) – षष्टी, कात्यायनी पूजा , सप्तमी, कालरात्रि पूजा
17 जुलाई 2021 ( शनिवार) – महागौरी पूजा, दुर्गा महा अष्टमी पूजा
18 जुलाई 2021 ( रविवार) – नवमी नवरात्रि

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यह है घट स्थापना का समय

घट स्थापना शुभ मुहूर्त- सुबह 5 बजकर 31 मिनट से सुबह 7 बजकर 47 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 59 से दोपहर 12 बजकर 54 मिनट तक आप बिना कलश स्थापना के भी पूजा कर सकते हैं।

यह है कलश स्थापना के लिए सामान

किसी भी धार्मिक कार्य को शुरू करने से पहले कलश स्थापना यानी घटस्‍थापना करने का विधान होता है। पौरणिक मान्यताओं के अनुसार यदि कलश स्‍थापना करने के बाद देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेकर कोई शुभ काम करेंगे तो वह निश्चिंत रूप से आपको सफलता दिलाएगा।  आषाढ़ गुप्त नवरात्रि के लिए मिट्टी का पात्र और जौ, शुद्ध, साफ मिट्टी, शुद्ध जल से भरा हुआ सोना, चांदी, तांबा, पीतल या मिट्टी का कलश, मोली (कलवा), साबुत सुपारी, कलश में रखने के लिए सिक्के, फूल और माला, अशोक या आम के 5 पत्ते, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन, साबुत चावल, एक पानी वाला नारियल, लाल कपड़ा या चुनरी की आवस्यकता होती है।

ऐसे करें कलश स्थापना – 

  • नवरात्रि में कलश स्थापना करने के दौरान सबसे पहले पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।
  • लकड़ी की चौकी रखकर उसपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • कपड़े पर थोड़े-थोड़े चावल रखें।
  • चावल रखते हुए सबसे पहले गणेश जी का स्मरण करें।
  • एक मिट्टी के पात्र में जौ बोयें।
  • इस पात्र पर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें।
  • कलश पर रोली से स्वस्तिक या ‘ऊँ’ बनायें।
  • कलश के मुख पर कलवा बांधकर इसमें सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रखें।
  • कलश के मुख को चावल से भरी कटोरी से ढक दें।
  • एक नारियल पर चुनरी लपेटकर इसे कलवे से बांधें और चावल की कटोरी पर रख दें।
  • सभी देवताओं का आवाहन करें और धूप दीप जलाकर कलश की पूजा करें।
  • भोग लगाकर मां की पूजा करें।

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यदि आप मंत्र साधना में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कीजिये। ये पुस्तकें आप अमेज़न से खरीद सकते हैं जिनका लिंक नीचे दिया जा रहा है –
श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
अनुष्ठानों का रहस्य
आगम रहस्य
श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

Siddha Kunjika Stotram in Hindi ( सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् )

Siddha Kunjika Stotram in Hindi ( सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् )

साधकों के कल्याणार्थ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।  शिवजी कहते हैं – देवी !सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप ( पाठ ) सफल होता है। कवच , अर्गला , कीलक , रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है।   केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। ( यह कुंजिका ) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥

अथ मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥२॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥३॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥५॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥६॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥७॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥८॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥

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अर्गला स्तोत्रम् | Argala Stotram Lyrics in Hindi

साधकों के कल्याणार्थ अर्गला स्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके प्रसाद ( पाठ या श्रवण ) – मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अर्गला स्तोत्रम् का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

अर्गला स्तोत्रम् का पाठ हिंदी में

ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है। 

मार्कण्डेय जी कहते हैं – जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो। देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो ।।1-2।।

मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवि! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।३।।

महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।४।।

रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।५।।

शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।6।।

सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभग्य प्रदान करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।७।।

देवि! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।८।।

पापों को दूर करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा (हमेशा) मस्तक झुकाते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।९।।

रोगों का नाश करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१०।।

चण्डिके! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।११।।

मुझे सौभाग्य और आरोग्य (स्वास्थ्य) दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१२।।

जो मुझसे द्वेष करते हों, उनका नाश और मेरे बल की वृद्धि करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। १३।।

देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम संपत्ति प्रदान करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। १४।।

अम्बिके! देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों को तुम्हारे चरणों पर घिसते हैं तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१५।।

तुम अपने भक्तजन को विद्वान, यशस्वी, और लक्ष्मीवान बनाओ तथा रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१६।।

प्रचंड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके! मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१७।।

चतुर्मुख ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१८।।

देवि अम्बिके! भगवान् विष्णु नित्य-निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१९।।

हिमालय-कन्या पार्वती के पति महादेवजी के द्वारा प्रशंसित होने वाली परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२०।।

शचीपति इंद्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाल परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२१।।

प्रचंड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२२।।

देवि अम्बिके! तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनंद प्रदान करती हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२३।।

मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार सागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में जन्मी हो ।।२४।।

जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता है, वह सप्तशती की जप-संख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है। साथ ही वह प्रचुर संपत्ति भी प्राप्त कर लेता है।।२६।।

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