Siddha Kunjika Stotram in Hindi ( सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् )

Siddha Kunjika Stotram in Hindi ( सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् )

साधकों के कल्याणार्थ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।  शिवजी कहते हैं – देवी !सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मन्त्र के प्रभाव से देवी का जप ( पाठ ) सफल होता है। कवच , अर्गला , कीलक , रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है।   केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। ( यह कुंजिका ) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत ॥१॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥

अथ मन्त्रः
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥२॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥३॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥४॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥५॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥६॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥७॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥८॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥

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श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
अनुष्ठानों का रहस्य
आगम रहस्य
श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

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अर्गला स्तोत्रम् | Argala Stotram Lyrics in Hindi

साधकों के कल्याणार्थ अर्गला स्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके प्रसाद ( पाठ या श्रवण ) – मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अर्गला स्तोत्रम् का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

अर्गला स्तोत्रम् का पाठ हिंदी में

ॐ चंडिका देवी को नमस्कार है। 

मार्कण्डेय जी कहते हैं – जयन्ती, मंगला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा – इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो। देवि चामुण्डे! तुम्हारी जय हो। सम्पूर्ण प्राणियों की पीड़ा हरने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। सब में व्याप्त रहने वाली देवि! तुम्हारी जय हो। कालरात्रि! तुम्हें नमस्कार हो ।।1-2।।

मधु और कैटभ को मारने वाली तथा ब्रह्माजी को वरदान देने वाली देवि! तुम्हे नमस्कार है। तुम मुझे रूप (आत्मस्वरूप का ज्ञान) दो, जय (मोह पर विजय) दो, यश (मोह-विजय और ज्ञान-प्राप्तिरूप यश) दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।३।।

महिषासुर का नाश करने वाली तथा भक्तों को सुख देने वाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।४।।

रक्तबीज का वध और चण्ड-मुण्ड का विनाश करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।५।।

शुम्भ और निशुम्भ तथा धूम्रलोचन का मर्दन करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।6।।

सबके द्वारा वन्दित युगल चरणों वाली तथा सम्पूर्ण सौभग्य प्रदान करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।७।।

देवि! तुम्हारे रूप और चरित्र अचिन्त्य हैं। तुम समस्त शत्रुओं का नाश करने वाली हो। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।८।।

पापों को दूर करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारे चरणों में सर्वदा (हमेशा) मस्तक झुकाते हैं, उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।९।।

रोगों का नाश करने वाली चण्डिके! जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते हैं, उन्हें तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१०।।

चण्डिके! इस संसार में जो भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करते हैं उन्हें रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।११।।

मुझे सौभाग्य और आरोग्य (स्वास्थ्य) दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१२।।

जो मुझसे द्वेष करते हों, उनका नाश और मेरे बल की वृद्धि करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। १३।।

देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे उत्तम संपत्ति प्रदान करो। रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।। १४।।

अम्बिके! देवता और असुर दोनों ही अपने माथे के मुकुट की मणियों को तुम्हारे चरणों पर घिसते हैं तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१५।।

तुम अपने भक्तजन को विद्वान, यशस्वी, और लक्ष्मीवान बनाओ तथा रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१६।।

प्रचंड दैत्यों के दर्प का दलन करने वाली चण्डिके! मुझ शरणागत को रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१७।।

चतुर्मुख ब्रह्मा जी के द्वारा प्रशंसित चार भुजाधारिणी परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१८।।

देवि अम्बिके! भगवान् विष्णु नित्य-निरंतर भक्तिपूर्वक तुम्हारी स्तुति करते रहते हैं। तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।१९।।

हिमालय-कन्या पार्वती के पति महादेवजी के द्वारा प्रशंसित होने वाली परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२०।।

शचीपति इंद्र के द्वारा सद्भाव से पूजित होने वाल परमेश्वरि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२१।।

प्रचंड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२२।।

देवि अम्बिके! तुम अपने भक्तजनों को सदा असीम आनंद प्रदान करती हो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो ।।२३।।

मन की इच्छा के अनुसार चलने वाली मनोहर पत्नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसार सागर से तारने वाली तथा उत्तम कुल में जन्मी हो ।।२४।।

जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करके सप्तशती रूपी महास्तोत्र का पाठ करता है, वह सप्तशती की जप-संख्या से मिलने वाले श्रेष्ठ फल को प्राप्त होता है। साथ ही वह प्रचुर संपत्ति भी प्राप्त कर लेता है।।२६।।

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Durga Saptashati Keelak Stotram दुर्गा सप्तशती कीलक स्तोत्रम Lyrics

Durga Saptashati Keelak Stotram दुर्गा सप्तशती कीलक स्तोत्रम Lyrics

साधकों के कल्याणार्थ दुर्गा सप्तशती कीलकम स्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी – 9917325788 , सुमित गिरधरवाल जी 9540674788 . Email : shaktisadhna@yahoo.com

ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।

विशुद्ध ज्ञान ही जिनका शरीर है, तीनों वेद ही जिनके तीन नेत्र हैं, जो कल्याण प्राप्ति के हेतु हैं तथा अपने मस्तक पर अर्धचन्द्र का मुकुट धारण करते हैं, उन भगवान् शिव को नमस्कार है। ।।१।।

मन्त्रों का जो अभिकीलक है अर्थात् मन्त्रों की सिद्धि में विघ्न उपस्थित करने वाले शापरूपी कीलक का जो निवारण करने वाला है, उस सप्तशती स्तोत्र को सम्पूर्ण रूप से जानना चाहिये ( और जानकर उसकी उपासना करनी चाहिये ), यद्यपि सप्तशती के अतिरिक्त अन्य मंत्रों के जप में भी जो निरन्तर लगा रहता है, वह भी कल्याण का भागी होता है। ।।२।।

उसके भी उच्चाटन आदि कर्म सिद्ध होते हैं उसे भी समस्त दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति होती है; तथापि जो अन्य मन्त्रों का जप न करके केवल इस सप्तशती नामक स्तोत्र से ही देवी की स्तुति करते हैं, उन्हें स्तुति मात्र से ही सच्चिदानन्दस्वरूपिणी देवी सिद्ध हो जाती हैं। ।।३।।

उन्हें अपने कार्य की सिद्धि के लिये मंत्र, औषधि तथा अन्य किसी साधन के उपयोग की आवश्यकता नहीं रहती | बिना जप के ही उनके उच्चाटन आदि समस्त अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं ।।४।।

इतना ही नहीं ,उनकी संपूर्ण अभीष्ट वस्तुएँ भी सिद्ध होती है | लोगों के मन में यह शंका थी कि ‘जब केवल सप्तशती की उपासना से अथवा सप्तशती को छोड़कर अन्य मंत्रो की उपासना से भी समान रूप से सब कार्य सिद्ध होते हैं, तब इनमें श्रेष्ठ कौन सा साधन है?’ लोगों की इस शंका को सामने रखकर भगवान् शंकर ने अपने पास आए हुए जिज्ञासुओं को समझाया की यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्रोत ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है ।।५।।

तदनन्तर भगवती चण्डिकाके सप्तशती नामक स्त्रोत को महादेव जी ने गुप्त कर दिया। सप्तशती के पाठसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उसकी कभी समाप्ति नहीं होती; किंतु अन्य मंत्रो के जपजन्य पुण्य की समाप्ति हो जाती है।अतः भगवान् शिव ने अन्य मंत्रो की अपेक्षा जो सप्तशती की ही श्रेष्ठता का निर्णय किया उसे यथार्थ ही जानना चाहिये ।।६।।

अन्य मंत्रो का जप करनेवाला पुरुष भी यदि सप्तशती के स्त्रोत और जप का अनुष्ठान कर ले तो वह भी पूर्ण रूप से ही कल्याण का भागी होता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। जो साधक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी अथवा अष्टमी को एकाग्रचित होकर भगवती कीसेवा में अपना सर्वस्व समर्पित कर देता है और फिर उसे प्रसाद रूप से ग्रहण करता है, उसी पर भगवती प्रसन्न होती है; अन्यथा उनकी प्रसन्नता नहीं प्राप्त होती। इस प्रकार सिद्धि के प्रतिबंधक रूप कीलके द्वारा महादेव जी ने इस स्त्रोत को कीलित कर रखा है ।।७-८।।

जो पूर्वोक्त रीति से निष्कीलन करके इस सप्तशती स्त्रोत का प्रतिदिन स्पष्ट उच्चारणपूर्वक पाठ करता है, वह मनुष्य सिद्ध हो जाता है, वही देवी का पार्षद होता है और वही गन्धर्व भी होता है।।9।।

सर्वत्र विचरते रहने पर भी इस संसार में उसे कहीं भी भय नहीं होता | वह अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ता तथा देह त्यागने के अनन्तर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।।10।।

अतः कीलन को जानकार उसका परिहार करके ही सप्तशती का पाठ आरंभ करे। जो ऐसा नहीं करता, उसका नाश हो जाता है। इसलिये कीलकऔर निष्कीलन का ज्ञान प्राप्त करने पर ही यह स्त्रोत निर्दोष होता है और विद्वान् पुरुष इस निर्दोष स्तोत्र का ही पाठ आरंभ करते है।।११।।

स्त्रियों में जो कुछ भी सौभाग्य आदि दृश्टिगोचर होता है, वह सब देवी के प्रसाद का ही फल है। अतः इस कल्याणमय स्त्रोत का सदा जप करना चाहिये ।।१२।।

इस स्त्रोत का मंद स्वर से पाठ करने पर स्वल्प फल की प्राप्ति होती है और उच्च स्वर से पाठ करने पर पूर्ण फल की सिद्धि होती है। अतः उच्च स्वर से ही इसका पाठ आरंभ करना चाहिये ।।13।।

जिनके प्रसाद से ऐश्वर्य, सौभाग्य, आरोग्य, सम्पत्ति, शत्रुनाश तथा परम मोक्ष की भी सिद्धि होती है, उन कल्याणमयी जगदम्बा की स्तुति मनुष्य क्यों नहीं करते ? ।।14।।

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दुर्गा सप्तशती कीलकम स्तोत्रम्

ॐ अस्य कीलकमंत्रस्य शिव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीमहासरस्वती देवता श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।।

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे । श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ।।१।।

सर्वमेतद्विजानियान्मंत्राणामभिकीलकम् । सो-अपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ।।२।।

सिध्यन्त्युच्याटनादीनि वस्तुनि सकलान्यपि। एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ।। ३।।

न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।विना जाप्येन सिद्ध्यते सर्वमुच्चाटनादिकम् ।।४।।

समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशङ्कामिमां हरः। कृत्वा निमन्त्रयामास  सर्वमेवमिदं शुभम् ।।५।।

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः। समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावान्नियन्त्रणाम् ।।६।।

सोअपि  क्षेममवाप्नोति  सर्वमेवं न संशयः। कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ।।७।।

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति। इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम ।।८।।

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्। स सिद्धः स गणः सोअपि गन्धर्वो जायते नरः।।9।।

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते। नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ।।१०।।

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति। ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ।।११।।

सौभाग्यादि च यत्किञ्चित्त दृश्यते ललनाजने। तत्सर्वं  तत्प्रसादेन तेन  जाप्यमिदं शुभम् ।।१२।।

शनैस्तु जप्यमाने-अस्मिन स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः। भवत्येव  समग्रापि  ततः  प्रारभ्यमेव  तत् ।।१३।।

ऐश्वर्यं    यत्प्रसादेन   सौभाग्यारोग्यसम्पदः। शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः।।ॐ।।१४।।

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दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् Shree Durga Ashtottara Shatanama Stotram Lyrics Hindi

Shree Durga Ashtottara Shatanama Stotram in Hindi ( दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र )

साधकों के कल्याणार्थ दुर्गाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके प्रसाद ( पाठ या श्रवण ) – मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। यह स्तोत्र देवी भगवती के 108 नामों का वर्णन करता है।

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शंकरजी पार्वती जी से कहते हैं-

कमलानने! अब मैं अष्टोत्तरशतनाम का वर्णन करता हूँ, सुनो; जिसके प्रसाद ( पाठ या श्रवण ) – मात्र से परम साध्वी भगवती दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं। |1|

ॐ सती, साध्वी, भवप्रीता ( भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली ), भवानी, भवमोचनी ( संसार बंधन से मुक्त करने वाली ), आर्या, दुर्गा, जया, आद्या, त्रिनेत्रा, शूलधारिणी। |2|

पिनाकधारिणी ( शिव का त्रिशूलधारण करने वाली ), चित्रा, चण्डघण्टा ( प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली ) , महातपा ( भारी तपस्या करने वाली ), मन ( मनन-शक्ति ) , बुद्धि ( बोधशक्ति ), अहंकारा ( अहंता का आश्रय ), चित्तरूपा, चिता, चिति (चेतना)। |3|

सर्वमंत्रमयी, सत्ता (सत्-स्वरूपा), सत्यानन्दस्वरूपिणी, अनंता ( जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं ), भाविनी ( सबको उत्पन्न करने वाली ), भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य ), भव्या ( कल्याणरूपा ), अभव्या ( जिससे बढ़कर भव्य कहीं नहीं है ), सदागति। |4|

शाम्भवी ( शिवप्रिया ) , देवमाता, चिंता, रत्नप्रिया, सर्वविद्या, दक्षकन्या, दक्षयज्ञविनाशिनी। |5|

अपर्णा ( तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली ), अनेकवर्णा ( अनेक रंगों वाली), पाटला ( लाल रंग वाली ), पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली), पट्टाम्बरपरीधाना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली ), कलमंजीररंजिनी ( मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसान रहने वाली )। |6|

अमेयविक्रमा ( असीम पराक्रम वाली ), क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर ), सुन्दरी, सुरसुन्दरी, वनदुर्गा, मातंगी, मतंगमुनिपूजिता। |7|

ब्राह्मी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, चामुण्डा, वाराही, लक्ष्मी, पुरुषाकृति। |8|

विमला, उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, नित्या, बुद्धिदा, बहुला, बहुलप्रेमा, सर्ववाहनवाहना। |9|

निशुम्भ-शुम्भहननी, महिषासुरमर्दिनी, मधुकैटभहन्त्री, चण्डमुण्डविनाशिनी। |10|

सर्वासुरविनाशा, सर्वदानवघातिनी, सर्वशास्त्रमयी, सत्या, सर्वास्त्रधारिणी। |11|

अनेकशस्त्रहस्ता, अनेकास्त्रधारिणी, कुमारी, एककन्या, कैशोरी, युवती, यति। |12|

अप्रौढा, प्रौढा, वृद्धमाता, बलप्रदा, महोदरी, मुक्तकेशी, घोररूपा, महाबला। |13|

अग्निज्वाला, रौद्रमुखी, कालरात्रि, तपस्विनी, नारायणी, भद्रकाली, विष्णुमाया, जलोदरी। |14|

शिवदूती, कराली, अनंता ( विनाशरहिता ), परमेश्वरी, कात्यायनी, सावित्री, प्रत्यक्षा, ब्रह्मवादिनी। |15|

देवी पार्वती ! जो प्रतिदिन दुर्गा जी के इस अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करता है, उसके लिए तीनों लोकों में कुछ भी असाध्य नहीं है। |16|

वह धन, धान्य, पुत्र, स्त्री, घोड़ा, हाथी, धर्मं आदि चार पुरुषार्थ तथा अन्त में सनातन मुक्ति भी प्राप्त कर लेता है। |17|

कुमारी का पूजन और देवी सुरेश्वरी का ध्यान करके पराभक्ति के साथ उनका पूजन करे, फिर अष्टोत्तरशतनाम का पाठ आरम्भ करे। |18|

देवि! जो ऐसा करता है, उसे सब श्रेष्ठ देवताओं से भी सिद्धि प्राप्त होती है राजा उसके दास हो जाते हैं। वह राज्यलक्ष्मी को प्राप्त कर लेता है। |19|

गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिन्दूर, कपूर, घी ( अथवा दूध ), चीनी और मधु- इन वस्तुओं को एकत्र करके इनसे विधिपूर्वक यंत्र लिखकर जो विधिज्ञ पुरुष सदा उस यंत्र को धारण करता है, वह शिव के तुल्य ( मोक्षरूप ) हो जाता है। |20|

भौमवती अमावस्या की आधी रात में, जब चन्द्रमा शतभिषा नक्षत्र पर हो, उस समय इस स्तोत्र को लिखकर जो इसका पाठ करता है, वह सम्पत्तिशाली होता है। |21|

इस प्रकार दुर्गा अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र पूरा हुआ।

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108 Names of Durga in Hindi ( दुर्गा जी के 108 नाम हिंदी में )

1-सती
2 – साध्वी
3 – भवप्रीता ( भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली )
4 – भवानी
5 – भवमोचनी ( संसार बंधन से मुक्त करने वाली )
6 – आर्या
7 – दुर्गा
8 – जया
9 – आद्या
10 – त्रिनेत्रा
11 – शूलधारिणी
12 – पिनाकधारिणी ( शिव का त्रिशूलधारण करने वाली )
13 – चित्रा
14 – चण्डघण्टा ( प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करने वाली )
15 – महातपा ( भारी तपस्या करने वाली )
16 – मन ( मनन-शक्ति )
17 – बुद्धि ( बोधशक्ति )
18 – अहंकारा ( अहंता का आश्रय )
19 – चित्तरूपा
20 – चिता
21 – चिति (चेतना)
22 – सर्वमंत्रमयी
23 – सत्ता (सत्-स्वरूपा)
24 – सत्यानन्दस्वरूपिणी
25 – अनंता ( जिनके स्वरुप का कहीं अंत नहीं )
26 – भाविनी ( सबको उत्पन्न करने वाली )
27 – भाव्या ( भावना एवं ध्यान करने योग्य )
28 – भव्या ( कल्याणरूपा )
29 – अभव्या ( जिससे बढ़कर भव्य कहीं नहीं है )
30 – सदागति
31 – शाम्भवी ( शिवप्रिया )
32 – देवमाता
33 – चिंता
34 – रत्नप्रिया
35 – सर्वविद्या
36 – दक्षकन्या
37 – दक्षयज्ञविनाशिनी
38 – अपर्णा ( तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली )
39 – अनेकवर्णा ( अनेक रंगों वाली)
40 – पाटला ( लाल रंग वाली )
41 – पाटलावती ( गुलाब के फूल या लाल फूल धारण करने वाली)
42 – पट्टाम्बरपरीधाना ( रेशमी वस्त्र पहनने वाली ),
43 – कलमंजीररंजिनी ( मधुर ध्वनि करने वाले मंजीर को धारण करके प्रसान रहने वाली )
44 – अमेयविक्रमा ( असीम पराक्रम वाली )
45 – क्रूरा ( दैत्यों के प्रति कठोर )
46 – सुन्दरी
47 – सुरसुन्दरी
48 – वनदुर्गा
49 – मातंगी
50 – मतंगमुनिपूजिता
51 – ब्राह्मी
52 – माहेश्वरी
53 – ऐन्द्री
54 – कौमारी
55 – वैष्णवी
56 – चामुण्डा
57 – वाराही
58 – लक्ष्मी
59 – पुरुषाकृति
60 – विमला
61 – उत्कर्षिणी
62 – ज्ञाना
63 – क्रिया
64 – नित्या
65 – बुद्धिदा
66 – बहुला
67 – बहुलप्रेमा
68 – सर्ववाहनवाहना
69 – निशुम्भ-शुम्भहननी
70 – महिषासुरमर्दिनी
71 – मधुकैटभहन्त्री
72 – चण्डमुण्डविनाशिनी
73 – सर्वासुरविनाशा
74 – सर्वदानवघातिनी
75 – सर्वशास्त्रमयी
76 – सत्या
77 – सर्वास्त्रधारिणी।
78 – अनेकशस्त्रहस्ता
79 – अनेकास्त्रधारिणी
80 – कुमारी
81 – एककन्या
82 – कैशोरी
83 – युवती
84 – यति
85 – अप्रौढा
86 – प्रौढा
87 – वृद्धमाता
88 – बलप्रदा
89 – महोदरी
90 – मुक्तकेशी
91 – घोररूपा
92 – महाबला
93 – अग्निज्वाला
94 – रौद्रमुखी
95 – कालरात्रि
96 – तपस्विनी
97 – नारायणी
98 – भद्रकाली
99 – विष्णुमाया
100 – जलोदरी
101 – शिवदूती
102 – कराली
103 – अनंता ( विनाशरहिता )
104 – परमेश्वरी
105 – कात्यायनी
106 – सावित्री
107 – प्रत्यक्षा
108 – ब्रह्मवादिनी

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शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ।1।

ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी । आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ।२।

पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः । मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ।३।

सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः।४।

शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा । सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ।५।

अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती । पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनि ।६।

अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी । वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ।७।

ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुंडा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः।८।

विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ।९।

निशुम्भशुम्भहननी  महिषासुरमर्दिनी। मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ।१०।

सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा।११।

अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी । कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः।१२।

अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा । महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।१३।

अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ।१४।

शिवदूती कराली च अनंता परमेश्वरी । कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्राह्मवादिनी ।१५।

य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ।१६।

धनं धान्यं सुतं जायां हयं हस्तिनमेव च । चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शास्वतीम् ।१७।

कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टाकम्।18।

तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि । राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ।19।

गोरोचनालक्तकुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण । विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ।20।

भौमावस्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते। विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ।21।

इति श्री विश्वसारतन्त्रे दुर्ग्राष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्

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यदि आप माँ बगलामुखी साधना के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो नीचे दिये गए लेख पढ़ें –

यदि आप मंत्र साधना में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कीजिये। ये पुस्तकें आप अमेज़न से खरीद सकते हैं जिनका लिंक नीचे दिया जा रहा है –
श्री बगलामुखी तन्त्रम
मंत्र साधना एवं सिद्धि के रहस्य
अनुष्ठानों का रहस्य
आगम रहस्य
श्री कामाख्या रहस्यम
श्री तारा तंत्रम
श्री प्रत्यंगिरा साधना रहस्य
शाबर मंत्र सर्वस्व
यन्त्र साधना दुर्लभ यंत्रो का अनुपम संग्रह
श्री बगलामुखी साधना और सिद्धि
षोडशी महाविद्या श्री महात्रिपुर सुंदरी साधना श्री यंत्र पूजन पद्दति एवं स्तवन
श्री धूमावती साधना और सिद्धि

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